Ashok Gehlot: …तो क्या कांग्रेस इसलिए गहलोत पर लगा रही दांव? G-23 को भी साधने में माहिर है यह ‘जादूगर’


Congress President Election: Ashok Gehlot

Congress President Election: Ashok Gehlot
– फोटो : ANI

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कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए 17 अक्तूबर को चुनाव होना है। सांसद राहुल गांधी अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने से इनकार कर चुके हैं। ऐसे में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत साफ कर चुके हैं कि अगर राहुल गांधी चुनाव में नहीं उतरते हैं, तो ही वे अपना नामांकन करेंगे। ऐसे में ये तय माना जा रहा है कि गहलोत 25 साल बाद गैर-गांधी चेहरा होंगे, जो कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेंगे।

आखिर क्यों है गहलोत पहली पसंद

राहुल गांधी के इंकार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष की रेस में राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत का नाम सबसे आगे है। बुधवार को गहलोत कांग्रेस के अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने दिल्ली पहुंचे। दिल्ली में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि हाईकमान का जो आदेश होगा, वह मानूंगा। मंगलवार रात जयपुर में कांग्रेस विधायकों से गहलोत ने कहा कि अगर राहुल नहीं मानेंगे, तो मैं नामांकन दाखिल कर सकता हूं। गहलोत के इन बयानों के बाद से ही राजनीतिक विशेषज्ञ दावे करते नजर आ रहे हैं कि कांग्रेस पार्टी में यदि कोई गैर-गांधी अध्यक्ष बनता है, तो उसमें अशोक गहलोत सबसे आगे हैं।

गांधी परिवार के विश्वासपात्र

आखिर गहलोत ही क्यों गांधी परिवार की पहली पसंद हैं, इस पर कांग्रेस की राजनीति पर नजर रखने वाले जानकारों का कहना है कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद राजनीतिक क्षेत्र में उतरी गैर-अनुभवी सोनिया गांधी को जब सभी बड़े नेताओं का साथ चाहिए था, तब पार्टी के कई नेताओं ने खुलकर सोनिया का विरोध किया था। लेकिन अशोक गहलोत सोनिया के साथ मजबूती से साथ खड़े रहे। राजीव गांधी के करीबी होने के कारण सोनिया ने भी गहलोत पर पूरा भरोसा जताया। वे इंदिरा गांधी और राजीव गांधी जितने ही सोनिया गांधी के भी भरोसंमद बन गए। वर्ष 1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को भारी बहुमत मिला। सोनिया गांधी ने कई बड़े नेताओं को दरकिनार करते हुए गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया। वहीं, 2018 के विधानसभा चुनाव में भी जीत के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट और अशोक गहलोत में किसी एक को सीएम के लिए चुनना था, तब भी सोनिया गांधी का इशारा मिलते ही गहलोत को सीएम के लिए चुना गया।

हर बार सरकार गिराने के प्रयास किए फेल

राजस्थान सरकार के चार साल के कार्यकाल के दौरान कई मौकों पर गहलोत सरकार को अस्थिर करने की कोशिश हुई। लेकिन हर बार गहलोत ने कुशल राजनीतिज्ञ होने के प्रमाण दिए। वे राजस्थान में सरकार गिराने के सभी प्रयासों को अब तक विफल करते आए हैं। इसके अलावा गहलोत को राजनीतिक संकट को भांपने की कला है। यही वजह रही कि विधानसभा में बहुमत मजबूत करने के लिए बसपा विधायकों का पार्टी में ही विलय करा लिया। निर्दलीय विधायकों को भी साधे रखा। इसके अलावा राज्यसभा चुनाव में जीत के लिए विधायकों की बाड़ेबंदी तक करवा दी। वोटिंग से लेकर मतगणना तक खुद मतदान स्थल पर डटे रहे और परिणाम आने के बाद ही घर गए।

मोदी-शाह पर करते है सीधा हमला

अशोक गहलोत दो बार महासचिव, तीन बार केंद्रीय मंत्री, तीन बार सीएम, पांच बार सांसद, पांच बार विधायक और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद भी संभाल चुके है। गहलोत जितना अनुभव पार्टी में किसी अन्य नेता के पास नहीं है। वे पार्टी का बड़ा ओबीसी चेहरा हैं। भाजपा को सीधी टक्कर देने के लिए हिंदी भाषा पर उनकी अच्छी पकड़ है। वे तथ्यों को सामने रख पीएम मोदी-शाह पर तीखा हमला बोलते हुए नजर आते हैं।

2024 को देख विपक्ष को एकजुट करने की क्षमता

कांग्रेस के चाणक्य कहे जाने वाले अहमद पटेल की खाली जगह को गहलोत भर सकते हैं। अहमद पटेल की पैठ केवल पार्टी ही नहीं, विपक्ष के बाकी नेताओं में भी थी। ठीक इसी तरह अशोक गहलोत के भी कांग्रेस के सभी वरिष्ठ नेताओं के साथ अच्छा तालमेल है। वहीं अन्य दलों के नेताओं के साथ भी उनके अच्छे संबंध हैं। लंबे राजनीतिक अनुभव के कारण भाजपा के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने की क्षमता भी उनमें नजर आती है। वही, गहलोत को राजस्थान की सियासत का जादूगर कहा जाता है। पेशे से भी वह जादूगर रह चुके हैं। उनकी जादूगरी वोटरों के सिर चढ़कर बोलती है। विरोधी भी उनके अंदाज के कायल हैं। उन्हें दिल जीतने का माहिर कहा जाता है। जब भी आलाकमान मुश्किल में पड़ा है, तब गहलोत ने उसे उबारा है।

…इसलिए थरूर से आगे हैं गहलोत

कांग्रेस सांसद शशि थरूर भी अध्यक्ष पद के लिए नामांकन भरने जा रहे है। थरूर दक्षिण भारत से आते हैं। वे कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों में लोकप्रिय जरूर हैं, लेकिन अनुभव के मामले में गहलोत से बहुत पीछे हैं। गहलोत राजस्थान, दिल्ली, गुजरात, उत्तर प्रदेश, हिमाचल, पंजाब, उत्तराखंड और मध्यप्रदेश में जाने-पहचाने जाते हैं। हिंदी पट्टी के राज्यों को कवर करने के लिए गहलोत कांग्रेस के लिए हर तरह से ज्यादा मुफीद रहेंगे। थरूर की बात करें, तो अंग्रेजी पर उनकी जबर्दस्त पकड़ है। हिंदी बोलना वे जानते हैं, लेकिन भाषण देने में उन्हें दिक्कत होती है। लेकिन उनके ज्ञान को चैलेंज करना मुश्किल है। हालांकि, अपनी सीमाओं के चलते एक बड़े वर्ग तक थरूर नहीं पहुंच पाते हैं।

अशोक गहलोत की गिनती गांधी परिवार के करीबियों में होती है। गांधी परिवार भी नहीं चाहेगा कि कमान पूरी तरह से स्वतंत्र हाथों में चली जाए। उसमें गहलोत थरूर से ज्यादा फिट बैठते हुए दिखते हैं। क्योंकि गांधी परिवार के लिए थरूर की विश्वसनीयता पर संदेह है, वह कांग्रेस के उन जी-23 नेताओं के ग्रुप में शामिल हैं, जिन्होंने 2020 में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिख कर संगठन में बड़े बदलाव की अपील की थी। यही नहीं, पार्टी की दुर्दशा के लिए केंद्रीय नेतृत्व पर सवाल खड़े किए थे।

यह जगजाहिर है कि कांग्रेस पार्टी अंदरूनी कलह की शिकार है। इसी कारण पार्टी ने कई राज्य गंवा दिए हैं। गहलोत के पास लंबा राजनीतिक अनुभव है। वह संगठन को एकजुट कर सकते हैं। इसके चलते कांग्रेस के नेताओं का वह खेमा भी उनकी छतरी के नीचे आ सकता है, जो पार्टी में बदलाव नहीं चाहता है या फिर गांधी परिवार के किसी सदस्य के हाथों में पार्टी की कमान को देखना चाहता है। वहीं, थरूर के हाथों में कांग्रेस गई, तो इस कलह के बढ़ने की आशंका रहेगी। उनका राजनीतिक अनुभव पार्टी के कई नेताओं से कम है। उनके लिए इकाई और संगठन स्तर पर लोगों के साथ संवाद स्थापित करना और उन्हें अपनी राह पर चलना मुश्किल होगा।

विस्तार

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए 17 अक्तूबर को चुनाव होना है। सांसद राहुल गांधी अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने से इनकार कर चुके हैं। ऐसे में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत साफ कर चुके हैं कि अगर राहुल गांधी चुनाव में नहीं उतरते हैं, तो ही वे अपना नामांकन करेंगे। ऐसे में ये तय माना जा रहा है कि गहलोत 25 साल बाद गैर-गांधी चेहरा होंगे, जो कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेंगे।

आखिर क्यों है गहलोत पहली पसंद

राहुल गांधी के इंकार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष की रेस में राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत का नाम सबसे आगे है। बुधवार को गहलोत कांग्रेस के अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने दिल्ली पहुंचे। दिल्ली में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि हाईकमान का जो आदेश होगा, वह मानूंगा। मंगलवार रात जयपुर में कांग्रेस विधायकों से गहलोत ने कहा कि अगर राहुल नहीं मानेंगे, तो मैं नामांकन दाखिल कर सकता हूं। गहलोत के इन बयानों के बाद से ही राजनीतिक विशेषज्ञ दावे करते नजर आ रहे हैं कि कांग्रेस पार्टी में यदि कोई गैर-गांधी अध्यक्ष बनता है, तो उसमें अशोक गहलोत सबसे आगे हैं।

गांधी परिवार के विश्वासपात्र

आखिर गहलोत ही क्यों गांधी परिवार की पहली पसंद हैं, इस पर कांग्रेस की राजनीति पर नजर रखने वाले जानकारों का कहना है कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद राजनीतिक क्षेत्र में उतरी गैर-अनुभवी सोनिया गांधी को जब सभी बड़े नेताओं का साथ चाहिए था, तब पार्टी के कई नेताओं ने खुलकर सोनिया का विरोध किया था। लेकिन अशोक गहलोत सोनिया के साथ मजबूती से साथ खड़े रहे। राजीव गांधी के करीबी होने के कारण सोनिया ने भी गहलोत पर पूरा भरोसा जताया। वे इंदिरा गांधी और राजीव गांधी जितने ही सोनिया गांधी के भी भरोसंमद बन गए। वर्ष 1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को भारी बहुमत मिला। सोनिया गांधी ने कई बड़े नेताओं को दरकिनार करते हुए गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया। वहीं, 2018 के विधानसभा चुनाव में भी जीत के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट और अशोक गहलोत में किसी एक को सीएम के लिए चुनना था, तब भी सोनिया गांधी का इशारा मिलते ही गहलोत को सीएम के लिए चुना गया।

हर बार सरकार गिराने के प्रयास किए फेल

राजस्थान सरकार के चार साल के कार्यकाल के दौरान कई मौकों पर गहलोत सरकार को अस्थिर करने की कोशिश हुई। लेकिन हर बार गहलोत ने कुशल राजनीतिज्ञ होने के प्रमाण दिए। वे राजस्थान में सरकार गिराने के सभी प्रयासों को अब तक विफल करते आए हैं। इसके अलावा गहलोत को राजनीतिक संकट को भांपने की कला है। यही वजह रही कि विधानसभा में बहुमत मजबूत करने के लिए बसपा विधायकों का पार्टी में ही विलय करा लिया। निर्दलीय विधायकों को भी साधे रखा। इसके अलावा राज्यसभा चुनाव में जीत के लिए विधायकों की बाड़ेबंदी तक करवा दी। वोटिंग से लेकर मतगणना तक खुद मतदान स्थल पर डटे रहे और परिणाम आने के बाद ही घर गए।

मोदी-शाह पर करते है सीधा हमला

अशोक गहलोत दो बार महासचिव, तीन बार केंद्रीय मंत्री, तीन बार सीएम, पांच बार सांसद, पांच बार विधायक और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद भी संभाल चुके है। गहलोत जितना अनुभव पार्टी में किसी अन्य नेता के पास नहीं है। वे पार्टी का बड़ा ओबीसी चेहरा हैं। भाजपा को सीधी टक्कर देने के लिए हिंदी भाषा पर उनकी अच्छी पकड़ है। वे तथ्यों को सामने रख पीएम मोदी-शाह पर तीखा हमला बोलते हुए नजर आते हैं।

2024 को देख विपक्ष को एकजुट करने की क्षमता

कांग्रेस के चाणक्य कहे जाने वाले अहमद पटेल की खाली जगह को गहलोत भर सकते हैं। अहमद पटेल की पैठ केवल पार्टी ही नहीं, विपक्ष के बाकी नेताओं में भी थी। ठीक इसी तरह अशोक गहलोत के भी कांग्रेस के सभी वरिष्ठ नेताओं के साथ अच्छा तालमेल है। वहीं अन्य दलों के नेताओं के साथ भी उनके अच्छे संबंध हैं। लंबे राजनीतिक अनुभव के कारण भाजपा के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने की क्षमता भी उनमें नजर आती है। वही, गहलोत को राजस्थान की सियासत का जादूगर कहा जाता है। पेशे से भी वह जादूगर रह चुके हैं। उनकी जादूगरी वोटरों के सिर चढ़कर बोलती है। विरोधी भी उनके अंदाज के कायल हैं। उन्हें दिल जीतने का माहिर कहा जाता है। जब भी आलाकमान मुश्किल में पड़ा है, तब गहलोत ने उसे उबारा है।

…इसलिए थरूर से आगे हैं गहलोत

कांग्रेस सांसद शशि थरूर भी अध्यक्ष पद के लिए नामांकन भरने जा रहे है। थरूर दक्षिण भारत से आते हैं। वे कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों में लोकप्रिय जरूर हैं, लेकिन अनुभव के मामले में गहलोत से बहुत पीछे हैं। गहलोत राजस्थान, दिल्ली, गुजरात, उत्तर प्रदेश, हिमाचल, पंजाब, उत्तराखंड और मध्यप्रदेश में जाने-पहचाने जाते हैं। हिंदी पट्टी के राज्यों को कवर करने के लिए गहलोत कांग्रेस के लिए हर तरह से ज्यादा मुफीद रहेंगे। थरूर की बात करें, तो अंग्रेजी पर उनकी जबर्दस्त पकड़ है। हिंदी बोलना वे जानते हैं, लेकिन भाषण देने में उन्हें दिक्कत होती है। लेकिन उनके ज्ञान को चैलेंज करना मुश्किल है। हालांकि, अपनी सीमाओं के चलते एक बड़े वर्ग तक थरूर नहीं पहुंच पाते हैं।

अशोक गहलोत की गिनती गांधी परिवार के करीबियों में होती है। गांधी परिवार भी नहीं चाहेगा कि कमान पूरी तरह से स्वतंत्र हाथों में चली जाए। उसमें गहलोत थरूर से ज्यादा फिट बैठते हुए दिखते हैं। क्योंकि गांधी परिवार के लिए थरूर की विश्वसनीयता पर संदेह है, वह कांग्रेस के उन जी-23 नेताओं के ग्रुप में शामिल हैं, जिन्होंने 2020 में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिख कर संगठन में बड़े बदलाव की अपील की थी। यही नहीं, पार्टी की दुर्दशा के लिए केंद्रीय नेतृत्व पर सवाल खड़े किए थे।

यह जगजाहिर है कि कांग्रेस पार्टी अंदरूनी कलह की शिकार है। इसी कारण पार्टी ने कई राज्य गंवा दिए हैं। गहलोत के पास लंबा राजनीतिक अनुभव है। वह संगठन को एकजुट कर सकते हैं। इसके चलते कांग्रेस के नेताओं का वह खेमा भी उनकी छतरी के नीचे आ सकता है, जो पार्टी में बदलाव नहीं चाहता है या फिर गांधी परिवार के किसी सदस्य के हाथों में पार्टी की कमान को देखना चाहता है। वहीं, थरूर के हाथों में कांग्रेस गई, तो इस कलह के बढ़ने की आशंका रहेगी। उनका राजनीतिक अनुभव पार्टी के कई नेताओं से कम है। उनके लिए इकाई और संगठन स्तर पर लोगों के साथ संवाद स्थापित करना और उन्हें अपनी राह पर चलना मुश्किल होगा।



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