BJP vs Opposition: क्या है 2024 के लिए विपक्षी एकता का गेम प्लान, यही हाल रहा तो मोदी का कैसे करेंगे मुकाबला?


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2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव का रास्ता 2022 में होने वाले गुजरात, कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद 2023 में प्रस्तावित राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव से होकर जाता है। लेकिन विपक्ष में आपसी सिर फुटौव्वल और घमासान मचा है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि आखिर 2024 में बड़े दावे करने वाला विपक्ष कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सामना कर पाएगा? कांग्रेस पार्टी के एक पूर्व महासचिव कहते हैं कि दिल्ली में बैठे नेताओं के लिए दिल्ली बहुत दूर है। दूसरी तरफ भाजपा के नेता आत्मविश्वास से लबरेज हैं। मोदी सरकार के एक पूर्व केंद्रीय मंत्री कहते हैं कि आपको अमित शाह का वह बयान याद करना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा था कि 2050 तक कोई नहीं है टक्कर में।

वह कसते हुए कहते हैं कि जो विपक्ष सर्वसम्मति से राष्ट्रपति का उम्मीदवार नहीं तय कर सका, उप-राष्ट्रपति के उम्मीदवार पर सिर फुटौव्वल है, वह कौन सी चुनौती खड़ी कर पाएगा? तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी ने अभी से उप-राष्ट्रपति चुनाव से किनारा कर लिया है। कांग्रेस पार्टी तो इसी से दोहरी हुई जा रही है कि अनियमितता के मामले की जांच कर रहे प्रवर्तन निदेशालय ने सोनिया गांधी को पूछताछ के लिए बुलाया है। खैर, ऐसे मामलों में कांग्रेस पर हमला बोलना हो या चुटकी लेनी हो तो केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर का आत्मविश्वास देखने लायक रहता है।

बड़ा सवाल -कैसे फिक्स होते जा रहे हैं विपक्षी नेता?
भक्त चरण दास कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं। विपक्षी एकता और 2024 के सवाल पर कहते हैं कि मौजूदा सरकार न केवल जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करके विपक्ष को कमजोर करने, तोड़ने-फोड़ने में लगी है, बल्कि देश की लोकतांत्रिक और संवैधानिक संस्थाओं को भी कमजोर करके बड़ा नुकसान कर रही है। इसलिए राष्ट्रहित में देश को बचाने के लिए सभी विपक्षी दलों को साथ आना चाहिए। भक्त चरण ने कहा कि इसके लिए प्रयास चल रहा है। हालांकि विपक्षी एकता की तस्वीर न उभर पाने के सवाल पर वह कहते हैं कि उनकी कुछ सीमाएं हैं। वह नहीं बता सकते कि सब लोग कैसे फिक्स होते जा रहे हैं? मध्य प्रदेश कांग्रेस के अरुण यादव कहते हैं कि ऐसा कुछ नहीं है। संघर्ष चल रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, सांसद राहुल गांधी और प्रियंका गांधी लगातार संघर्ष कर रही हैं। इसका सुखद परिणाम आएगा। 

अरुण यादव कहते हैं कि 2023 में हम मध्य प्रदेश जीतेंगे। 2022 में मेयर, जिला पंचायत, निकाय चुनावों में इसकी बानगी देखने को मिल गई है। इसके बाद अपने आप तस्वीर बदल जाएगी। समाजवादी पार्टी के नेता संजय लाठर कहते हैं कि चुनौती बड़ी है। लेकिन इससे निबटने के लिए सभी दलों को खुलकर आगे आना होगा। लाठर को उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी 2024 में अच्छी संख्या में सीटें लाएगी। तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी ने एक बार फिर एकला चलो रे का रास्ता पकड़ लिया है। वह उप-राष्ट्रपति के चुनाव में विपक्ष पर मनमाने तरीके से उम्मीदवार तय करने का आरोप लगाकर इससे किनारा कर चुकी हैं। वहीं ममता बनर्जी की पार्टी की एक राज्यसभा सांसद का कहना है कि हमारा फोकस पश्चिम बंगाल पर है। वहां से भाजपा 2024 में एक-दो सीट जीत ले तो बड़ी बात होगी।
 
‘विपक्ष सोता है तो अमित शाह जागते रहते हैं’
विपक्ष के नेताओं से बात करने और अमित शाह की चर्चा करने पर कई बार ऐसा लगता है, जैसे उनके खिलाफ बोलने में वे डरते हैं। संभलकर बोलते हैं। भाजपा के भीतर और बाहर मीडिया में उन्हें राजनीति का चाणक्य कहा जाता है। इस बारे में पश्चिम बंगाल के एक बड़े भाजपा नेता का कहना है कि अमित शाह की यही खूबी भाजपा की ताकत है। विपक्ष की कमजोरी भी। सूत्र का कहना है कि गृहमंत्री पूरी सतर्कता के साथ राजनीति के सभी प्रयोग, बड़ी सावधानी से करते हैं। उन्हें पश्चिम बंगाल के मामले में पता है कि शाह बिना होमवर्क के कुछ नहीं करते। हवा में तो बिल्कुल नहीं। शाह का यह कौशल यूपी विधानसभा चुनाव 2017 और 2022 दोनों में दिखाई दिया। संघ से भाजपा में आए ज्ञानेश्वर शुक्ला अमित शाह को इसका काफी बड़ा श्रेय देते हैं। कहते हैं कि कैसे जातिगत आधार पर जा चुके चुनाव का समीकरण बदलने में कामयाबी मिली थी। अमित शाह के बारे में कहा जाता है कि वह विपक्ष की कमजोरी ढूंढते रहते हैं। सत्ता पक्ष को मजबूत बनाने के सभी उपायों को लेकर गंभीर रहते हैं। इसके साथ-साथ उनकी निगाह आने वाली चुनौतियों पर बनी रहती है। इन सभी प्रयासों में राजनीतिक अवधारणा को एक फ्रेम में दुरुस्त करने के उपाय से वह कभी नहीं चूकते।
 

ऐसी घटनाएं होंगी तो फायदा भाजपा को ही होगा
बिहार विधानसभा चुनाव में कुछ पारी पर्दे के पीछे से खेली गई और कुछ पर्दे पर। चुनाव से ऐन पहले सीटों के बंटवारे में पूर्व केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान अड़ गए। तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बनाम चिराग पासवान मुद्दा भी चुनाव में खूब चला। भाजपा के तमाम बागियों ने चिराग की लोक जनशक्ति पार्टी से ही चुनाव लड़ा। अमित शाह पूरे चुनाव में प्रचार के लिए नहीं गए। जीतन राम मांझी, उपेन्द्र कुशवाहा, मुकेश सहनी सब साथ आए। चिराग पासवान प्रधानमंत्री मोदी के हनुमान बने रहे। चुनाव संपन्न हो गया। चिराग पासवान का दावा खोखला रह गया। नीतीश कुमार की जद(यू) को उम्मीद से आधी सीटों पर संतोष करना पड़ा। भाजपा के विधायक रिकार्ड संख्या में जीते। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बने। अब नीतीश कुमार को चित और पट दोनों में अपना हित खोजना पड़ रहा है। दिलचस्प है कि चिराग पासवान भी अब भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की दया पर ही हैं। अली अनवर जैसे पूर्व सांसद कहते हैं कि जब चाहे भाजपा पशुपति राम पारस और चिराग को आपस में मिला दे या फिर जैसे चाहे उनके साथ व्यवहार करे। भाजपा के नेता कहते हैं कि चिंता की कोई बात नहीं। बिहार पर हमारे नेता अमित शाह की नजर रहती है।

दूसरी बड़ी राजनीति महाराष्ट्र में हुई। पहला ऑपरेशन लोटस 2019 में हुआ और 48 घंटे के लिए देवेंद्र फडणवीस राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। एनसीपी के शरद पवार ने पार्टी और राजनीति पर अपनी पकड़ का खामोश रहकर प्रदर्शन किया। नतीजतन शिवसेना के उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री हो गए। लुटियन जोन में यह चर्चा आम है कि तभी से राजनीति के सरदार शरद पवार और चाणक्य अमित शाह में राजनीतिक कुश्ती ठन गई थी। बताते हैं नतीजा आने में ढाई साल लग गए। एनसीपी के शरद पवार की भाजपा के कुछ केन्द्रीय नेताओं से बात होती रही। भाजपा और केंद्र सरकार एनसीपी के नेताओं पर अपना ऑपरेशन चलाती रही। शरद पवार को प्रवर्तन निदेशालय का नोटिस, अजीत पवार और उनके करीबियों को आयकर विभाग का नोटिस, एनसीपी के कोटे के दो पूर्व मंत्रियों के खिलाफ जांच और कार्रवाई, शिवसेना के तमाम नेताओं को विभिन्न एजेंसियों के नोटिस। सब चलता रहा। किसी को पता नहीं चला कि कब भाजपा ने शिवसेना में सेंध लगाई। शिवसेना में मुश्किल मानी जाने वाली सेंध इतनी बड़ी थी कि उद्धव ठाकरे को पैरों तले जमीन खिसक जाने का एहसास पूरी बाजी हार जाने के बाद हुआ। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे स्वीकारने में संकोच नहीं करते कि सबकुछ दिल्ली में बैठे बड़े नेताओं के सहयोग, आशीर्वाद से ही संभव हो पाया।

राष्ट्रपति चुनाव में खींच दी लकीर, बड़े अंतर से जीतीं द्रौपदी मुर्मू
महामहिम राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने वाली द्रौपदी मुर्मू को प्रधानमंत्री मोदी का विश्वास, स्नेह हासिल है। प्रधानमंत्री चाहते थे कि जीत का अंतर बड़ा हो। भाजपा मुख्यालय के नेता इसे सबका प्रयास बताते हैं, लेकिन विशेष प्रयास की बात आने पर श्रेय अमित शाह के ही खाते में जाता है। बताते हैं अमित शाह के निर्देशन में महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने राजनीतिक पैंतरे लिए और मुख्यमंत्री एकनाथ शिदे के दबाव के आगे शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे को भी मुर्मू का समर्थन करने के लिए मजबूर होना पड़ा। सुभासपा के ओमप्रकाश राजभर ने भी पैंतरा बदला और भाजपा के नेता बड़े गर्व से कहते हैं कि राष्ट्रपति के चुनाव में करीब 100 जनप्रतिनिधियों ने द्रौपदी मुमू के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की। कुल मिलाकर विपक्ष की एकता तार-तार हो गई। आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल, तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी, आंध्र प्रदेश के वाईएसआर कांग्रेस के जगन मोहन रेड्डी, टीआरएस के चंद्रशेखर राव, बसपा की मायावती, बीजू जनता दल के नवीन पटनायक, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव,आईएमआईएम असदुद्दीन ओवैसी के साथ विपक्ष की एकता का तालमेल गड़बड़ा जाता है।  
 
अब राहुल गांधी के एजेंडे से आगे बढ़कर काम कर रही है भाजपा
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री अश्विनी कुमार विपक्ष की एकता, 2024 में लोकसभा चुनाव और चुनौतियों पर अभी कोई बात नहीं करना चाहते। कुमार कहते हैं आप सब देख रहे हैं और जानते हैं कि क्या हो रहा है। वैसे भी अभी 2024 आने में समय है। चुनाव प्रचार अभियान के रणनीतिकार प्रशांत किशोर की टीम में काम कर चुके सूत्र का कहना है कि भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव तक कांग्रेस पार्टी को लेकर जो राजनीतिक एजेंडा सेट किया था, अब उससे आगे के एजेंडे पर काम कर रही है। सूत्र का कहना है कि अब राहुल गांधी और उनकी छवि भाजपा के लिए चुनौती नहीं है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की छवि को यूपी के विधानसभा चुनाव से झटका लगा है। वैसे भी कांग्रेस के ही नेता कांग्रेस का नुकसान कर रहे हैं और वहां सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। सूत्र का कहना है कि राष्ट्रीय पार्टी केवल भाजपा और कांग्रेस ही है। शेष क्षेत्रीय दल हैं और अन्य विपक्षी दल की भी स्थिति कांग्रेस से बहुत अलग नहीं है। इसलिए विपक्ष के लिए चुनौती तो बड़ी है।

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2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव का रास्ता 2022 में होने वाले गुजरात, कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद 2023 में प्रस्तावित राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव से होकर जाता है। लेकिन विपक्ष में आपसी सिर फुटौव्वल और घमासान मचा है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि आखिर 2024 में बड़े दावे करने वाला विपक्ष कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सामना कर पाएगा? कांग्रेस पार्टी के एक पूर्व महासचिव कहते हैं कि दिल्ली में बैठे नेताओं के लिए दिल्ली बहुत दूर है। दूसरी तरफ भाजपा के नेता आत्मविश्वास से लबरेज हैं। मोदी सरकार के एक पूर्व केंद्रीय मंत्री कहते हैं कि आपको अमित शाह का वह बयान याद करना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा था कि 2050 तक कोई नहीं है टक्कर में।

वह कसते हुए कहते हैं कि जो विपक्ष सर्वसम्मति से राष्ट्रपति का उम्मीदवार नहीं तय कर सका, उप-राष्ट्रपति के उम्मीदवार पर सिर फुटौव्वल है, वह कौन सी चुनौती खड़ी कर पाएगा? तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी ने अभी से उप-राष्ट्रपति चुनाव से किनारा कर लिया है। कांग्रेस पार्टी तो इसी से दोहरी हुई जा रही है कि अनियमितता के मामले की जांच कर रहे प्रवर्तन निदेशालय ने सोनिया गांधी को पूछताछ के लिए बुलाया है। खैर, ऐसे मामलों में कांग्रेस पर हमला बोलना हो या चुटकी लेनी हो तो केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर का आत्मविश्वास देखने लायक रहता है।

बड़ा सवाल -कैसे फिक्स होते जा रहे हैं विपक्षी नेता?

भक्त चरण दास कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं। विपक्षी एकता और 2024 के सवाल पर कहते हैं कि मौजूदा सरकार न केवल जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करके विपक्ष को कमजोर करने, तोड़ने-फोड़ने में लगी है, बल्कि देश की लोकतांत्रिक और संवैधानिक संस्थाओं को भी कमजोर करके बड़ा नुकसान कर रही है। इसलिए राष्ट्रहित में देश को बचाने के लिए सभी विपक्षी दलों को साथ आना चाहिए। भक्त चरण ने कहा कि इसके लिए प्रयास चल रहा है। हालांकि विपक्षी एकता की तस्वीर न उभर पाने के सवाल पर वह कहते हैं कि उनकी कुछ सीमाएं हैं। वह नहीं बता सकते कि सब लोग कैसे फिक्स होते जा रहे हैं? मध्य प्रदेश कांग्रेस के अरुण यादव कहते हैं कि ऐसा कुछ नहीं है। संघर्ष चल रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, सांसद राहुल गांधी और प्रियंका गांधी लगातार संघर्ष कर रही हैं। इसका सुखद परिणाम आएगा। 

अरुण यादव कहते हैं कि 2023 में हम मध्य प्रदेश जीतेंगे। 2022 में मेयर, जिला पंचायत, निकाय चुनावों में इसकी बानगी देखने को मिल गई है। इसके बाद अपने आप तस्वीर बदल जाएगी। समाजवादी पार्टी के नेता संजय लाठर कहते हैं कि चुनौती बड़ी है। लेकिन इससे निबटने के लिए सभी दलों को खुलकर आगे आना होगा। लाठर को उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी 2024 में अच्छी संख्या में सीटें लाएगी। तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी ने एक बार फिर एकला चलो रे का रास्ता पकड़ लिया है। वह उप-राष्ट्रपति के चुनाव में विपक्ष पर मनमाने तरीके से उम्मीदवार तय करने का आरोप लगाकर इससे किनारा कर चुकी हैं। वहीं ममता बनर्जी की पार्टी की एक राज्यसभा सांसद का कहना है कि हमारा फोकस पश्चिम बंगाल पर है। वहां से भाजपा 2024 में एक-दो सीट जीत ले तो बड़ी बात होगी।

 

‘विपक्ष सोता है तो अमित शाह जागते रहते हैं’

विपक्ष के नेताओं से बात करने और अमित शाह की चर्चा करने पर कई बार ऐसा लगता है, जैसे उनके खिलाफ बोलने में वे डरते हैं। संभलकर बोलते हैं। भाजपा के भीतर और बाहर मीडिया में उन्हें राजनीति का चाणक्य कहा जाता है। इस बारे में पश्चिम बंगाल के एक बड़े भाजपा नेता का कहना है कि अमित शाह की यही खूबी भाजपा की ताकत है। विपक्ष की कमजोरी भी। सूत्र का कहना है कि गृहमंत्री पूरी सतर्कता के साथ राजनीति के सभी प्रयोग, बड़ी सावधानी से करते हैं। उन्हें पश्चिम बंगाल के मामले में पता है कि शाह बिना होमवर्क के कुछ नहीं करते। हवा में तो बिल्कुल नहीं। शाह का यह कौशल यूपी विधानसभा चुनाव 2017 और 2022 दोनों में दिखाई दिया। संघ से भाजपा में आए ज्ञानेश्वर शुक्ला अमित शाह को इसका काफी बड़ा श्रेय देते हैं। कहते हैं कि कैसे जातिगत आधार पर जा चुके चुनाव का समीकरण बदलने में कामयाबी मिली थी। अमित शाह के बारे में कहा जाता है कि वह विपक्ष की कमजोरी ढूंढते रहते हैं। सत्ता पक्ष को मजबूत बनाने के सभी उपायों को लेकर गंभीर रहते हैं। इसके साथ-साथ उनकी निगाह आने वाली चुनौतियों पर बनी रहती है। इन सभी प्रयासों में राजनीतिक अवधारणा को एक फ्रेम में दुरुस्त करने के उपाय से वह कभी नहीं चूकते।

 



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