Congress President Election: Rahul Gandhi
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कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए इस बार गांधी परिवार के किसी सदस्य के सामने न आने को लेकर सरगर्मियां तेज हैं। माना जा रहा है कि इस फैसले के पीछे सोनिया गांधी और राहुल गांधी मजबूती के साथ ये संदेश देना चाहते हैं कि कांग्रेस किसी परिवार की पार्टी नहीं है और न ही ऐसा है कि बगैर गांधी परिवार के यह पार्टी नहीं चल सकती। जिस तरह पिछले कई सालों से भारतीय जनता पार्टी ने परिवारवाद और वंशवाद के नामपर कांग्रेस को लगातार निशाना बनाया है, पार्टी इस बार ये अवधारणा तोड़ने पर आमादा है।
‘कांग्रेस पार्टी नहीं है, एक विचारधारा है’
राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के बीच में गुरुवार को जो प्रेस कांफ्रेंस की, उसके मायने हैं। वह बार-बार ये दोहराते रहे कि उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनना है। ये बात वह पहले कई बार कह चुके हैं। आज भी वह अपनी बात पर कायम हैं और उनका वही स्टैंड है। उनसे ये सवाल कई पत्रकारों ने घुमा फिराकर पूछा, लेकिन राहुल अपनी बात पर कायम रहे। यहां तक कि उन्होंने पार्टी के अगले अध्यक्ष के लिए ये संदेश भी अभी से दे दिया कि कांग्रेस सिर्फ एक पार्टी नहीं है, बल्कि एक विचारधारा है औऱ पार्टी के किसी भी मुखिया को ये बात समझनी चाहिए। ये एक संगठनात्मक नहीं वैचारिक पद है और हमारा अपना विजन ऑफ इंडिया है जिसमें अमीर और गरीब के बीच के फासले को खत्म करना और इस असमानता को मिटाना है।
पूरे आत्मविश्वास और मजबूती के साथ राहुल गांधी ने बार-बार ये कहा कि उनकी यात्रा का मकसद सिर्फ और सिर्फ भाजपा और आरएसएस की ओर से फैलाए जा रहे नफरत के माहौल और देश को बांटने की राजनीति की खिलाफत करना और लोगों को इसके बारे में बताना है। यात्रा का मकसद, बेरोजगारी और महंगाई जैसे बुनियादी सवाल हैं। उन्होंने मीडिया पर सवाल उठाया कि आखिर इस पूरी यात्रा को सिर्फ राहुल गांधी पर ही क्यों फोकस किया जा रहा है, जबकि इसमें हजारों, लाखों कांग्रेस कार्यकर्ता शामिल हो रहे हैं। उन्होंने ये भी कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष जैसे सवाल बार-बार पूछकर मुझे भटकाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन मैं भटकने वाला नहीं हूं।
एक व्यक्ति एक पद का प्रस्ताव
कांग्रेस से जुड़े एक नेता का मानना है कि राहुल गांधी की इस प्रेस कांफ्रेंस का एक मकसद यह भी माना जा रहा है कि वह खुलकर उदयपुर में पास किए गए एक व्यक्ति एक पद के प्रस्ताव को फिर से याद दिलाना चाहते हैं और ये संकेत अभी से देना चाहते हैं कि अगर गहलोत अध्यक्ष बनते हैं तो उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना होगा। ऐसा ही दिग्विजय सिंह ने भी कह दिया है और उदयपुर प्रस्ताव का उन्होंने भी जिक्र किया है। पार्टी को लोकतांत्रिक बताते हुए अध्यक्ष पद के लिए किसी को भी चुनाव लड़ने की आजादी की बात भी की है। जाहिर है कयास लगाने के लिए उनका भी यह कहना काफी है कि कहीं वह भी तो अपनी दावेदारी नहीं पेश करना चाहते।
लेकिन एक अहम बात जो राहुल गांधी ने कही, वह अहम है कि आखिर कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव पर भाजपा, मीडिया या सबकी निगाह सबसे ज्यादा क्यों है? राहुल ने मुस्कराते हुए कहा कि क्यों लोग भाजपा, समाजवादी, कम्युनिस्ट, बीएसपी या किसी और पार्टी के मुखिया की चर्चा नहीं करते। जाहिर है भाजपा को सबसे बड़ा खतरा कांग्रेस से ही है और मीडिया को भी आज भारत जोड़ो यात्रा को मिलने वाला भारी समर्थन नजर आ रहा है।
जाहिर है राहुल गांधी के इस प्रेस कांफ्रेस के कई मायने हैं और वह भी तब जब उन्हें 23 सितंबर को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलकर पार्टी की अगली रणनीति पर चर्चा करनी है।। तमाम प्रदेशों से उनके नाम के समर्थन में आए प्रस्ताव पर मजबूती से अपना पक्ष रखना है और ये बताना है कि जो कांग्रेसी ये मानकर अलग गुट बना चुके हैं और बार बार नेतृत्व पर सवाल उठाते हैं या जो छोड़कर जा चुके हैं, उन्हें ये बताया जा सके कि कांग्रेस किसी परिवार की नहीं एक विचारधारा की पार्टी है।
भाजपा-संघ को रोक सकती है विपक्षी एकता
विपक्षी एकता को लेकर सकारात्मक तरीके से राहुल ने सबको साथ आने की जरूरत बताई और मजबूती से ये बात रखी कि नफरत की राजनीति और विचारधारा से लड़ने, तमाम संस्थाओं को ऐसी ताकतों के कब्जे से मुक्त करने के लिए ये बहुत जरूरी है। उन्हें अप्रत्यक्ष रूप से ये बात भी रख दी कि आने वाले चुनाव में यही विपक्षी एकता भाजपा और संघ को बढ़ने से रोक सकती है। देश की जनता इस नफरत की राजनीति को कभी भी स्वीकार नहीं कर सकती।
यह देखना दिलचस्प होगा कि 30 सितंबर तक तस्वीर क्या रहती है और गांधी परिवार के बगैर पार्टी की मुखिया की दौड़ में कौन-न सामने आता है और कौन आखिरी वक्त में मैदान छोड़ देता है। क्योंकि सब यही कह रहे हैं कि 30 तक सस्पेंस खत्म हो जाएगा। इंतजार कीजिए।