दीपक पारेख का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू, जानें उन्हीं की जुबानी एचडीएफसी के विलय के पीछे की कहानी


नई दिल्ली. एचडीएफसी के चेयरमैन दीपक पारेख ने सोमवार को एचडीएफसी बैंक (HDFC Bank) में एचडीएफसी (HDFC) का विलय करने की घोषणा की. इस विलय के बाद एचडीएफसी बैंक का मार्केट कैपिटल 12.8 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का होगा, जबकि इसकी बैलेंस शीट 17.9 लाख करोड़ रुपये होगी.

दीपक पारेख ने इस विलय को दो बराबर कंपनियों का विलय करार दिया है. यह विलय क्यों किया गया? ऐसा करना क्या जरूरी था? इसके पीछे की क्या वजह है? जैसे कई सवाल हैं जो एचडीएफसी और एचडीएफसी बैंक के ग्राहकों सहित इसके लाखों निवेशकों के मन में हैं. एचडीएफसी के चेयरमैन दीपक पारेख ने मनीकंट्रोल को दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में इन सवालों से पर्दा उठाया. पेश हैं इंटरव्यू की मुख्य बातें-

आपने विलय का फैसला क्यों किया?
होम लोन की मांग तेजी से बढ़ रही है. इस सेगमेंट के ग्रोथ को देखते हुए हमें ज्यादा संसाधनों की जरूरत थी. अभी तक इंडियन डेट (Debt) मार्केट विकसित नहीं हो पाया है. एनबीएफसी (गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी) के लिए पैसे जुटाना आसान नहीं है. पांच साल बाद हमें जो होम लोन का डिस्बर्समेंट करना है उसके लिए आज ही पूंजी जुटाने की जरूरत है. आज बहुत अच्छी स्थिति में हैं. कल भी हम बहुत अच्छी स्थिति में होंगे. दो साल बाद भी हमारी स्थिति अच्छी होगी. लेकिन उसके बाद क्या होगा? हमारा बिजनेस तो तेजी से बढ़ रहा है. अगले 50 साल तक भारत में घरों की मांग खत्म नहीं होने जा रही है. इसलिए हमें सावधान रहने की जरूरत है.

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विलय के बाद क्या एचडीएफसी बैंक को ग्राहकों को लेकर अपने नजरिये में बदलाव करना होगा?
अब एचडीएफसी के सभी कर्मचारी एचडीएफसी बैंक का हिस्सा बन जाएंगे. हमें दोनों कंपनियों के वर्क कल्चर को मर्ज करना पड़ेगा. इसमें थोड़ी कठिनाई होगी. एचडीएफसी बैंक को हाउसिंग लोन कारोबार भी संभालना होगा. यह बहुत इमोशनल, पर्सनल और पारिवारिक होता है. इसलिए हमें ग्राहकों को लेकर बहुत सतर्क रहना होगा.

यह कितना मुश्किल होगा?
अगर आप किसी ऐसे व्यक्ति को पर्सनल लोन देते हैं जो सट्टेबाजी करता है और उसे घाटा हो जाता है. ऐसे कस्टमर्स को लेकर हमें सख्त रहना होगा. अगर कोई कार लोन लेता है और कार लेकर भाग जाता है तो हमें कार पकड़नी होगी. इसलिए बैंक के बिजनेस और मॉर्गेज फाइनेंस में अलग-अलग तरह की भावनाएं जुड़ी होती हैं. बैंक को सख्त रुख अपनाना पड़ता है.

आरबीआई की कोशिश है कि एनबीएफसी बैंक बन जाएं, आप इस बारे में क्या सोचते हैं?
रिजर्व बैंक ने ऐसी नीति बनाई है जिसमें एनबीएफसी को बैंक में तब्दील होने को कहा जा रहा है. आरबीआई ने एनबीएफसी के लिए तीन स्तर बनाए हैं. पहला यानी अपर लेयर, ऐसे एनबीएफसी जिनका एसेट बेस 50,000 करोड़ रुपये या इससे ज्यादा है वे इस लेयर में हैं. हमारा एसेट बेस पांच लाख करोड़ रुपये है। हम अपर लेयर में सबसे ऊपर हैं. आरबीआई ने यह भी कहा है कि अपर लेयर एनबीएफसी की निगरानी होगी.

उदाहरण के लिए मान लीजिए कि किसी कस्टमर का 4 महीने का ईएमआई बकाया है. वह दो ईएमआई का पेमेंट कर देता है तो एनबीएफसी के तहत हम उसे एनपीए से बाहर कर देते हैं. इसकी वजह यह है कि उसका बकाया 90 दिन से कम का है. जबकि बैंकिंग नियमों के तहत अगर किसी कस्टमर का 4 महीने का ईएमआई बकाया है और वह 3 महीने का भी बकाया चुका देता है तो भी उसके अकाउंट को एनपीए माना जाएगा. हमारा एसेट्स सिक्योरिटी के रूप में होता है.

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इसका मतलब यह है कि एचडीएफसी के पास विलय के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं था?
ऐसा नहीं है. हम रास्ता निकाल सकते थे. विलय के पीछे कई और भी वजहें हैं. इनमें से एक वजह एनबीएफसी के नए नियम भी थे.

Tags: Bank merger, Exclusive interview, HDFC, Hdfc bank

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