चुनावी शब्द-संसार और कहानी “त्रिशंकु” की: जब महर्षि विश्वामित्र ने राजा त्रिशंकु के लिए किया था यज्ञ..!


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विधानसभा में किसी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने पर अक्सर विश्लेषक और पत्रकार त्रिशंकु विधानसभा होने की बात करते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि ऐसा इसलिए क्योंकि तब तीन पक्ष हो जाते हैं। यह भी सही है, लेकिन त्रिशंकु अंग्रेजी के ‘हंग’ यानी लटका हुआ का बड़ा सुंदर अनुवाद है। सत्यव्रत या त्रिशंकु नाम था भगवान राम के एक पूर्वज का जो राजा हरिश्चंद्र के पिता थे।
 

अब वशिष्ठ के विरोधी महर्षि विश्वामित्र ने त्रिशंकु पर तरस खाकर उनके लिए यज्ञ करना प्रारंभ किया। त्रिशंकु धरती से स्वर्ग की ओर उठने लगे। यह देख देवताओं को चिंता हुई। भगवान इंद्र ने श्रापित त्रिशंकु को वापस धरती की ओर भेजा, लेकिन विश्वामित्र की शक्तियों के कारण वे नीचे भी नहीं आए और अंतरिक्ष में उल्टे लटक गए। विश्वामित्र ने अपनी शक्तियों से एक नए स्वर्ग की रचना प्रारंभ कर दी। तभी से त्रिशंकु नक्षत्रों के बीच उल्टे लटके हुए हैं।
 

वैसे त्रिशंकु भगवान शिव का भी नाम है क्योंकि वे त्रिशूल धारण करते हैं। तैत्तिरीय उपनिषद् में भी त्रिशंकु ऋषि का नाम आता है। हरिश्चंद्र को त्रिशंकु का पुत्र होने के कारण त्रैशंकव या त्रिशंकुज भी कहा जाता है।

देवी भागवत के ही अनुसार सत्यव्रत ने तीन पाप किए थे। इसके बाद वशिष्ठ ने उन्हें श्राप दिया और तीन शंकु या पाप की वजह से उनका नाम त्रिशंकु रख दिया। वैसे त्रिशंकु विधायिका में भी तीन पाप तो होने की आशंका होती ही है।

 

  •  जनादेश का अनादर
  •  सौदेबाजी
  • और भ्रष्टाचार की नींव पड़ जाती है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

विस्तार

विधानसभा में किसी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने पर अक्सर विश्लेषक और पत्रकार त्रिशंकु विधानसभा होने की बात करते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि ऐसा इसलिए क्योंकि तब तीन पक्ष हो जाते हैं। यह भी सही है, लेकिन त्रिशंकु अंग्रेजी के ‘हंग’ यानी लटका हुआ का बड़ा सुंदर अनुवाद है। सत्यव्रत या त्रिशंकु नाम था भगवान राम के एक पूर्वज का जो राजा हरिश्चंद्र के पिता थे।

 

त्रिशंकु का अर्थ हुआ तीन शूल या कांटे। शंकु का अर्थ पाप भी है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार त्रिशंकु सशरीर स्वर्ग जाना चाहते थे। उनके पुरोधा महर्षि वशिष्ठ ने इसके लिए मना कर दिया। वशिष्ठ के सौ बेटों ने भी त्रिशंकु के यज्ञ के लिए पुरोहित बनने से मना कर दिया और त्रिशंकु को भी श्राप दे दिया।


अब वशिष्ठ के विरोधी महर्षि विश्वामित्र ने त्रिशंकु पर तरस खाकर उनके लिए यज्ञ करना प्रारंभ किया। त्रिशंकु धरती से स्वर्ग की ओर उठने लगे। यह देख देवताओं को चिंता हुई। भगवान इंद्र ने श्रापित त्रिशंकु को वापस धरती की ओर भेजा, लेकिन विश्वामित्र की शक्तियों के कारण वे नीचे भी नहीं आए और अंतरिक्ष में उल्टे लटक गए। विश्वामित्र ने अपनी शक्तियों से एक नए स्वर्ग की रचना प्रारंभ कर दी। तभी से त्रिशंकु नक्षत्रों के बीच उल्टे लटके हुए हैं।

 

देवी भागवत् के अनुसार विश्वामित्र के नए स्वर्ग से घबराकर इंद्र विश्वामित्र के पास आए और त्रिशंकु को दिव्य शरीर देकर स्वर्ग ले गए। ऐसा लगता है कि इसी कहानी के आधार पर अस्पष्ट जनमत वाली विधायिका को त्रिशंकु नाम दिया गया।


वैसे त्रिशंकु भगवान शिव का भी नाम है क्योंकि वे त्रिशूल धारण करते हैं। तैत्तिरीय उपनिषद् में भी त्रिशंकु ऋषि का नाम आता है। हरिश्चंद्र को त्रिशंकु का पुत्र होने के कारण त्रैशंकव या त्रिशंकुज भी कहा जाता है।

देवी भागवत के ही अनुसार सत्यव्रत ने तीन पाप किए थे। इसके बाद वशिष्ठ ने उन्हें श्राप दिया और तीन शंकु या पाप की वजह से उनका नाम त्रिशंकु रख दिया। वैसे त्रिशंकु विधायिका में भी तीन पाप तो होने की आशंका होती ही है।

 

  •  जनादेश का अनादर
  •  सौदेबाजी
  • और भ्रष्टाचार की नींव पड़ जाती है।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।



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