Imran’s Long march: पाकिस्तान में सियासी अराजकता के चलते कई बार लगा मार्शल लॉ, कैसे रहे हैं पहले के मार्च?


पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन का जरिया रहा है लॉन्ग मार्च

पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन का जरिया रहा है लॉन्ग मार्च
– फोटो : अमर उजाला

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पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान लाहौर से इस्लामाबाद के बीच लॉन्ग मार्च निकाल रहे हैं। आजादी मार्च के नाम से निकल रहे इस लॉन्ग मार्च को लेकर एक ही मांग है कि देश में तुरंत चुनाव हों। इमरान खान ने शुक्रवार को लाहौर के लिबर्टी चौक पर इस मार्च को संबोधित करके इसकी शुरुआत की। 

पाकिस्तान में इस तरह का ये पहला मार्च नहीं है और ना ही ये इमरान खान का पहला मार्च है। ऐसे लॉन्ग मार्च पिछले 69 साल में कई निकल चुके हैं। कुछ सत्ता बदलने तक के गवाह रहे तो कुछ असफल भी रहे हैं। इमरान के इस लॉन्ग मार्च की वजह क्या है? इससे पहले इमरान कब-कब लॉन्ग मार्च निकाल चुके हैं? पहले इस तरह के मार्च कब-कब निकल चुके हैं? पहली बार इस तरह का लॉन्ग मार्च कब और किसने निकाला था और उसका क्या नतीजा रहा था? आइये जानते हैं…

 

इमरान के इस मार्च की वजह क्या है? 
इमरान खान और उनकी पार्टी द्वारा यह मार्च पाकिस्तान में तुरंत आम चुनाव कराने की मांग को लेकर निकाला जा रहा है। इमरान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) की मांग है कि देश में तत्काल नए, स्वच्छ और पारदर्शी चुनाव का एलान किया जाए। लॉन्ग मार्च से पहले की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस में इमरान के कहा कि हम पाकिस्तान के भविष्य के लिए लड़ रहे हैं। सत्ताधारी गठबंधन पर हमला बोलते हुए इमरान कहा, ‘यह मार्च ठगों और चोरों के खिलाफ जिहाद है। ये लोग विदेशी षड्यंत्र की मदद से हम पर थोपे गए हैं। यह असली आजादी के लिए निकाला जा रहा मार्च है।’

दरअसल सत्ता से बेदखल किए जाने के बाद से ही इमरान लगातार मौजूदा संसद को भंग करके नए सिरे से चुनाव की मांग पर अड़े हुए हैं। इमरान लगातार शहबाज शरीफ सरकार पर विदेशी साजिश की मदद से सत्ता हासिल करने का आरोप लगा रहे हैं। हाल ही में केन्या में हुई एक पाकिस्तानी पत्रकार की हत्या के बाद उन्होंने इस मामले में सेना और ISI को भी घेर लिया। इसके बाद से कहा जा रहा है कि इमरान ने तीन मोर्चे एक साथ खोल दिए हैं। 

इससे पहले इमरान कब-कब लॉन्ग मार्च निकाल चुके हैं?
सत्ता से बेदखल होने के बाद बीती मई में भी इमरान ने इस तरह का मार्च निकालने का एलान किया था। हालांकि, संसद परिसर के बाहर इमरान समर्थकों और सुरक्षाकर्मियों के बीच हुई झड़प के बाद ये मार्च स्थगित कर दिया गया था। ऐसा नहीं कि इमरान ने सत्ता जाने के बाद मार्च का रास्ता चुना है। इमरान इसी मार्च के रास्ते ही सत्ता तक भी पहुंचे थे।  

2013 के आम चुनाव में हार के बाद इमरान खान ने चुनाव में धांधली के आरोप लगाए। 14 अगस्त 2014 को इमरान की पार्टी PTI ने आजादी मार्च शुरू किया। ये लॉन्ग मार्च भी लाहौर से शुरू होकर इस्लामाबाद पर खत्म हुआ था। तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के इस्तीफे की मांग को लेकर शुरू हुआ ये आंदोलन 126 दिन चला। इस आंदोलन को अनवरत मीडिया कवरेज भी मिला। यहां तक कहा जाता है कि PTI द्वारा शुरू हुए इस आंदोलन में आम पाकिस्तानी लोगों, युवाओं, महिलाओं ने भी हिस्सा लिया। 126 दिन चले आजादी मार्च में दस लाख से ज्यादा लोग शामिल हुए।

इमरान को मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था से नाराज युवाओं का भी भारी समर्थन मिला। इस आंदोलन के बाद इमरान की लोकप्रियता बहुत बढ़ गई। 17 दिसंबर 2014 को पेशावर के स्कूल पर हुए आतंकी हमले के बाद इमरान ने अपना आजादी मार्च वापस ले लिया। इस लॉन्ग मार्च ने ही इमरान के राजनीति कद को बढ़ाया और उनके राजनीतिक करियर को संजीवनी देने का काम किया। इसी का नतीजा था कि 2018 में इमरान सेना के समर्थन से प्रधानमंत्री बन गए। 

इमरान के सत्ता में रहने के दौरान क्या कोई लॉन्ग मार्च निकला?
सत्ता में रहते हुए इमरान को भी अपने खिलाफ लॉन्ग मार्च से संघर्ष करना पड़ा।  2019 में मौलाना फजल-उल-रहमान की जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (F) ने इमरान सरकार के खिलाफ लॉन्ग मार्च निकाला था। मौलाना और उनके हजारों समर्थकों ने इस्लामाबाद तक मार्च निकाला। प्रदर्शनकारी पाकिस्तान में बढ़ते आर्थिक संकट की वजह से इमरान के इस्तीफे की मांग कर रहे थे। ये प्रदर्शन केवल दो हफ्ते ही चल सका और इमरान सत्ता में बने रहे।  

यहीं से इमरान सरकार के खिलाफ संकट की शुरुआत मानी जाती है। अक्तूबर 2020 में 11 विपक्षी पार्टियों के गठबंधन पाकिस्तान डेमोक्रेटिव मूवमेंट (PMD) ने गुजरावाला में सरकार विरोधी प्रदर्शन शुरू किए। फरवरी-मार्च 2022 में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) के बिलावल भुट्टो-जरदारी ने भी इमरान सरकार के खिलाफ आवामी मार्च निकाला था। 10 दिन चला यह मार्च 34 शहरों से गुजरा। इसका समापन इस्लामाबाद में हुआ।

पहली बार इस तरह का लॉन्ग मार्च कब और किसने निकाला था और उसका क्या नतीजा रहा था?
पाकिस्तान में इस तरह के मार्च उसके गठन के चंद साल बाद ही शुरू हो गए थे। 1947 में पाकिस्तान गठन के महज छह साल बाद 1953 में इस तरह का पहला आंदोलन हुआ। जब लाहौर से बड़ी संख्या में लोगों ने तत्कालीन राजधानी करांची पर चढ़ाई कर दी थी। विरोध इतना उग्र था कि सरकार के मंत्रियों की रक्षा के लिए उनके घरों पर तोपें तैनात करनी पड़ी थीं। इस दौरान 700 से ज्यादा आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया। इसकी प्रतिक्रिया में लाहौर में दंगे भड़क उठे। स्थिति को नियंत्रण में करने के लिए कर्फ्यू लगाना पड़ा। तब भी हालात नहीं सुधरे तो लाहौर में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया। यह पाकिस्तान का पहला मार्शल लॉ था।  

पहले इस तरह के मार्च और कब-कब निकल चुके हैं?

  • 1959 में चुनाव कराने के लिए विरोध प्रदर्शन शुरू हुए। उस वक्त इन्हें लॉन्ग मार्च नाम तो नहीं दिया गया था लेकिन, ये उसी शक्ल के थे। करीब 18 किलोमीटर लंबे मार्च ने तत्कालीन शासकों को झकझोर दिया। आंदोलन को कुचलने के लिए खान अब्दुल कय्यूम खान को गिरफ्तार कर लिया गया। उनकी गिरफ्तारी ने प्रतिरोध की कमर तोड़ दी। इसी के बाद पाकिस्तान में पहली बार मार्शल लॉ लगा। 
  • 1968 में तत्कालीन सैनिक शासक अयूब खान के खिलाफ इसी तरह का मार्च निकाला गया था। इस मार्च में करीब एक से डेढ़ करोड़ आम लोगों और छात्रों ने हिस्सा लिया था। मार्च की वजह से लगातार बढ़ते भारी दबाव के चलते 1969 में अयूब खान को इस्तीफा देना पड़ा। 
  • 1977 में पाकिस्तान नेशनल अलायंस (PNA) ने प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टो को सत्ता से हाटने और नए सिरे से चुनाव कराने के लिए मार्च निकाला। बढ़ते विरोध के बीच जनरल जिया उल हक के नेतृत्व में सेना ने भुट्टो को सत्ता से बेदखल कर दिया। हालांकि, चुनाव कराने के अपने मूल उद्देश्य में सफल नहीं हो सका। इस लॉन्ग मार्च में आठ मार्च, 1977 से पांच जुलाई, 1977 तक, देशभर में लगभग 425 लोगों की मौत हुई थी। 
  • 1980 में पाकिस्तान की अल्पसंख्यक शिया कमेटी ने मुफ्ती जाफर हुस्सैन के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन किया। ये इस्लामाबाद में हुआ अपनी तरह का पहला बड़ा प्रदर्शन था। प्रदर्शनकारियों ने फेडरल सेक्रेटेरियेट को घेर लिया। इस वजह से जिया सरकार को जकात और उर्स ऑर्डिनेंस वापस लेना पड़ा। 

बेनजीर भुट्टो ने इन प्रदर्शनों को दिया लॉन्ग मार्च का नाम   

  • पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन का जरिया बन चुके इस तरह के प्रदर्शनों को 1992 में लॉन्ग मार्च नाम मिला। जब बेनजीर भुट्टो ने नवाज शरीफ सरकार के खिलाफ इसका एलान किया। ये लॉन्ग मार्च लाहौर से शुरू होना था। सरकार ने इसे रोकने के लिए पूरे इस्लामाबाद को सेना के हवाले कर दिया। बेनजीर को घर में एक तरह से नजरबंद कर दिया गया। इसके बाद भी वह रावलपिंडी पहुंचने में सफल रहीं थीं। हालांकि, उन्हें बहुत ज्यादा समर्थन नहीं मिलने की वजह से ये विफल रहा।
  • एक साल बाद 1993 में बेनजीर ने फिर से लॉन्ग मार्च निकालने का एलान किया। मार्च निकलने से पहले ही नवाज शरीफ सरकार गिर गई। 

बेनजीर को भी करना पड़ा ऐसे ही विरोध का सामना
1993 में हुए चुनाव के बाद सत्ता में आईं बेनजीर भुट्टों को भी ऐसे ही प्रदर्शन का सामना करना पड़ा। काजी हुसैन अहमद ने बेनजीर भुट्टो सरकार के खिलाफ धरना दिया और उनकी सरकार गिर गई। नवाज शरीफ दो-तिहाई बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब हुए। नवाज के दूसरे कार्यकाल के दौरान लॉन्ग मार्च जैसी कोई घटना नहीं हुई। 

जब न्यायपालिका के लोगों ने जज को न्याय दिलाने के लिए लिया लॉन्ग मार्च का सहारा
नौ मार्च 2007 को पाकिस्तान के चीफ जस्टिस इफ्तेखार मोहम्मद चौधरी को निलंबित कर दिया गया। जनरल परवेज मुशर्रफ के इस असंवैधानिक फैसले के खिलाफ न्यायमूर्ति चौधरी और वकील नेताओं ने चीफ जस्टिस की बहाली के लिए लॉन्ग मार्च निकाला। इस लॉन्ग मार्च में करीब 80 हजार वकीलों ने हिस्सा लिया। इसके चलते जस्टिस चौधरी को बहाल कर दिया गया। हालांकि, नवंबर 2007 में परवेज मुशर्रफ ने आपातकाल लगा दिया और जस्टिस चौधरी समेत देश के 60 जजों को पद से हटा दिया।  
जून 2008 में एक बार फिर वकील सड़कों पर उतर आए और इस्लामाबाद के लिए लॉन्ग मार्च निकाला। ये लोग मुशर्रफ के इस्तीफे का मांग कर रहे थे। इसके साथ ही 60 जजों की फिर से बहाली भी चाहते थे। वकीलों के विरोध प्रदर्शन को राजनीतिक दलों का भी समर्थन मिला। बढ़ते दवाब के बीच मुशर्रफ के इस्तीफा देना पड़ा।  

विस्तार

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान लाहौर से इस्लामाबाद के बीच लॉन्ग मार्च निकाल रहे हैं। आजादी मार्च के नाम से निकल रहे इस लॉन्ग मार्च को लेकर एक ही मांग है कि देश में तुरंत चुनाव हों। इमरान खान ने शुक्रवार को लाहौर के लिबर्टी चौक पर इस मार्च को संबोधित करके इसकी शुरुआत की। 

पाकिस्तान में इस तरह का ये पहला मार्च नहीं है और ना ही ये इमरान खान का पहला मार्च है। ऐसे लॉन्ग मार्च पिछले 69 साल में कई निकल चुके हैं। कुछ सत्ता बदलने तक के गवाह रहे तो कुछ असफल भी रहे हैं। इमरान के इस लॉन्ग मार्च की वजह क्या है? इससे पहले इमरान कब-कब लॉन्ग मार्च निकाल चुके हैं? पहले इस तरह के मार्च कब-कब निकल चुके हैं? पहली बार इस तरह का लॉन्ग मार्च कब और किसने निकाला था और उसका क्या नतीजा रहा था? आइये जानते हैं…

 





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