बहुत हुई ऑनलाइन क्लासेज! जानें वे 7 कारण, आखिर क्यों आपके बच्चे को स्कूल जाना चाहिए


हिमानी चंदाना

नई दिल्ली: कोविड-19 महामारी (Covid-19 Pandemic) के कारण स्कूल बंद होने से बच्चे परेशान हैं और ऑनलाइन क्लासेज (Online Classes) के कारण अभिभावक चिंतित हैं. मेरी 7 साल की बेटी हमेशा क्रिसमस पर सेंटा क्लॉज से कुछ गिफ्ट मांगती थी लेकिन इस बार उसने सेंटा से कहा कि वह घर पर बैठे-बैठे परेशान हो गई है और स्कूल जाना चाहती है. उसने कहा कि मैं अपने दोस्तों से मिलना चाहती हूं. अपनी बेटी की यह बात जानकार मैं हैरान हूं.

पहले मुझे लगता था कि सब कुछ ठीक है बस ऑनलाइन क्लासेज को छोड़कर, क्योंकि बच्चों को ज्यादातर वक्त स्क्रीन के सामने गुजारना पड़ता था. लेकिन अब मुझे यह अहसास हुआ कि इन सबके बीच बच्चे क्या खो रहे हैं. मैंने दो अलग-अलग नजरियों से सोचा.

पहला- स्कूल में कुछ नया सीखने का नुकसान, शारीरिक और मानसिक विकास पर प्रभाव, कमजोर सोशल स्किल्स
दूसरा- दोबारा से प्राइमरी और सेकेंडरी एजुकेशन में बच्चों का प्रवेश, लड़कियों के स्कूल छूटने की संभावना और शिक्षा से संबंधित
अन्य समस्याएं

भारत में मार्च 2020 से कोरोना महामारी के कारण स्कूल पूरी तरह से बंद रहे. हालांकि यह सही फैसला था क्योंकि हम जानते थे कि वायरस से बचने के लिए यह जरूरी है और बच्चों समेत देश की कमजोर आबादी को वायरस के प्रकोप से बचाना आवश्यक था. हालांकि अब लगभग 600 दिन बीत चुके हैं और हम कोरोना की तीसरी लहर को देख चुके हैं. साथ ही वायरस को लेकर अब स्थिति बेहतर है.

यूनेस्को के अनुसार, दुनियाभर में भारत में सबसे ज्यादा दिन स्कूल बंद रहे हैं. यहां 82 सप्ताह या डेढ़ साल तक स्कूल बंद रहे. यह अवधि मार्च 2020 से अक्टूबर 2021 के बीच की रही. वहीं इस मामले में युगांडा पहले नंबर पर रहा. यहां स्कूल 83 सप्ताह तक बंद रहे.

हालांकि भारत में कोविड-19 के कारण राष्ट्रीय स्तर पर स्कूल 25 हफ्तों तक लगातार बंद रहे. वहीं आंशिक रूप से स्कूल 57 सप्ताह तक बंद रहे, जिनमें कुछ राज्यों और विभिन्न ग्रेड के स्कूल शामिल हैं.

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यूनिसेफ के डाटा से पता चलता है कि भारत में स्कूल के बंद होने से प्राइमरी और सेकेंडरी शिक्षा से जुड़े 24.7 करोड़ छात्र और प्री स्कूल एजुकेशन के 2.8 करोड़ बच्चे प्रभावित हुए हैं.

बच्चों में मिले सिर्फ हल्के लक्षण

शिशु रोग विशेषज्ञ समेत किसी एक डॉक्टर ने हम नहीं कहा कि कोविड-19 वायरस बच्चों के लिए घातक है. इनमें प्राइवेट क्लिनिक और पब्लिक हॉस्पिटल संचालित करने वाले सभी डॉक्टर्स शामिल हैं.

अब तक कोरोना महामारी की तीनों लहर में बच्चों में कोविड-19 के सिर्फ हल्के लक्षण दिखे और बच्चे एक सप्ताह के अंदर स्वस्थ भी हुए. सरकार के आंकड़ों से भी पता चलता है कि कोरोना महामारी की दूसरी लहर में सिर्फ 20 साल से कम उम्र के बच्चों के संक्रमित होने की संख्या आबादी के लिहाज से सिर्फ 12 प्रतिशत थी. वहीं अस्पतालों में कभी कोई ऐसा मामला देखने में नहीं आया जब किसी बच्चे को कोविड-19 संक्रमण के कारण किसी गंभीर बीमारी के चलते भर्ती किया गया हो.

वैक्सीनेशन के लिए ज्यादा इंतजार मुश्किल

साइंटिस्ट और वैक्सीन एक्सपर्ट्स के अनुसार, 12 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए कोरोना वैक्सीन की इतनी ज्यादा जरूरत नहीं है. NTAGI पैनल के सदस्य और महामारी रोग विशेषज्ञ डॉ जयप्रकाश मुलियिल ने इंटरव्यू में कहा कि, उन्होंने भारत सरकार को यह बताया कि बच्चे स्वस्थ हैं और हमें उनका वैक्सीनेशन अभी फिलहाल नहीं करना चाहिए.

वहीं मशहूर वायरोलॉजिस्ट डॉ गगनदीप कांग ने कहा कि ऐसे कई सवालों का जवाब ढूंढना बाकी है जिसके आधार पर भारत में 12 साल से कम उम्र के बच्चों का टीकाकरण शुरू करने से पहले उन पर विचार करने की जरूरत है.

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ऑनलाइन क्लासेस समाधान नहीं

चाइल्ड साइकोलॉजी और शिक्षा विशेषज्ञों का मानना ​​है कि ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से बच्चों में सामाजिक, भावनात्मक और संज्ञानात्मक क्षमताओं का विकास नहीं किया जा सकता है. उदाहरण के तौर पर अजीम प्रेम जी यूनिवर्सिटी की एक स्टडी में पाया गया कि लंबे समय तक स्कूल बंद रहने से बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है.

वहीं एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि औसतन 92% बच्चों ने एक विशिष्ट भाषा में अपनी क्षमता खो दी है और 82% बच्चों ने पिछले वर्ष की तुलना में कक्षा 2 से 6 के छात्रों ने विशिष्ट गणितीय क्षमता कम हो गई. यह स्टडी 16 हजार स्कूली बच्चों पर की गई थी. जिसमें छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड के स्कूल शामिल थे.

वहीं एक ग्लोबल स्टडी में कहा गया कि, ऑनलाइन क्लासेज बच्चों के लिए घातक साबित हो सकती है. क्योंकि इससे इंटरनेट पर उपलब्ध आपत्तिजनक कंटेंट का बच्चे शिकार हो सकते हैं.

शारीरिक और मानसिक परेशानी

सूखी आंखें, मोटापा, विटामिन डी की कमी, खराब नींद, गुस्से की समस्या और बोलने में देरी में, ये बच्चों पर पड़ने वाले कोविड-19 के कुछ स्पष्ट प्रभाव हैं. शिशु रोग विशेषज्ञों ने कहा कि स्कूल बंद होने के कारण बच्चों की सेहत से जुड़े मामलों में वृद्धि हुई है.

इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के एक रिसर्च पेपर के अनुसार, कोरोना महामारी के कारण बच्चों और किशोरों में मनोसामाजिक, व्यवहार संबंधी समस्याएं और व्याकुलता बढ़ी है.

मेट्रो से बाहर के हालात

यूनिसेफ के एक अनुमान मुताबिक महामारी से पहले सिर्फ एक चौथाई भारतीय घरों में इंटरनेट की सुविधा थी. फिर महामारी के दौरान ऑनलाइन क्लास कैसे संभव हो सकती थी? क्या सुविधा और संसाधनों की कमी व उनकी उपलब्धता से जुड़े खर्चे हर परिवार उठा सकता था.

स्कूल चिल्ड्रन्स ऑनलाइन एंड ऑफलाइन नामक सर्वे, जो कि अगस्त 2021 में हुआ. इसमें यह पाया गया कि ग्रामीण क्षेत्र के 1400 स्कूल में सिर्फ 8 फीसदी बच्चे को ही ऑनलाइन क्लास की सुविधा मिल रही है जबकि 37 प्रतिशत बच्चे नहीं पढ़ रहे हैं और आधे से ज्यादा बच्चे ऑनलाइन क्लास के दौरान कुछ ही अक्षर मुश्किल से पढ़ पाते थे.

छात्राओं की अलग परेशानी

कोरोना महामारी के कारण स्कूल बंद होने से लड़कियां इससे कई तरह से प्रभावित हुईं. नेशनल राइट टू एजुकेशन फोरम पॉलिसी केअनुसार, सेकेंडरी स्कूल की करीब 1 करोड़ लड़कियों का स्कूल छूट सकता है. हालांकि इसके कई कारण हैं. लेकिन इस फोरम ने चेतावनी देते हुए कहा कि महामारी की वजह से लड़कियों की शिक्षा और प्रभावित होगी.

परिवार और शिक्षकों का वैक्सीनेशन पूर्ण हुआ

बच्चों को वायरस से बचाने के अलावा, स्कूलों को बंद करने का फैसला इस बात को ध्यान में रखकर लिया गया था कि बच्चों के माध्यम से परिजन भी संक्रमित हो सकते हैं. लेकिन अब ज्यादातर भारतीय परिवारों में सभी वयस्क लोगों को कोरोना वैक्सीन की सुरक्षा मिल चुकी है.

वहीं दूसरी चिंता शिक्षकों को संक्रमण से बचाने की थी. हालांकि इसके बावजूद केंद्र सरकार ने टीचर्स को फ्रंटलाइन वर्कर की श्रेणी में शामिल नहीं किया. हालांकि अब शिक्षक पूरी तरह से वैक्सीनेटेड हैं.

तो फिर क्या वजह है कि भारत में क्यों नहीं खोले जा रहे हैं? अब हमें जिला और ब्लॉक स्तर पर महामारी से संबंधित डाटा का अध्ययन करके स्कूलों को खोलने की जरूरत है.

Tags: Coronavirus, Coronavirus school opening

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