जयंती विशेष: पिता के साथ गोरखपुर आए थे मुंशी प्रेमचंद, यहां दो कहानियां लिखकर बने थे कथा सम्राट


उपन्यास और कहानियों के सम्राट कहे जाने वाले मुंशी प्रेमचंद का गोरखपुर से गहरा नाता रहा। उनका बचपन शहर की गलियों में बीता ही था लेकिन जब वह नौकरी के दौरान गोरखपुर आए तो शहर के बेतियाहाता स्थित निकेतन में पांच साल रहकर उन्होंने अपनी दो मशहूर कहानियां लिखी थीं।

धनपत राय ‘मुंशी प्रेमचंद’ का बचपन गोरखपुर के तुर्कमानपुर मोहल्ले में ही बीता था, शिक्षा विभाग की नौकरी के दौरान उनका तबादला हुआ तो वह 1916 में गोरखपुर दोबारा आए। उन्होंने बेतियाहाता स्थित मुंशी प्रेमचंद पार्क में स्थित निकेतन को अपना आशियाना बनाया। उसके बाद वह इस निकेतन में तबतक रहे, जब तक उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र नहीं दे दिया।

 

त्यागपत्र देने की वजह महात्मा गांधी का वह प्रभावशाली भाषण था, जो उन्होंने 1921 में बाले मियां के मैदान में आयोजित एक विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए दिया था। त्यागपत्र देने के तीन दिन बाद ही वह निकेतन छोड़कर वाराणसी चले गए।

मुंशी प्रेमचंद के बचपन के चार वर्ष गोरखपुर में बीते। वह इस शहर में पहली बार 1892 में अपने पिता मुंशी अजायबराय के साथ आए, जो डाक विभाग में मुलाजिम थे। चार वर्ष के प्रवास के दौरान उन्होंने यहां रावत पाठशाला और मिशन स्कूल से आठवीं कक्षा पास की। इनसे हटकर धनपत राय के गोरखपुर में अनौपचारिक शिक्षा के भी केंद्र थे, जिनसे यह महान कथाकार निकला।

 

‘ईदगाह’ और ‘नमक’ का दारोगा लिखी

‘ईदगाह’ और ‘नमक का दारोगा’ जैसी मशहूर कहानियां प्रेमचंद ने बेतियाहाता स्थित निकेतन में रहने के दौरान लिखी थीं। ईदगाह की पृष्ठभूमि उन्हें निकेतन के ठीक पीछे मौजूद हजरत मुबारक खां शहीद के दरगाह के सामने की ईदगाह से मिली थी तो नमक का दारोगा की पृष्ठभूमि राप्ती नदी के घाट से। निकेतन को धरोहर मानते हुए यहां पार्क विकसित कर दिया गया और उस पार्क को मुंशी जी का नाम दे दिया गया।

 

 लाइब्रेरी का हो रहा संचालन

निकेतन में मुंशी प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी की ओर से बनवाई गई प्रेमचंद की प्रतिमा उनकी याद के तौर पर मौजूद थी, जिसे 2014 में एक तत्कालीन अपर आयुक्त ने पार्क के गेट पर स्थापित करवा दिया। वर्तमान में निकेतन में प्रेमचंद साहित्य संस्थान की ओर से लाइब्रेरी का संचालन किया जाता है।



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