सियासी समझ और सीख : लोकतंत्र में आखिर कौन चाहता है सख्त नेता? विनम्र नेता सर्वश्रेष्ठ होते हैं


एक अमेरिकी मुहावरा है, ‘जब हालात मुश्किल होने लगते हैं, तब सख्त लोग आगे आकर उसे नियंत्रित करते हैं।’ मैं हमेशा सोचता हूं कि आखिर ‘सख्त’ से क्या आशय है। अलग-अलग संदर्भों में इस शब्द के अर्थ अलग हैं। ‘सख्त’का अर्थ दृढ़ निश्चय हो सकता है; कठिनाई से निपटने की क्षमता; मुश्किल (कठिन खेल के रूप में); या अड़ियल। सख्त का अर्थ धमकाने वाला या कठोर और हिंसक व्यक्ति भी हो सकता है।

मुक्तिदाता से सख्त तक
आमतौर पर लोकतांत्रिक तरीके से चुना गया कोई नेता लंबे समय तक सत्ता में रहने के बाद हटने का इच्छुक नहीं होता और ‘सख्त’ हो जाता है। हिटलर के समय मेरा जन्म नहीं हुआ था। बड़ा होने पर मैं यह देखकर मायूस हुआ कि जवाहरलाल नेहरू के करीबी दोस्त मुक्तिदाता से ‘सख्त’ नेताओं में बदल चुके हैं: क्वामे एन्क्रूमाह, जोसेफ ब्रोज टीटो, गमेल अब्दुल नसीर और सुकार्णो। इनमें से प्रत्येक ने अपने देश में मुक्ति संग्राम का नेतृत्व किया, लोकप्रिय निर्वाचन से चुने गए, लोगों की प्रशंसा हासिल की, लेकिन अंत में सख्त बन गए और लोकतंत्र और अपनी विरासत को उन्होंने दफन कर दिया।

पंचशील पर दस्तख्त करने वाले पांच हस्ताक्षरकर्ताओं में जवाहरलाल नेहरू अपवाद थे। उनके प्रधानमंत्रित्व काल में हुए सारे चुनाव- 1952, 1957 और 1962- सही मायने में लोकतांत्रिक चुनाव थे। उनके चुनावी भाषण लोकतंत्र के सबक की तरह होते थे। सभाओं में आए अधिकांश लोग अंग्रेजी नहीं समझते थे, लेकिन वे महसूस कर सकते थे कि वह लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्र निर्माण के मुश्किल काम, गरीबी उन्मूलन और सरकार की भूमिका इत्यादि के बारे में बोल रहे थे। 

नेहरू एक प्रिय नेता थे, लेकिन वह कभी ‘सख्त’ नहीं बने। मौजूदा विश्व सख्त नेताओं से अटा पड़ा है। यदि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हों, तो उनमें से एक भी निर्वाचित नहीं होगा। प्रमुख सख्त नेताओं में ब्राजील के जाएर बोल्सोनारो, तुर्की के रिसेप एर्डोगन, मिस्र के अब्दुल अल सीसी, हंगरी के विक्टर ओर्बन, बेलारूस के एलेक्जेंडर लुकाशेंको, उत्तर कोरिया के किम जोंग उन और ऐसे दर्जन भर नेता शामिल हैं, जिन्हें उनके देश या उनके महाद्वीप से बाहर कोई नहीं जानता। 

व्लादिमीर पुतिन अपने ढंग के अलग नेता हैं। शी जिनपिंग भी। दोनों ही सख्त नेता हैं और जिन्होंने आजीवन सत्ता में बने रहने की योजना बनाई है। मैं जब यह लेख लिख रहा हूं, सख्त रूसी नेता बेबस यूक्रेन पर रॉकेट और बम बरसा रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक, अभी ऐसे 52 देश हैं, जिनकी सरकारों को तानाशाही कहा जा सकता है।

मोदी को ‘सख्त’ नेता पसंद हैं
उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने ‘सख्त’ नेता चुनने पर सहमति जताई। बहराइच में मोदी ने कहा, ‘जब दुनिया में उथल-पुथल चल रही है, भारत को मजबूत होने की जरूरत है और मुश्किल समय के लिए एक सख्त नेता की जरूरत है।’ इत्तफाक से बहराइच उत्तर प्रदेश के उन तीन जिलों में शामिल है, जहां नीति आयोग के मुताबिक गरीबी का अनुपात 70 फीसदी से अधिक है।

मोदी स्पष्ट तौर पर चाहते हैं कि उत्तर प्रदेश के भाजपा नेता आदित्यनाथ दोबारा निर्वाचित हों, क्योंकि आदित्यनाथ एक ‘सख्त’ नेता हैं, जिनकी इस ‘मुश्किल’ समय में जरूरत है। आदित्यनाथ कानून और व्यवस्था को लागू करने में विश्वास करते हैं और विरोध को बर्दाश्त नहीं करते। ‘मुठभेड़’ को आधिकारिक मंजूरी है। किसी अपराधी को अदालत में पेश करने और दंडित किए जाने की जरूरत नहीं है, उसे ‘मुठभेड़’ में मारा जा सकता है। द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट (13 जुलाई, 2021) के मुताबिक, मार्च, 2017 से जून, 2021 के दौरान पुलिस मुठभेड़ में 139 अपराधी मारे गए और 3,196 घायल हो गए।

आदित्यनाथ का एक पसंदीदा शब्द है, ‘बुलडोजर’। 27 फरवरी, 2022 को सुलतानपुर जिले के करका बाजार में एक रैली को संबोधित करते हुए आदित्यनाथ ने कहा, ‘हमने यह मशीन विकसित की है, जो एक्सप्रेस हाईवे बनाती है और माफियाओं और अपराधियों से भी निपटती है। जब मैं यहां आ रहा था, तो मैंने चार बुलडोजर देखे। मुझे लगता है कि पांच विधानसभाएं हैं, हम प्रत्येक जगह एक भेजेंगे, तो सब कुछ ठीक हो जाएगा,’ (इंडिया टुडे)। उत्तर प्रदेश में भवनों (कथित रूप से अवैध) को गिराने या खाली करवाने में बुलडोजरों के इस्तेमाल के लिए अदालत के आदेश या कानूनी प्रक्रिया की जरूरत नहीं है।

आदित्यनाथ इतने सख्त हैं कि हाथरस में बलात्कार और हत्या के एक मामले को कवर करने गए केरल के एक पत्रकार सिद्धीकी कप्पन को पांच अक्तूबर, 2020 से जेल में बंद रखा गया है। द वायर के मुताबिक आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद से कुल 12 पत्रकार मारे गए हैं, 48 पर हमले हुए हैं और 66 के खिलाफ मामले दर्ज किए गए हैं या उन्हें गिरफ्तार किया गया है। 

सख्त मुख्यमंत्री ने अपनी पार्टी को 403 विधानसभा क्षेत्रों में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट न देने के लिए राजी किया, जबकि राज्य की आबादी में मुस्लिमों की 20 फीसदी की हिस्सेदारी है। सख्त नेता के अधीन यू.पी.गरीब है, लोग गरीब हो गए हैं और पांच साल में राज्य के कर्ज में 40 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है जो कि बढ़कर 6,62,891 करोड़ रुपये हो गया है।

विनम्र और समझदार
मैं समझता हूं कि विनम्र नेता सर्वश्रेष्ठ होते हैं। वे बुद्धिमान होते हैं, धीरे से बोलते हैं, लोगों की सुनते हैं, संस्थानों और कानून का सम्मान करते हैं, विविधता का उत्सव मनाते हैं, लोगों के बीच सद्भाव के लिए काम करते हैं और कार्यकाल पूरा होने पर चुपचाप सत्ता छोड़ देते हैं। वे लोगों का जीवन बेहतर बनाते हैं। वे नौकरियां, बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सुरक्षा उपलब्ध करवाते हैं। वे युद्ध के खिलाफ हैं और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करते हैं। 

दुनिया में ऐसे नेता रहे हैं और अब भी हैं। अतुलनीय नेलसन मंडेला ऐसे ही नेता थे। जर्मनी की पूर्व चांसलर एजेंला मर्केल, न्यूजीलैंड की जेसिंडा आर्डेन और नीदरलैंड के प्रधानमंत्री मार्क रूट ऐसे ही कुछ अन्य नेता हैं। मैं नहीं जानता कि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा के लोग किस तरह का नेता चुनेंगे। यदि इन राज्यों में मुझे वोट देने का अधिकार होता, तो मैं एक विनम्र और बुद्धिमान नेता के लिए वोट करता।



Source link

Enable Notifications OK No thanks