Pradosh Vrat 2022: मार्च महीने में दो बार पड़े रहे हैं भौम प्रदोष व्रत, जानें तिथि, विधि और कथा


Pradosh Vrat 2022 march date - India TV Hindi
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Pradosh Vrat 2022 march date 

Highlights

  • मार्च 2022 में दोनों प्रदोष व्रत मंगलवार को पड़ रहे हैं
  • प्रदोष व्रत के दौरान भगवान शिव की पूजा करने का विधान

प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को भगवान शंकर को समर्पित प्रदोष व्रत करने का विधान है। त्रयोदशी तिथि में रात्रि के प्रथम प्रहर यानि दिन छिपने के तुरंत बाद के समय को प्रदोष काल कहते हैं और प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में ही किया जाता है।  मार्च माह में 2 प्रदोष व्रत पड़ रहे हैं। जानिए तिथि, मुहूर्त और पूजा विधि। 

मार्च माह में कब-कब है प्रदोष व्रत

हिंदू पंचांग के अनुसार, मार्च माह में 2 प्रदोष व्रत पड़ रहे हैं, जिसमें पहला प्रदोष व्रत 15 मार्च और दूसरा 29 मार्च को पड़ रहा है। ये दोनों की प्रदो, व्रत मंगलवार को पड़ रहे हैं। 

अलग-अलग वार को पड़ने से प्रदोष का नामकरण भी अलग-अलग किया जाता है। जैसे सोमवार को प्रदोष व्रत पड़ता है तो सोम प्रदोष कहलाता है। वैसे ही मंगलवार को पड़ने वाले प्रदोष को भौम प्रदोष कहा जाता है। भौम प्रदोष का व्रत कर्ज से छुटकारा दिलाने में बहुत ही लाभदायक है। 

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भौम प्रदोष व्रत करने की विधि

प्रदोष व्रत के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर भगवान शिव का स्मरण करें। इसके साथ ही इस व्रत का संकल्प करें और दिनभर बिना अन्न ग्रहण किए व्रत रखें। इसके साथ ही भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा करके दिनभर शिव मंत्र का जाप करते रहें। 

शाम को सूर्यास्त होने के एक घंटें पहले स्नान करके सफेद कपड़े पहनें। इसके बाद ईशान कोण में किसी एकांत जगह पूजा करने की जगह बनाएं। इसके लिए सबसे पहले गंगाजल से उस जगह को शुद्ध करें फिर इसे गाय के गोबर से लिप लें। इसके बाद पद्म पुष्प की आकृति को पांच रंगों से मिलाकर चौक को तैयार करें। इसके बाद आप कुश के आसन में उत्तर-पूर्व की दिशा में बैठकर भगवान शिव की पूजा करें।

भगवान शिव का जलाभिषेक करें, साथ ही ‘ऊं नम: शिवाय:’ का जाप भी करते रहें। इसके बाद भगवान शिव की बेल पत्र, गंगाजल, अक्षत और धूप-दीप आदि से पूजा कर लें और फिर इस कथा को सुन कर आरती करें और प्रसाद सभी को बांट दें।

भौम प्रदोष व्रत कथा

स्कंद पुराण के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती और संध्या को लौटती थी। एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था। शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था। उसकी माता की मृत्यु भी अकाल हुई थी। ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया।

कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई। वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भदेश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया।

एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई। ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त “अंशुमती” नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे। गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए, कन्या ने विवाह करने के लिए राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया। दूसरे दिन जब वह दुबारा गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है। भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया।

इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया। यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था। स्कंदपुराण के अनुसार जो भक्त प्रदोषव्रत के दिन शिवपूजा के बाद एक्राग होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती।

 

 



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