Rajya Sabha Elections: नीतीश ने आरसीपी को भाजपा के भरोसे छोड़ा, अनिल हेगड़े को उम्मीदवार बनाकर खड़ा किया धर्म संकट


सार

अगर भाजपा सहमति नहीं देती तो आरसीपी की राज्यसभा सदस्यता के साथ मंत्री पद भी जाना तय है। भाजपा ने फिलहाल इस मामले में अपने पत्ते नहीं खोले हैं। उसकेलिए धर्मसंकट यह है कि पार्टी के दो सदस्य गोपाल नारायण सिंह और सतीश चंद्र दुबे की सीट खाली हो रही है। ऐसे में पार्टी एक सीट का नुकसान नहीं झेलना चाहती।

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केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह मोदी सरकार में मंत्री रहेंगे या नहीं यह भाजपा के रहमोकरम पर निर्भर करेगा। दरअसल नीतीश ने जदयू से अनिल हेगड़े को उम्मीदवार बना कर सिंह के भविष्य का फैसला भाजपा पर छोड़ दिया है। अगर भाजपा-जदयू में आरसीपी को उम्मीदवार बनाने पर सहमति नहीं बनी तो उन्हें मंत्रिमंडल से हटना होगा।

गौरतलब है कि बिहार में राज्यसभा की पांच सीटों के लिए चुनाव होने वाले हैं। संख्याबल के हिसाब से इन पांच सीटों में राजद और भाजपा के हाथ दो तो जदयू के हाथ एक सीट आनी है। हालांकि जदयू ने केंद्रीय मंत्री आरसीपी की जगह जार्ज फर्नांडिस के करीबी रहे अनिल हेगड़े को उम्मीदवार बना कर बड़ा पेच फंसा दिया है। आरसीपी अब तभी राज्यसभा जा सकते हैं जब भाजपा और जदयू में उन्हें उम्मीदवार बनाने पर सहमति बने। इस संबंध में भाजपा ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं।

ऐसे समझें राज्यसभा का गणित
राज्य में एक सीट जीतने के लिए 41 विधायकों के वोट की जरूरत है। जदयू के पास इस समय 45 विधायक हैं, जबकि उसे एक निर्दलीय विधायक का समर्थन हासिल है। भाजपा के पास 77 विधायक हैं। दूसरी सीट जीतने के लिए उसे पांच अतिरिक्त विधायकों के वोट की जरूरत है। यह कमी सहयोगी हम और जदयू के बाकी बचे पांच विधायकों के जरिए पूरी हो सकती है। राजद के पास 76 विधायक हैं। उसे भाकपा माले, कांग्रेस का समर्थन प्राप्त है। ऐसे में उसके लिए दो सीटें जीतना आसान है।

यहां फंसा पेच
संख्या बल के हिसाब से महज 46 विधायकों वाले जदयू को एक ही सीट मिल सकती है। ऐसे में पार्टी को अपने कोटे के केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह को उम्मीदवार बनाना चाहिए था। हालांकि नीतीश ने सिंह की जगह हेगड़े को उम्मीदवार बना कर पेच फंसा दिया है। नीतीश के इस दांव के बाद अब यह भाजपा को तय करना है कि वह आरसीपी को उम्मीदवार बनाने पर अपनी सहमति देगी या नहीं।

अगर भाजपा सहमति नहीं देती तो आरसीपी की राज्यसभा सदस्यता के साथ मंत्री पद भी जाना तय है। भाजपा ने फिलहाल इस मामले में अपने पत्ते नहीं खोले हैं। उसकेलिए धर्मसंकट यह है कि पार्टी के दो सदस्य गोपाल नारायण सिंह और सतीश चंद्र दुबे की सीट खाली हो रही है। ऐसे में पार्टी एक सीट का नुकसान नहीं झेलना चाहती।

क्या नाराज हैं नीतीश?
नीतीश के इस दांव के बाद सवाल उठ रहा है कि क्या नीतीश भाजपा से या आरसीपी सिंह से नाराज हैं? या फिर नीतीश इस बहाने भाजपा पर गठबंधन धर्म निभाने का दबाव डाल रहे हैं? सूत्रों का कहना है कि नीतीश आरसीपी की भाजपा से बढ़ती नजदीकियों से खुश नहीं है। यही कारण है कि आसानी से मिलने वाली सीट पर उनकी जगह हेगड़े को उम्मीदवार बना दिया।

विस्तार

केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह मोदी सरकार में मंत्री रहेंगे या नहीं यह भाजपा के रहमोकरम पर निर्भर करेगा। दरअसल नीतीश ने जदयू से अनिल हेगड़े को उम्मीदवार बना कर सिंह के भविष्य का फैसला भाजपा पर छोड़ दिया है। अगर भाजपा-जदयू में आरसीपी को उम्मीदवार बनाने पर सहमति नहीं बनी तो उन्हें मंत्रिमंडल से हटना होगा।

गौरतलब है कि बिहार में राज्यसभा की पांच सीटों के लिए चुनाव होने वाले हैं। संख्याबल के हिसाब से इन पांच सीटों में राजद और भाजपा के हाथ दो तो जदयू के हाथ एक सीट आनी है। हालांकि जदयू ने केंद्रीय मंत्री आरसीपी की जगह जार्ज फर्नांडिस के करीबी रहे अनिल हेगड़े को उम्मीदवार बना कर बड़ा पेच फंसा दिया है। आरसीपी अब तभी राज्यसभा जा सकते हैं जब भाजपा और जदयू में उन्हें उम्मीदवार बनाने पर सहमति बने। इस संबंध में भाजपा ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं।

ऐसे समझें राज्यसभा का गणित

राज्य में एक सीट जीतने के लिए 41 विधायकों के वोट की जरूरत है। जदयू के पास इस समय 45 विधायक हैं, जबकि उसे एक निर्दलीय विधायक का समर्थन हासिल है। भाजपा के पास 77 विधायक हैं। दूसरी सीट जीतने के लिए उसे पांच अतिरिक्त विधायकों के वोट की जरूरत है। यह कमी सहयोगी हम और जदयू के बाकी बचे पांच विधायकों के जरिए पूरी हो सकती है। राजद के पास 76 विधायक हैं। उसे भाकपा माले, कांग्रेस का समर्थन प्राप्त है। ऐसे में उसके लिए दो सीटें जीतना आसान है।

यहां फंसा पेच

संख्या बल के हिसाब से महज 46 विधायकों वाले जदयू को एक ही सीट मिल सकती है। ऐसे में पार्टी को अपने कोटे के केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह को उम्मीदवार बनाना चाहिए था। हालांकि नीतीश ने सिंह की जगह हेगड़े को उम्मीदवार बना कर पेच फंसा दिया है। नीतीश के इस दांव के बाद अब यह भाजपा को तय करना है कि वह आरसीपी को उम्मीदवार बनाने पर अपनी सहमति देगी या नहीं।

अगर भाजपा सहमति नहीं देती तो आरसीपी की राज्यसभा सदस्यता के साथ मंत्री पद भी जाना तय है। भाजपा ने फिलहाल इस मामले में अपने पत्ते नहीं खोले हैं। उसकेलिए धर्मसंकट यह है कि पार्टी के दो सदस्य गोपाल नारायण सिंह और सतीश चंद्र दुबे की सीट खाली हो रही है। ऐसे में पार्टी एक सीट का नुकसान नहीं झेलना चाहती।

क्या नाराज हैं नीतीश?

नीतीश के इस दांव के बाद सवाल उठ रहा है कि क्या नीतीश भाजपा से या आरसीपी सिंह से नाराज हैं? या फिर नीतीश इस बहाने भाजपा पर गठबंधन धर्म निभाने का दबाव डाल रहे हैं? सूत्रों का कहना है कि नीतीश आरसीपी की भाजपा से बढ़ती नजदीकियों से खुश नहीं है। यही कारण है कि आसानी से मिलने वाली सीट पर उनकी जगह हेगड़े को उम्मीदवार बना दिया।



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