Review: आगे क्या अश्लीलता और होगी, यही सोचकर दर्शक देखते रहते हैं महाबोर She season 2


अपने भाइयों को फिल्म की दुनिया में आगे बढ़ाने के लिए निर्देशक इम्तियाज अली कभी-कभी प्रोड्यूसर भी बन जाते हैं. अपने एक भाई साजिद अली के लिए उन्होंने ‘लैला मजनू’ नाम की एक फिल्म प्रोड्यूस की थी. इम्तियाज का नाम जुड़ने से फिल्म को पब्लिसिटी तो बहुत मिली, लेकिन फिल्म चली नहीं. ठीक उसी तरह उन्होंने अपने दूसरे भाई आरिफ अली के लिए नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज ‘शी’ प्रोड्यूस की. इस सीरीज की कहानी किसी विदेशी फिल्म या वेब सीरीज से पूरी तरह प्रभावित लगती है. वैसे तो इस बात को साबित करने के लिए ‘शी’ में कई दृश्य हैं, लेकिन एक सबसे बड़ा सबूत है कहानी का प्लॉट, जिसमें एक पुलिस कॉन्स्टेबल को एक ड्रग माफिया के गैंग में जासूसी करने के लिए एक वेश्या का रोल करना पड़ता है और अंडर कवर रहते हुए ही गैंग के लीडर से पहले दोस्ती करनी होती है और फिर उसके खिलाफ मुखबिरी. हिंदुस्तान की पुलिस फ़ोर्स में ऐसा कोई केस कभी देखा सुना नहीं गया है. 2020 में इस वेब सीरीज का पहला सीजन आया था जो 8 एपिसोड लम्बा था और उसे निर्देशित किया था अविनाश दास (अनारकली और आरा) ने. इम्तियाज ने इस बार अपने भाई आरिफ अली को निर्देशन की कमान सौंपी, जिसने 2014 में रणबीर कपूर की बुआ के बेटे अरमान जैन को लेकर एक महाफ्लॉप फिल्म बनायी थी, ‘लेकर हम दीवाना दिल’. शी का सीजन 2, पहले सीजन की तुलना में कम रुचिकर है और ज़्यादा बोरिंग हैं. दर्शक ऊब तो जाता है और सोचता भी है कि सीरीज देखना छोड़ दे लेकिन हर एपिसोड में अश्लीलता की मात्रा इतनी है कि दर्शक एक एपिसोड और देख ही लेता है.

भूमिका परदेशी (अदिति पोहनकर), अपनी मां और छोटी बहन रूपा के साथ एक रूम वाले घर में रहती है और पुलिस में कॉन्स्टेबल की नौकरी करती है. उसके शराबी पति से उसका डाइवोर्स हो चुका है. एंटी नारकोटिक्स ग्रुप को देश के सबसे बड़े ड्रग माफिया नायक को पकड़ना है और इसके लिए उसके गिरोह में पुलिस का कोई व्यक्ति मुखबिर के तौर पर घुसाने के लिए भूमिका को चुना जाता है. उसे एक वेश्या बना कर मुंबई की सड़कों पर रोज़ रात को उस गैंग के मुखिया तक पहुंचने की कोशिश करनी होती है. इस मिशन में वो कामयाब भी होती है लेकिन वो जल्द ही इस गैंगस्टर से प्रभावित हो जाती है. ज़िन्दगी के थपेड़े जिसमें गरीबी, ड्रग एडिक्ट बहन, मृत पिता, बीमार मां, एक घटिया पति द्वारा लगाया गए चारित्रिक लांछन शामिल हैं, भूमिका को मजबूर करते हैं सभी सूत्रों को अपने हाथ में लेने के लिए. भूमिका और गैंगस्टर एक दूसरे के पूरक साबित होते हैं. गैंगस्टर अपने धंधे के राज भूमिका को बताता है और उसे ड्रग्स के धंधे को फैलाने का काम दे देता है. भूमिका, वेश्याओं की मदद से ड्रग डिस्ट्रीब्यूशन का नेटवर्क खड़ा कर लेती है. भूमिका, गैंगस्टर नायक के राज़ पुलिस को देती रहती है. आखिर में भूमिका नायक को गोली मार देती है और पुलिस, पूरी गैंग को खत्म कर देती है. भूमिका, मुंबई के अंडरवर्ल्ड और ड्रग बिजनेस पर काबिज हो जाती है.

कुछ मूलभूत गलतियों की वजह से इस सीरीज में दर्शक बहुत जल्दी बोर हो जाते हैं. कितनी भी गरीब पुलिस कॉन्स्टेबल क्यों न हो और कितना भी बड़ा ऑपरेशन क्यों न हो, भारत में किसी भी लड़की का एक वेश्या का रूप धारण कर के किसी भी गैंगस्टर को फंसाने का काम करना, असंभव है. अव्वल तो लड़की स्वीकार नहीं करेगी और दूसरा ऐसा सुझाव भी दिया जाना, कानूनन अपराध की श्रेणी में आ सकता है. कहानी में थोड़ी अतिशयोक्ति चलती है लेकिन इतनी? खैर, इस बात को दरकिनार करते हैं. विलन यानि गैंग का मुखिया ‘नायक’ एक रहस्यमयी किरदार है. इसकी कोई तस्वीर पुलिस के पास मौजूद नहीं है. बचपन में ही उसने अपने चाचा का खून कर दिया था. छोटी उम्र से ही वो बड़े लोगों की एक गैंग का मुखिया बन गया. जब वो बड़ा हुआ तो वह कंप्यूटर एक्सपर्ट बना, डार्क नेट इस्तेमाल करने में सिद्धहस्त, और एक एयरलाइन्स के मार्फ़त ड्रग्स की तस्करी करने जैसे कारनामों को अंजाम देने लगा. पूरा समय या तो वो कंप्यूटर पर बैठ कर कुछ कर रहा होता है जो कि निश्चित तौर पर अपने ड्रग्स के माफिया को संचालित करता हुआ तो कतई नहीं लगता. या फिर वो भूमिका के साथ रास लीला में लगा होता है. भूमिका पुलिस कॉन्स्टेबल है लेकिन उसे बन्दूक चलना नहीं सिखाया जाता. उसके फ़ोन को ट्रैक कर के या उसके पर्स में ट्रैकर लगा कर नायक के ठिकाने तक पहुंचने की कोशिश नहीं की जाती. फ़ोन से भूमिका अपनी माँ को मैसेज भेजने के बहाने व्हाट्स एप से पुलिस को जानकारी देती रहती है लेकिन इसका फायदा पुलिस को नहीं होता. ऐसी मूलभूत भूलें कैसे दरकिनार कर दी गयी.

इसके अलावा भी स्क्रिप्ट में कई गलतियां हैं. नायक को पुलिस की, पूरी दुनिया की खबर रहती है लेकिन भूमिका के प्रेम में इतना अंधा हो जाता है कि वो उसकी जासूसी की गुत्थी को समझ नहीं पाता और जब समझ जाता है तो वो भूमिका को अपने खेल में शामिल कर लेता है. महाचालाक गैंगस्टर्स इतनी आसानी से किसी लड़की पर, या किसी वेश्या पर भरोसा कर लेते हैं, ये पहली बार ही देखा है. भूमिका भी वेश्याओं को अपने ड्रग्स के धंधे में इतने मज़े से और आसानी से शामिल कर लेती है कि पूछो मत. मुंबई में कम से कम दसियों दर्जन कोठे होंगे, वो सभी जगह की वेश्याओं को अपना एजेंट बना लेती है. नायक के मरने के बाद वो इन्हीं वेश्याओं के ज़रिये अपना ड्रग बिजनेस शुरू कर लेती है. इस पूरे धंधे में उसे कोई भी नेता या पुलिस अधिकारी सहयोग नहीं करता. कहानी की कमज़ोरी देखिये कि नायक जो कि देश का सबसे बड़ा ड्रग एम्पायर खड़ा कर रहा है, अपने सभी प्रतिद्वंदियों को मार चुका है, उस पर भी किसी पुलिस वाले का, किसी नेता का या किसी भी रसूखदार का कोई हाथ नहीं होता. इसके बावजूद दर्शक इस सीरीज के सभी एपिसोड देखते हैं, क्योंकि इसमें अश्लीलता दिखाने का एक नया तरीका है. हर बार लगता है कि ये पोर्न बन जायेगी लेकिन ये सिर्फ उत्तेजना पैदा कर के छोड़ देती है. अश्लीलता शामिल करने का यह फार्मूला सफल है.

अदिति पोहनकर का अभिनय निहायत ही रंगहीन है. जैसा वो मराठी फिल्म लय भारी में थी, जैसा वो आश्रम वेब सीरीज के तीनों सीजन में थी, अदिति ने बिलकुल वैसा ही अभिनय किया है. स्कूल के जमाने में एथलीट होने की वजह से अदिति की बॉडी काफी फिट है और निर्देशक ने इस बात का भरपूर फायदा उठाया है. वेब सीरीज में एक्सपोज़ करने की भारतीय सीमा के भीतर वो जो भी दिखा सकते थे, उन्होंने दिखाया है लेकिन अदिति की डायलॉग डिलीवरी में सुधार नहीं करवा पाए. वो एक ही स्वर में सभी भावों के संवाद बोलती हैं. इसके बावजूद पूरी सीरीज में सिर्फ अदिति ही छायी हुई है. सीजन 1 में विजय वर्मा जैसे अनुभवी कलाकार से टक्कर थी तो सीजन 2 में उनके सामने विलन नायक की भूमिका में है किशोर कुमार. जिस तरीके से इस किरदार का ग्राफ रचा गया है वो किसी विदेशी उपन्यास से उड़ाया गया लगता है, खासकर स्पेनिश ड्रग माफिया पर लिखे गए उपन्यासों से. किशोर कुमार की स्क्रीन प्रजेंस प्रभावी है, आवाज भी अच्छी है और अभिनय भी अच्छा है बस जो बात बुरी है वो उनके किरदार का एकदम ही प्रभावहीन अंत. भूमिका के सीनियर फर्नांडिस की भूमिका में विश्वास किणी की समस्या है उनका एक ही एक्सप्रेशन लेकर कोई भी सीरीज पूरी कर देना. रोल बड़ा है, कई तरह के शेड्स थे लेकिन उन्होंने एक ही रंग में पूरा किरदार निभा डाला. इसलिए सशक्त किरदार होने के बावजूद प्रभावी नहीं रहा.

शी सीजन 2 की सिनेमेटोग्राफी राम गोपाल वर्मा कैंप के अमित रॉय ने की है. अमित रॉय और इम्तियाज़ अली ने साथ में लव आजकल 2 में काम किया था. इस वेब सीरीज की सिनेमेटोग्राफी में दो बातें हैं. पहली ये कि अंतरंग दृश्य बड़े करीने से फिल्माए हैं, अदिति को वेश्या बनाया है लेकिन उसे सस्ता नहीं होने दिया गया और दूसरा – अंधेरे कोनों का सही इस्तेमाल किया गया है. एडिटर मनीष जेटली की प्रशंसा करनी होगी क्योंकि उन्होंने लम्बे लम्बे शॉट्स रखते हुए भी कहानी की गति थोड़ी तेज़ रखने की कोशिश की. शी वैसे बहुत धीमी चलने वाली वेब सीरीज हैं लेकिन दर्शक बोर होते हुए भी अगला सीजन देखने का मोहसंवरण नहीं कर पाते. फिर भी शी का सीजन 2 पूरा देखने वालों को लेखक इम्तिआज अली (साथ में दिव्या जोहरी, प्रनॉय मेहता) और निर्देशक आरिफ अली को विशेष रूप से पुरस्कार देना चाहिए क्योंकि अगर इसमें सही मात्रा में अश्लीलता नहीं होती तो इस वेब सीरीज को कोई नहीं देखता. आप भी चाहें तो न देखें. कुछ खास देखने को नहीं मिलेगा.

Tags: Netflix, Web Series

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