Sawan Somvar 2022: आज है सावन का पहला सोमवार, शिव चालीसा के पाठ से प्रसन्न होंगे महादेव


Shiv Chalisa Lyrics in Hindi: आज यानी 18 जुलाई को सावन महीने का पहला सोमवार है। सावन माह के प्रत्येक सोमवार शिव भक्तों के लिए सबसे खास माने जाते हैं। इस दिन शिव भक्त व्रत रखते हैं और विधि पूर्वक पूजा करते हैं। भगवान भोलेनाथ सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता है। धार्मिक मान्यता है कि शिव जी को मात्र एक लोटा जल से भी प्रसन्न किया जा सकता है। सावन के महीने में शिव भक्त तरह तरह से भगवान शिव को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। मान्यता है कि सावन के महीने में प्रत्येक सोमवार को नियमित रूप से शिव चालीसा का पाठ करने से भगवान शिव की कृपा बनी रहती है। इसके अलावा व्यक्ति के जीवन से सारे दुख कष्ट दूर हो जाते हैं। 

॥ दोहा ॥

जय गणेश गिरिजा सुवन,मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम,देहु अभय वरदान॥

श्री शिव चालीसा पाठ

जय गिरिजा पति दीन दयाला।सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

भाल चन्द्रमा सोहत नीके।कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये।मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।छवि को देखि नाग मन मोहे॥

मैना मातु की हवे दुलारी।बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ।या छवि को कहि जात न काऊ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा।तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

किया उपद्रव तारक भारी।देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

तुरत षडानन आप पठायउ।लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

आप जलंधर असुर संहारा।सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

किया तपहिं भागीरथ भारी।पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥

दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं।सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

वेद माहि महिमा तुम गाई।अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला।जरत सुरासुर भए विहाला॥

कीन्ही दया तहं करी सहाई।नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा।जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

सहस कमल में हो रहे धारी।कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई।कमल नयन पूजन चहं सोई॥

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

जय जय जय अनन्त अविनाशी।करत कृपा सब के घटवासी॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै।भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।येहि अवसर मोहि आन उबारो॥

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।संकट ते मोहि आन उबारो॥

मात-पिता भ्राता सब होई।संकट में पूछत नहिं कोई॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी।आय हरहु मम संकट भारी॥

धन निर्धन को देत सदा हीं।जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥

अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी।क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥



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