सुप्रीम कोर्ट का आदेश: जहां अपराध हुआ है उस राज्य की नीति के अनुसार हो दोषियों की समयपूर्व रिहाई पर फैसला


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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी दोषी की समयपूर्व रिहाई पर उस राज्य की नीतियों के अनुसार विचार किया जाना चाहिए, जहां अपराध हुआ है, न कि वहां जहां मुकदमा स्थानांतरित किया गया हो और पूरा किया गया हो। न्यायाधीश अजय रस्तोगी और विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 432(7) के अनुसार सजा में राहत के मुद्दे पर दो राज्य सरकारों का समवर्ती क्षेत्राधिकार नहीं हो सकता है। 

अदालत एक दोषी की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें गुजरात सरकार को नौ जुलाई 1992 की नीति के तहत समय से पहले रिहाई के लिए उसके आवेदन पर विचार करने का निर्देश देने की मांग की गई है, जो उस समय मौजूद थी जब उसे दोषी ठहराया गया था। इस मामले में अपराध गुजरात में हुआ था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अजीबोगरीब तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए इसे 2004 में मुंबई स्थानांतरित कर दिया था।

पीठ ने कहा कि गुजरात में अपराध होने और ट्रायल पूरा होने के बाद सजा में छूट या समयपूर्व रिहाई समेत आगे की सभी कार्यवाहियां उन नीति के तहत होनी चाहिए जो गुजरात में लागू हैं। पीठ ने आगे कहा कि प्रतिवादियों को नौ जुलाई 1992 की नीति के अनुसार समयपूर्व रिहाई के लिए याचिकाकर्ता के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया जाता है, जो दोषसिद्धि की तारीख पर लागू होती है और दो महीने की अवधि के भीतर तय की जा सकती है। 

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि अगर कोई प्रतिकूल आदेश पारित किया जाता है, तो याचिकाकर्ता कानून के तहत उसके लिए उपलब्ध समाधान की तलाश करने के लिए स्वतंत्र है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी दोषी की समयपूर्व रिहाई पर उस राज्य की नीतियों के अनुसार विचार किया जाना चाहिए, जहां अपराध हुआ है, न कि वहां जहां मुकदमा स्थानांतरित किया गया हो और पूरा किया गया हो। न्यायाधीश अजय रस्तोगी और विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 432(7) के अनुसार सजा में राहत के मुद्दे पर दो राज्य सरकारों का समवर्ती क्षेत्राधिकार नहीं हो सकता है। 

अदालत एक दोषी की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें गुजरात सरकार को नौ जुलाई 1992 की नीति के तहत समय से पहले रिहाई के लिए उसके आवेदन पर विचार करने का निर्देश देने की मांग की गई है, जो उस समय मौजूद थी जब उसे दोषी ठहराया गया था। इस मामले में अपराध गुजरात में हुआ था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अजीबोगरीब तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए इसे 2004 में मुंबई स्थानांतरित कर दिया था।

पीठ ने कहा कि गुजरात में अपराध होने और ट्रायल पूरा होने के बाद सजा में छूट या समयपूर्व रिहाई समेत आगे की सभी कार्यवाहियां उन नीति के तहत होनी चाहिए जो गुजरात में लागू हैं। पीठ ने आगे कहा कि प्रतिवादियों को नौ जुलाई 1992 की नीति के अनुसार समयपूर्व रिहाई के लिए याचिकाकर्ता के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया जाता है, जो दोषसिद्धि की तारीख पर लागू होती है और दो महीने की अवधि के भीतर तय की जा सकती है। 

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि अगर कोई प्रतिकूल आदेश पारित किया जाता है, तो याचिकाकर्ता कानून के तहत उसके लिए उपलब्ध समाधान की तलाश करने के लिए स्वतंत्र है।



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