एक अध्ययन में इस एस्टरॉयड की सूर्य से निकटता और उसके नीले रंग के बीच संबंध पाया गया है। ऑनलाइन जर्नल इकारस में पब्लिश हुई एक स्टडी में दावा किया गया है कि तेज सोलर रेडिएशन का इस एस्टरॉयड के लुक्स के साथ कोई संबंध हो सकता है।
फेथॉन एस्टरॉयड की खोज 1983 में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (Nasa) ने की थी। इसे एक सैटेलाइट के जरिए देखा गया था। सैटेलाइट की मदद से खोजा जाने वाला यह पहला एस्टरॉयड है। फेथॉन नाम एक ग्रीक हीरो के नाम पर रखा गया है। यह एस्टरॉयड कई मायनों में खास है। यह इकलौता एस्टरॉयड है, जिससे उल्का बौछारें होती हैं। बाकी सभी उल्का बौछारें धूमकेतु से निकलती हैं। फेथॉन से निकलने वालीं उल्का बौछारें दिसंबर महीने में उत्तरी गोलार्ध में दिखाई देती हैं।
नए अध्ययन में कहा गया है कि सूर्य के नजदीक होने की वजह से फेथॉन का रंग नीला है।
सूर्य की परिक्रमा करते हुए जब फेथॉन अपने सबसे निकटतम बिंदु ‘पेरिहेलियन’ पर पहुंचता है तो यह 800 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो जाता है। तेज गर्मी इस एस्टरॉयड की रासायनिक संरचना में अजीब बदलाव करती है। अध्ययन में पता चला कि गर्मी से लोहे जैसे पदार्थों और अन्य ऑर्गनिक कंपाउंड्स पर असर होता है, जो लाल रंग के हैं। गर्मी से वह वाष्पीकृत हो जाते हैं और जो बचा रह जाता है वह गहरे नीले रंग के एलिमेंट्स और केमिकल कंपाउंड हैं। इनकी वजह से ही एस्टरॉयड चमकता है। हालांकि एक सवाल का जवाब अध्ययन में नहीं मिल पाया कि आखिर लाल रंग के कंपाउंड ही क्यों पिघलते हैं।
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