हालांकि साल 2016 के एक रिव्यू कहा गया था कि लो सोलर रेडिएशन के कारण मंगल ग्रह की प्राचीन जलवायु बेहद ठंडी थी और एक महासागर को बरकरार नहीं रख सकती थी। वहीं, साल 2021 के एक अन्य अध्ययन में कहा गया है कि ग्रह का अपना वॉर्मिंग मैकेनिज्म है, जो झीलों और नदियों को पनपने दे सकता है।
मौजूदा अध्ययन में रिसर्चर्स ने पृथ्वी के जलवायु मॉडल पर बेस्ड त्रि-आयामी मॉडल का इस्तेमाल करके मंगल की प्राचीन जलवायु को दोबारा से तैयार किया। इसे समझकर वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि दो अरब साल पहले मंगल ग्रह पर महासागर हो सकते थे। वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह के उत्तरी गोलार्ध में एक महासागर की उपस्थिति होने का अनुमान लगाया है।
हालांकि कुछ सवाल अभी भी बाकी हैं। पहला यह कि क्या इस ग्रह पर लगभग 3 अरब साल पहले जीवन मौजूद था? एक सवाल यह भी है कि सारा पानी गया कहां? इसके पीछे एक थ्योरी यह है कि पानी के अणुओं के हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में टूटने से वह अंतरिक्ष में वाष्प बनकर उड़ गया। एक अध्ययन यह कहता है कि मंगल ग्रह का पानी इसकी सतह के नीचे बर्फ के रूप में मौजूद है।
पिछले साल यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) ने यह कहा था कि मंगल ग्रह पर बड़ी मात्रा में पानी मिला है। बताया गया था कि मंगल ग्रह की वैलेस मेरिनेरिस Valles Marineris घाटी की सतह के नीचे पानी छुपा है। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) और एक्सोमार्स ट्रेस गैस ऑर्बिटर (TGO) ने इस घाटी में बड़ी मात्रा में पानी की खोज की थी। हालांकि इस खोज की जांच अभी की जा रही है।
मंगल ग्रह को लेकर कई सवाल बरकरार हैं। यहां जीवन के खोज में जुटे वैज्ञानिकों को अभी बहुत कुछ साबित करना है। उम्मीद है आने वाले समय में हमें कुछ और रोचक जानकारियां मिलेंगी।