पश्चिम बंगाल के वेटलिफ्टर अचिंता शेउली ने बर्मिंघम में कमाल कर दिया। उन्होंने 81 किग्रा भार वर्ग में स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया। राष्ट्रमंडल खेलों में भारत का यह तीसरा स्वर्ण पदक है। अब तक देश को छह पदक मिले और सभी वेटलिफ्टिंग में ही आए हैं। 313 किग्रा भार उठाकर पहला स्थान हासिल करने वाले अचिंता शेउली के लिए वेटलिफ्टिंग में करियर बनाना आसान नहीं था।
अचिंता का जन्म 24 नवंबर 2001 को पश्चिम बंगाल के हावड़ा में हुआ। उनके पिता जगत परिवार को पालने के लिए रिक्शा चलाते थे। रिक्शा चलाने के अलावा वह मजदूरी भी करते थे। 2011 में पहली बार अचिंता ने वेटलिफ्टिंग के बारे में जाना। तब उनकी उम्र 10 साल ही थी।
अचिंता के बड़े भाई स्थानीय जिम में ट्रेनिंग करते थे। उन्होंने ही भाई को वेटलिफ्टिंग के बारे में बताया। अचिंता के लिए पेशेवर प्रशिक्षण लेना आसान नहीं था। 2013 में स्थिति और खराब हो गई, जब उनके पिता की मौत हो गई। पिता की मौत के बाद भाई आलोक ही परिवार में एकमात्र कमाने वाले बचे थे।
अचिंता की मां पूर्णिमा ने भी परिवार का पेट पालने के लिए छोटे-मोटे काम किए। यह वह समय था जब उन्होंने 2012 में एक डिस्ट्रिक्ट मीट में रजत पदक जीतकर स्थानीय स्पर्धाओं में भाग लेना शुरू कर दिया था।
अचिंता को आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट के ट्रायल में चुना गया, जहां उन्होंने 2015 में दाखिला लिया। उनकी क्षमताओं ने उन्हें उसी साल भारतीय राष्ट्रीय शिविर में शामिल होने में मदद की। उन्होंने 2016 और 2017 में आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट में अपना प्रशिक्षण जारी रखा। 2018 में वह राष्ट्रीय शिविर में आ गए।