नई दिल्ली. बर्थ सर्टिफिकेट (Birth Certificate) को लेकर एक जरूरी खबर आई है. यह खबर उन लोगों के लिए है, जिन्होंने जानबूझकर या गलती से अपना या अपने बच्चों का दो जन्म प्रमाणपत्र बना रखा है. दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने दो बर्थ सर्टिफिकेट रखने वाले ऐसे लोगों के लिए महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा है कि एक व्यक्ति को दो अलग-अलग तारीखों वाले जन्म प्रमाणपत्र रखने की इजाजत नहीं दी जा सकती है. कोर्ट ने अपने टिप्पणी में आगे कहा कि किसी व्यक्ति की पहचान सिर्फ उसके माता-पिता के नाम से नहीं बल्कि उसके जन्म की तारीख से भी होती है. इसलिए अगर आप पासपोर्ट (Passport), आधार कार्ड (Aadhaar Card) या पैन कार्ड (PAN Card) बनाने जा रहे हैं तो अपना डेट ऑफ बर्थ (Date of Birth) जरूर सुधार लें.
बता दें कि कोर्ट की यह टिप्पणी एक व्यक्ति के दो जन्म प्रमाणप्रत्र रखने पर आई है. दो बर्थ सर्टिफिकेट रखने के कारण विपिन सहरावत को पासपोर्ट हासिल करने में दिक्कत आ रही थी. सहरावत के पासपोर्ट में जन्मतिथि गलत दर्ज था. जब सहरावत ने पासपोर्ट में जन्मतिथि सही करने का आवेदन दिया तो उनका पासपोर्ट ही कैंसिल कर दिया गया. इसके बाद सहरावत ने दिल्ली हाई कोर्ट में दिए अपने याचिका में आग्रह किया कि उनके पिता अशिक्षित थे और वे अपनी गलती से परिचित नहीं थे. जबकि, उसके स्कूल सहित अन्य जगहों के रिकॉर्ड में जन्मतिथि सही लिखी गई है. इसके बावजूद पासपोर्ट रद्द कर दिया गया.
याचिकाकर्ता के मुताबिक, ‘उसके पास दो बर्थ सर्टिफिकेट थे. (प्रतीकात्मक फोटो)
दो बर्थ सर्टिफिकेट को लेकर क्या कहा कोर्ट ने
याचिकाकर्ता के मुताबिक, ‘उसके पास दो बर्थ सर्टिफिकेट थे. पहला 24 सितंबर 2013 को जारी किया गया था और उसमें गलती से 1 नवंबर 2002 लिखा था और दूसरा बर्थ सर्टिफिकेट 30 अक्टूबर 2015 को जारी किया गया और उसमें सही जन्मतिथि लिखी गई थी.
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दिल्ली हाई कोर्ट ने सहरावत की याचिका मंजूर करते हुए साउथ एमसीडी के डिप्टी कमिश्नर को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता के दो जन्म प्रमाणपत्र में से एक जन्म प्रमाण पत्र रद्द कर दें. कोर्ट ने याचिकाकर्ता के दावों को सही मानते हुए कहा कि 2013 में जारी बर्थ सर्टिफिकेट में उसकी गलत जन्मतिथि और 2015 मे जारी बर्थ सर्टिफिकेट में सही जन्मतिथि दर्ज है. यह बात उसके पढ़ाई से जुड़े रिकॉर्ड से सही साबित हो रहा है. इसलिए याचिकाकर्ता का सही जन्मतिथि को ही मान्य माना जाए.
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