Bahujan Samaj Party: क्या बसपा में खत्म होने वाली है सतीश मिश्र की पारी! संकेत तो यही मिल रहे हैं


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बहुजन समाज पार्टी में ब्राह्मणों के बड़े चेहरे सतीश चंद्र मिश्रा की क्या बसपा में पारी खत्म होने वाली है। बीते कुछ दिनों में हुए राजनीतिक घटनाक्रम से तो कम से कम इशारे यही मिल रहे हैं। हालांकि न तो बहुजन समाज पार्टी और न ही सतीश मिश्रा की ओर से इस पर कोई आधिकारिक बयान जारी हुआ है। लेकिन राजनैतिक हलकों में चर्चाओं का दौर तेज हो चुका है कि संभवतया सतीश चंद्र मिश्रा की बहुजन समाज पार्टी में अब फिलहाल राजनैतिक पारी खत्म होने वाली है।

दरअसल सतीश चंद्र मिश्रा के बहुजन समाज पार्टी में राजनीतिक पारी के खत्म होने को लेकर के हाल में हुए कई घटनाक्रम मजबूती दे रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी ने आजमगढ़ में अपने प्रत्याशी गुड्डू जमाली के लिए 40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की। 40 स्टार प्रचारकों की सूची में बसपा के कद्दावर नेता सतीश चंद्र मिश्रा का नाम गायब था। राजनीतिक हल्कों में चर्चाएं शुरू हो गईं कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने अपने बड़े सिपहसालार सतीश चंद्र मिश्रा को ही स्टार प्रचारक की सूची में शामिल नहीं किया। हालांकि इस बारे में बहुजन समाज पार्टी की ओर से कोई जवाब तो नहीं मिला, लेकिन बसपा से ही जुड़े सूत्रों का कहना है कि पार्टी ने सतीश चंद्र मिश्रा से अब धीरे-धीरे दूरियां बढ़ानी शुरू कर दी हैं। बसपा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि सतीश चंद्र मिश्रा के करीबी और बसपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे नकुल दुबे जब कांग्रेस में शामिल हुए थे, तभी से चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया था कि क्या सतीश चंद्र मिश्रा भी अब बसपा में बने रहेंगे या नहीं। इस राजनीतिक घटनाक्रम के बाद बहुजन समाज पार्टी के स्टार प्रचारकों में सतीश चंद्र मिश्रा का नाम न होना राजनीतिक गलियारों में तमाम तरह के सवाल तो खड़े ही करता है।

खत्म हो रहा राज्यसभा का कार्यकाल

उत्तर प्रदेश के राजनैतिक विश्लेषकों का इस पूरे अंदरूनी राजनैतिक उठापटक पर अपना एक अलग नजरिया है। राजनीतिक विश्लेषक एसएन पांडेय कहते हैं कि सतीश चंद्र मिश्रा का राज्यसभा के सांसद के तौर पर चार जुलाई को कार्यकाल समाप्त हो रहा है। बहुजन समाज पार्टी के पास फिलहाल ऐसा कोई जादुई आंकड़ा भी नहीं है, जो सतीश चंद्र मिश्रा को दोबारा राज्यसभा भेज सके। विश्लेषकों का कहना है कि ऐसी परिस्थितियों में अंदाजा जरूर यह लगाया जा सकता है कि सतीश मिश्रा कोई नया राजनीतिक ठिकाना भी ढूंढ सकते हैं। चूंकि बहुजन समाज पार्टी में सतीश मिश्रा एक बड़े ब्राह्मण चेहरे के तौर पर सामने आए थे, इसलिए कुछ राजनीतिक दल उन पर बड़ा दांव लगा सकते हैं। हालांकि यह बात दीगर है कि बीते दो विधानसभा चुनावों में सतीश चंद्र मिश्रा का जादू नहीं चला। इस बात का अंदाजा बहुजन समाज पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से लेकर पार्टी मुखिया तक को रहा है।

बीते कुछ सालों में बसपा छोड़कर दूसरे दलों में गए कई नेताओं ने खुले तौर पर और अंदरूनी तौर पर इस बात के आरोप भी लगाए कि मायावती हद से ज्यादा सतीश मिश्रा पर भरोसा करती हैं। यही वजह है कि पार्टी अपने मिशन में फेल हो रही है। बीते विधानसभा के चुनावों में जिस तरीके से सतीश चंद्र मिश्रा को मायावती ने ओपन हैंड देकर प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन और तमाम अन्य बड़े कार्यक्रमों की कमान सौंपी थी, बावजूद इसके परिणाम बहुत ही निराशाजनक रहे। बहुजन समाज पार्टी से जुड़े वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि सतीश चंद्र मिश्रा के प्रति अंदरूनी तौर पर नाराजगी का एक बहुत बड़ा कारण यह भी माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मायावती ने बहुत ही करीने से बसपा के बड़े ब्राह्मण चेहरे सतीश चंद्र मिश्रा को किनारे करना शुरू कर दिया है।

जल्द कर सकते हैं बसपा से किनारा

हालांकि सतीश चंद्र मिश्रा के कुछ करीबियों का मानना यह भी है कि जिस तरह से अफवाहों का दौर राजनीतिक गलियारों में चल रहा है ऐसा बिल्कुल नहीं है। बसपा के एक प्रमुख और कद्दावर नेता का कहना है कि सतीश चंद्र मिश्रा का पार्टी में कद वही है जो पहले था। उक्त नेता का स्पष्ट कहना है कि न तो सतीश चंद्र मिश्रा कहीं पार्टी छोड़कर जा रहे हैं और न ही पार्टी उन्हें लेकर कोई फैसला ले रही है। हालांकि उत्तर प्रदेश से लेकर दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चाएं बीते कुछ दिनों में तेजी से बढ़ी हैं कि सतीश चंद्र मिश्रा बहुत जल्द ही बसपा से किनारा कर सकते हैं। बसपा में लंबे वक्त तक पार्टी के मिशन से जुड़े रहे एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि राजनीतिक कद का आकलन चुनावों के परिणामों से तय किया जाता है। 2007 में जब मायावती सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले से सत्ता में आई थीं, तो सतीश चंद्र मिश्रा का दबदबा कितना था इसे हर कोई समझता है। लेकिन बीते कुछ विधानसभा के चुनाव और लोकसभा के चुनावों के दौरान आए नतीजों से निराशा ही हाथ लगी है। खासतौर से सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है। उक्त पदाधिकारी का कहना है कि मायावती ने हालात को देखते हुए लोकसभा चुनाव में ही अपने भतीजे आकाश आनंद को आगे कर दिया था। मायावती भविष्य की राजनीति में अपने भतीजे आकाश आनंद को ही आगे बढ़ा रही हैं। इस बात को न सिर्फ बहुजन समाज पार्टी के लोग बल्कि पार्टी के दूसरे नेता बखूबी समझ रहे हैं।

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बहुजन समाज पार्टी में ब्राह्मणों के बड़े चेहरे सतीश चंद्र मिश्रा की क्या बसपा में पारी खत्म होने वाली है। बीते कुछ दिनों में हुए राजनीतिक घटनाक्रम से तो कम से कम इशारे यही मिल रहे हैं। हालांकि न तो बहुजन समाज पार्टी और न ही सतीश मिश्रा की ओर से इस पर कोई आधिकारिक बयान जारी हुआ है। लेकिन राजनैतिक हलकों में चर्चाओं का दौर तेज हो चुका है कि संभवतया सतीश चंद्र मिश्रा की बहुजन समाज पार्टी में अब फिलहाल राजनैतिक पारी खत्म होने वाली है।

दरअसल सतीश चंद्र मिश्रा के बहुजन समाज पार्टी में राजनीतिक पारी के खत्म होने को लेकर के हाल में हुए कई घटनाक्रम मजबूती दे रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी ने आजमगढ़ में अपने प्रत्याशी गुड्डू जमाली के लिए 40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की। 40 स्टार प्रचारकों की सूची में बसपा के कद्दावर नेता सतीश चंद्र मिश्रा का नाम गायब था। राजनीतिक हल्कों में चर्चाएं शुरू हो गईं कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने अपने बड़े सिपहसालार सतीश चंद्र मिश्रा को ही स्टार प्रचारक की सूची में शामिल नहीं किया। हालांकि इस बारे में बहुजन समाज पार्टी की ओर से कोई जवाब तो नहीं मिला, लेकिन बसपा से ही जुड़े सूत्रों का कहना है कि पार्टी ने सतीश चंद्र मिश्रा से अब धीरे-धीरे दूरियां बढ़ानी शुरू कर दी हैं। बसपा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि सतीश चंद्र मिश्रा के करीबी और बसपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे नकुल दुबे जब कांग्रेस में शामिल हुए थे, तभी से चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया था कि क्या सतीश चंद्र मिश्रा भी अब बसपा में बने रहेंगे या नहीं। इस राजनीतिक घटनाक्रम के बाद बहुजन समाज पार्टी के स्टार प्रचारकों में सतीश चंद्र मिश्रा का नाम न होना राजनीतिक गलियारों में तमाम तरह के सवाल तो खड़े ही करता है।

खत्म हो रहा राज्यसभा का कार्यकाल

उत्तर प्रदेश के राजनैतिक विश्लेषकों का इस पूरे अंदरूनी राजनैतिक उठापटक पर अपना एक अलग नजरिया है। राजनीतिक विश्लेषक एसएन पांडेय कहते हैं कि सतीश चंद्र मिश्रा का राज्यसभा के सांसद के तौर पर चार जुलाई को कार्यकाल समाप्त हो रहा है। बहुजन समाज पार्टी के पास फिलहाल ऐसा कोई जादुई आंकड़ा भी नहीं है, जो सतीश चंद्र मिश्रा को दोबारा राज्यसभा भेज सके। विश्लेषकों का कहना है कि ऐसी परिस्थितियों में अंदाजा जरूर यह लगाया जा सकता है कि सतीश मिश्रा कोई नया राजनीतिक ठिकाना भी ढूंढ सकते हैं। चूंकि बहुजन समाज पार्टी में सतीश मिश्रा एक बड़े ब्राह्मण चेहरे के तौर पर सामने आए थे, इसलिए कुछ राजनीतिक दल उन पर बड़ा दांव लगा सकते हैं। हालांकि यह बात दीगर है कि बीते दो विधानसभा चुनावों में सतीश चंद्र मिश्रा का जादू नहीं चला। इस बात का अंदाजा बहुजन समाज पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से लेकर पार्टी मुखिया तक को रहा है।

बीते कुछ सालों में बसपा छोड़कर दूसरे दलों में गए कई नेताओं ने खुले तौर पर और अंदरूनी तौर पर इस बात के आरोप भी लगाए कि मायावती हद से ज्यादा सतीश मिश्रा पर भरोसा करती हैं। यही वजह है कि पार्टी अपने मिशन में फेल हो रही है। बीते विधानसभा के चुनावों में जिस तरीके से सतीश चंद्र मिश्रा को मायावती ने ओपन हैंड देकर प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन और तमाम अन्य बड़े कार्यक्रमों की कमान सौंपी थी, बावजूद इसके परिणाम बहुत ही निराशाजनक रहे। बहुजन समाज पार्टी से जुड़े वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि सतीश चंद्र मिश्रा के प्रति अंदरूनी तौर पर नाराजगी का एक बहुत बड़ा कारण यह भी माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मायावती ने बहुत ही करीने से बसपा के बड़े ब्राह्मण चेहरे सतीश चंद्र मिश्रा को किनारे करना शुरू कर दिया है।

जल्द कर सकते हैं बसपा से किनारा

हालांकि सतीश चंद्र मिश्रा के कुछ करीबियों का मानना यह भी है कि जिस तरह से अफवाहों का दौर राजनीतिक गलियारों में चल रहा है ऐसा बिल्कुल नहीं है। बसपा के एक प्रमुख और कद्दावर नेता का कहना है कि सतीश चंद्र मिश्रा का पार्टी में कद वही है जो पहले था। उक्त नेता का स्पष्ट कहना है कि न तो सतीश चंद्र मिश्रा कहीं पार्टी छोड़कर जा रहे हैं और न ही पार्टी उन्हें लेकर कोई फैसला ले रही है। हालांकि उत्तर प्रदेश से लेकर दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चाएं बीते कुछ दिनों में तेजी से बढ़ी हैं कि सतीश चंद्र मिश्रा बहुत जल्द ही बसपा से किनारा कर सकते हैं। बसपा में लंबे वक्त तक पार्टी के मिशन से जुड़े रहे एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि राजनीतिक कद का आकलन चुनावों के परिणामों से तय किया जाता है। 2007 में जब मायावती सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले से सत्ता में आई थीं, तो सतीश चंद्र मिश्रा का दबदबा कितना था इसे हर कोई समझता है। लेकिन बीते कुछ विधानसभा के चुनाव और लोकसभा के चुनावों के दौरान आए नतीजों से निराशा ही हाथ लगी है। खासतौर से सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है। उक्त पदाधिकारी का कहना है कि मायावती ने हालात को देखते हुए लोकसभा चुनाव में ही अपने भतीजे आकाश आनंद को आगे कर दिया था। मायावती भविष्य की राजनीति में अपने भतीजे आकाश आनंद को ही आगे बढ़ा रही हैं। इस बात को न सिर्फ बहुजन समाज पार्टी के लोग बल्कि पार्टी के दूसरे नेता बखूबी समझ रहे हैं।



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