भूमि पेडनेकर आज सोमवार को अपना बर्थडे सेलिब्रेट कर रही हैं। महाराष्ट्र के मंत्री जी की बेटी रहीं भूमि ने अपनी पहली फिल्म ‘दम लगा के हईशा’ से सबका दिल जीत लिया, जिस रोल के लिए वह बाकी लड़कियों का ऑडिशन ले रही थीं।
‘दम लगा के हईशा’ के लिए भूमि ने सौकड़ों लड़कियों का लिया था ऑडिशन
फिल्म ‘दम लगा के हईशा’ में डेब्यू करने से पहले यशराज फिल्म्स के कास्टिंग डिपार्टमेंट में काम करती थीं भूमि। फिल्म में डेब्यू से पहले भूमि करीब 6 साल से वहां काम कर रही थीं और ढेर सारे ऐक्टर्स का कास्ट कर चुकी थीं। फिल्म ‘दम लगा के हईशा’ की लीड ऐक्ट्रेस के लिए भी उन्होंने 100 से अधिक लड़कियों का ऑडिशन लिया। अंत में भूमि को इस रोल के लिए खुद ही कास्ट कर लिया गया। फिल्म के डायरेक्टर शरत कटारिया को लगा कि इस रोल के लिए भूमि से बेहतर कोई और नहीं और वह काफी टैलेंटेड भी हैं।
भूमि ने कभी नहीं सोचा कि ऑडिशन लेते-लेते फिल्म मिल जाएगी
हालांकि, भूमि ने एक इंटरव्यू में बताया था कि इस फिल्म के लिए जब वह लड़कियों का ऑडिशन ले रही थीं तो उस दौरान उन्हें कभी अपना खयाल आया ही नहीं कि वह भी इसे कर सकती हैं। खैर, इस फिल्म में उन्हें लीड रोल मिला भी और उन्होंने अपना शानदार परफॉर्मेंस भी दिखाया। इसके बाद उन्होंने ‘टॉयलेट: एक प्रेम कथा’ और ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ जैसी कई लाजवाब फिल्मों में काम किया। भूमि ने फिर कभी अपने सफर की तरफ पलट कर नहीं देखा।
भूमि के पापा थे महाराष्ट्र के होम और लेबर मिनिस्टर
18 जुलाई 1989 को पैदा हुईं भूमि पेडनेकर कोंकणी और हरियाणवी मूल से जुड़ी हैं। उनके पापा सतीश पेडनेकर पापा महाराष्ट्र के होम और लेबर मिनिस्टर हुआ करते थे। भूमि ने अपना बचपन पॉलिटिकल माहौल के बीच जीया है। हालांकि, भूमि तब 18 साल की ही थीं जब उनके पापा का निधन हो गया। साल 2011 में भूमि पापा के यूं चले जाने की वजह से अंदर तक टूट गई थीं। जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए उनके पास मेहनत और काम के अलावा कुछ और नहीं था। बताया जाता है कि भूमि के पिता का निधन कैंसर की वजह से हुआ था। इस बीमारी में भूमि और परिवार वालों ने उनकी तड़प भी देखी थी, जिसकी वजह से वह काफी परेशान रहा करते थे।
इस दर्दनाक घटना की वजह से मां ने एंटी टोबैको अभियान का झंडा थाम लिया
इस घटना ने पूरे परिवार को तोड़कर रख दिया, लेकिन आगे मजबूती के साथ बढ़ने की हिम्मत भी दी। एक तरफ भूमि जमकर मेहनत करने लगीं और दूसरी तरफ मां ने अपने हसबैंड की असामयिक मौत की वजह से एंटी टोबैको का झंडा हाथ में उठा लिया। वह सोशल ऐक्टिविस्ट के तौर पर लोगों को टोबैको से होनेवाली खतरनाक बीमारी के खिलाफ जानकारियां देने लगीं और एंटी टोबैको अभियान में शामिल हो गईं।
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