Boris Johnson: ब्रिटिश पीएम को क्यों करना पड़ा अपनी ही पार्टी के अविश्वास प्रस्ताव का सामना? जानें आगे क्या होगा


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आपने कभी सोचा है कि भारत में किसी प्रधानमंत्री को अपनी ही पार्टी से विश्वास मत हासिल करने की चुनौती मिल सकती है। लेकिन, ब्रिटेन में ऐसा हो सकता है। सोमवार को मौजूदा प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के साथ भी ऐसा ही हुआ। सत्ताधारी कंजरवेटिव पार्टी के सांसदों ने देर रात इस बात पर वोट डाले। हालांकि, जॉनसन विश्वासमत हासिल करने में सफल रहे।  

ब्रिटेन में कंजरवेटिव पार्टी के सांसद कैसे अपने नेता को चुनौती दे सकते हैं? आखिर किस वजह से जॉनसन के खिलाफ ये प्रस्ताव लाया गया था? अगर फैसला जॉनसन के खिलाफ होता तो क्या होता? अब जॉनसन को कितने वक्त तक इस तरह के प्रस्ताव का सामना नहीं करना पड़ेगा? आइये जानते हैं… 

अविश्वास  प्रस्ताव लाने के लिए क्या हैं नियम?
नियम के मुताबिक अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए पार्टी के 15 फीसदी सांसदों का इसके पक्ष में होना जरूरी है। इस वक्त कंजरवेटिव पार्टी के 359 सांसद हैं। यानी इस अविश्वास को लाने के लिए 54 सांसदों की जरूरत थी। अविश्वास प्रस्ताव लाने वालों ने ग्राहम ब्रैडी को पत्र लिखा था। ब्रैडी 1922 कमेटी के प्रमुख हैं, जो कंजरवेटिव सांसदों का एक ताकतवर समूह है। खत लिखने वालों में कंजरवेटिव पार्टी के वो सांसद शामिल थे जो फिलहाल सरकार में किसी पद पर नहीं हैं।  

प्रस्ताव के दौरान क्या हुआ?
बोरिस जॉनसन के पक्ष में 211 मत पड़े। जॉनसन के खिलाफ 148 वोट डाले गए। कंजरवेटिव 1922 कमेटी के अध्यक्ष सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि कुल 359 वोट डाले गए। कंजरवेटिव पार्टी के सभी 359 सांसदों ने अपना वोट डाला। वोटिंग सीक्रेट बैलट से हुई। प्रधानमंत्री जॉनसन को पद पर बने रहने के लिए कम से कम 180 वोट की जरूरत थी। जानसन को इससे काफी ज्यादा मत मिले। 

किस मामले की वजह से जॉनसन के खिलाफ ये प्रस्ताव आया था? 
पार्टीगेट मामले की वजह से जॉनसन के खिलाफ ये प्रस्ताव आया था। पार्टीगेट मामला कोरोना महामारी के शुरुआती दिनों यानी 20 जून 2020 को ब्रिटिश पीएम कार्यालय 10 डाउनिंग स्ट्रीट में जन्मदिन पार्टी करने से जुड़ा है। 

यह पार्टी कोरोना नियमों का उल्लंघन कर कैबिनेट कक्ष में आयोजित की गई थी। इसका जिम्मेदार पीएम जॉनसन व उनकी पत्नी कैरी को माना गया। ब्रिटिश नेताओं ने इसे ‘पार्टीगेट स्कैंडल’ करार दिया।

स्कॉटलैंड पुलिस की जांच में जॉनसन समेत 83 लोगों पर जुर्माना लगाया गया। इन लोगों में पीएम जॉनसन, उनकी पत्नी कैरी जॉनसन और ब्रिटिश मंत्री ऋषि सुनक के नाम शामिल हैं। पार्टीगेट का मामला सामने आने के बाद जॉनसन पर इस्तीफा देने का दबाव बढ़ रहा था।

जीत के बाद जॉनसन के लिए क्या बदलेगा?
ब्रिटिश राजनीति के विशेषज्ञों को भी जॉनसन की जीत का अनुमान था। हालांकि, इस प्रस्ताव के बाद  उनके नेतृत्व को झटका जरूर लगा है। जॉनसन ने 211 सांसदों का विश्वास पाया, लेकिन विपक्ष में पड़े 148 वोटों ने साबित कर दिया कि वह सर्वमान्य चेहरे का अपना रुतबा खो चुके हैं। यानी, उनकी अपनी पार्टी के 40 फीसदी सदस्य उनके विरोधी हो चुके हैं।  

इस जीत के साथ ही जॉनसन को अगले एक साल तक इस तरह के प्रस्ताव का सामना नहीं करना पड़ेगा।  हालांकि, अब जॉनसन विपक्ष के निशाने पर रहेंगे। प्रक्रिया खत्म होते ही विपक्षी लेबर पार्टी ने जॉनसन को निशाने पर लिया। लेबर पार्टी के केइर स्टारमर ने कहा, यह फैसला देश को करना है कि उन्हें विभाजित कंजरवेटिव पार्टी चाहिए या फिर एकजुट लेबर पार्टी।

जॉनसन अगर विश्वास खो देते तो क्या होता?
पार्टी सांसदों का विश्वास खोने की स्थिति में जॉनसन को इस्तीफा देना पड़ताष  इसके बाद पार्टी में नए नेता के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होती। इस प्रक्रिया में जॉनसन हिस्सा नहीं ले पाते। 

कंजरवेटिव पार्टी में नेता के चुनाव के लिए दो चरण होते हैं। पहले चरण में कंजरवेटिव पार्टी के सभी सांसदों में अपनी पसंद के नेता को चुनते हैं। जिस उम्मीदवार को सबसे कम वोट मिलते हैं वो दौड़ से बाहर हो जाता है। वोटिंग तब तक चलती है जब तक दो उम्मीदवार नहीं बच जाते हैं। 

जब केवल दो उम्मीदवार बचते हैं तब उन्हें देश के सभी पार्टी सदस्यों द्वारा वोट दिया जाता है। इसमें जो जीतता है वो पार्टी का नया नेता बनता है। 

इससे पहले क्या इस तरह का चुनाव हुआ है
2019 में लीडरशिप के लिए इस तरह का चुनाव हुआ था। तब 10 उम्मीदवार मैदान में थे। पहले चरण की वोटिंग के बाद बोरिस जॉनसन और पूर्व स्वास्थ्य सचिव जेरेमी हंट दो उम्मीदवार बचे। दूसरे चरण में जब पार्टी के सदस्यों ने वोट डाले तब जॉनसन को दो तिहाई वोट मिले थे। कंजरवेटिव पार्टी के नेता का चुनाव होने के बाद चुना गया नेता नया प्रधानमंत्री बनता है।  

विस्तार

आपने कभी सोचा है कि भारत में किसी प्रधानमंत्री को अपनी ही पार्टी से विश्वास मत हासिल करने की चुनौती मिल सकती है। लेकिन, ब्रिटेन में ऐसा हो सकता है। सोमवार को मौजूदा प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के साथ भी ऐसा ही हुआ। सत्ताधारी कंजरवेटिव पार्टी के सांसदों ने देर रात इस बात पर वोट डाले। हालांकि, जॉनसन विश्वासमत हासिल करने में सफल रहे।  

ब्रिटेन में कंजरवेटिव पार्टी के सांसद कैसे अपने नेता को चुनौती दे सकते हैं? आखिर किस वजह से जॉनसन के खिलाफ ये प्रस्ताव लाया गया था? अगर फैसला जॉनसन के खिलाफ होता तो क्या होता? अब जॉनसन को कितने वक्त तक इस तरह के प्रस्ताव का सामना नहीं करना पड़ेगा? आइये जानते हैं… 

अविश्वास  प्रस्ताव लाने के लिए क्या हैं नियम?

नियम के मुताबिक अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए पार्टी के 15 फीसदी सांसदों का इसके पक्ष में होना जरूरी है। इस वक्त कंजरवेटिव पार्टी के 359 सांसद हैं। यानी इस अविश्वास को लाने के लिए 54 सांसदों की जरूरत थी। अविश्वास प्रस्ताव लाने वालों ने ग्राहम ब्रैडी को पत्र लिखा था। ब्रैडी 1922 कमेटी के प्रमुख हैं, जो कंजरवेटिव सांसदों का एक ताकतवर समूह है। खत लिखने वालों में कंजरवेटिव पार्टी के वो सांसद शामिल थे जो फिलहाल सरकार में किसी पद पर नहीं हैं।  

प्रस्ताव के दौरान क्या हुआ?

बोरिस जॉनसन के पक्ष में 211 मत पड़े। जॉनसन के खिलाफ 148 वोट डाले गए। कंजरवेटिव 1922 कमेटी के अध्यक्ष सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि कुल 359 वोट डाले गए। कंजरवेटिव पार्टी के सभी 359 सांसदों ने अपना वोट डाला। वोटिंग सीक्रेट बैलट से हुई। प्रधानमंत्री जॉनसन को पद पर बने रहने के लिए कम से कम 180 वोट की जरूरत थी। जानसन को इससे काफी ज्यादा मत मिले। 

किस मामले की वजह से जॉनसन के खिलाफ ये प्रस्ताव आया था? 

पार्टीगेट मामले की वजह से जॉनसन के खिलाफ ये प्रस्ताव आया था। पार्टीगेट मामला कोरोना महामारी के शुरुआती दिनों यानी 20 जून 2020 को ब्रिटिश पीएम कार्यालय 10 डाउनिंग स्ट्रीट में जन्मदिन पार्टी करने से जुड़ा है। 

यह पार्टी कोरोना नियमों का उल्लंघन कर कैबिनेट कक्ष में आयोजित की गई थी। इसका जिम्मेदार पीएम जॉनसन व उनकी पत्नी कैरी को माना गया। ब्रिटिश नेताओं ने इसे ‘पार्टीगेट स्कैंडल’ करार दिया।

स्कॉटलैंड पुलिस की जांच में जॉनसन समेत 83 लोगों पर जुर्माना लगाया गया। इन लोगों में पीएम जॉनसन, उनकी पत्नी कैरी जॉनसन और ब्रिटिश मंत्री ऋषि सुनक के नाम शामिल हैं। पार्टीगेट का मामला सामने आने के बाद जॉनसन पर इस्तीफा देने का दबाव बढ़ रहा था।

जीत के बाद जॉनसन के लिए क्या बदलेगा?

ब्रिटिश राजनीति के विशेषज्ञों को भी जॉनसन की जीत का अनुमान था। हालांकि, इस प्रस्ताव के बाद  उनके नेतृत्व को झटका जरूर लगा है। जॉनसन ने 211 सांसदों का विश्वास पाया, लेकिन विपक्ष में पड़े 148 वोटों ने साबित कर दिया कि वह सर्वमान्य चेहरे का अपना रुतबा खो चुके हैं। यानी, उनकी अपनी पार्टी के 40 फीसदी सदस्य उनके विरोधी हो चुके हैं।  

इस जीत के साथ ही जॉनसन को अगले एक साल तक इस तरह के प्रस्ताव का सामना नहीं करना पड़ेगा।  हालांकि, अब जॉनसन विपक्ष के निशाने पर रहेंगे। प्रक्रिया खत्म होते ही विपक्षी लेबर पार्टी ने जॉनसन को निशाने पर लिया। लेबर पार्टी के केइर स्टारमर ने कहा, यह फैसला देश को करना है कि उन्हें विभाजित कंजरवेटिव पार्टी चाहिए या फिर एकजुट लेबर पार्टी।

जॉनसन अगर विश्वास खो देते तो क्या होता?

पार्टी सांसदों का विश्वास खोने की स्थिति में जॉनसन को इस्तीफा देना पड़ताष  इसके बाद पार्टी में नए नेता के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होती। इस प्रक्रिया में जॉनसन हिस्सा नहीं ले पाते। 

कंजरवेटिव पार्टी में नेता के चुनाव के लिए दो चरण होते हैं। पहले चरण में कंजरवेटिव पार्टी के सभी सांसदों में अपनी पसंद के नेता को चुनते हैं। जिस उम्मीदवार को सबसे कम वोट मिलते हैं वो दौड़ से बाहर हो जाता है। वोटिंग तब तक चलती है जब तक दो उम्मीदवार नहीं बच जाते हैं। 

जब केवल दो उम्मीदवार बचते हैं तब उन्हें देश के सभी पार्टी सदस्यों द्वारा वोट दिया जाता है। इसमें जो जीतता है वो पार्टी का नया नेता बनता है। 

इससे पहले क्या इस तरह का चुनाव हुआ है

2019 में लीडरशिप के लिए इस तरह का चुनाव हुआ था। तब 10 उम्मीदवार मैदान में थे। पहले चरण की वोटिंग के बाद बोरिस जॉनसन और पूर्व स्वास्थ्य सचिव जेरेमी हंट दो उम्मीदवार बचे। दूसरे चरण में जब पार्टी के सदस्यों ने वोट डाले तब जॉनसन को दो तिहाई वोट मिले थे। कंजरवेटिव पार्टी के नेता का चुनाव होने के बाद चुना गया नेता नया प्रधानमंत्री बनता है।  



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