Edible Oil: खाद्य तेल की कीमतों पर लगेगी लगाम, विदेशी कीमतें नहीं डाल पाएंगी भारतीय बाजार पर असर, किसानों को भी होगा फायदा


नई दिल्‍ली : पाम (Palm Oil) सहित अन्य खाद्य तेलों की कीमतों (Edible Oil Price) में पिछले कुछ समय से आए भारी-भरकम उछाल पर केंद्र सरकार का ध्‍यान गया है. सरकार ने खाद्य तेलों इन कीमतों को कम करने के उद्देश्‍य से परिस्थितियों का मूल्‍यांकन करते हुए तेल आयात (Edible Oil Imports) की अध‍िक निर्भरता को कम करने की दिशा में कदम उठाने का निर्णय लिया है. इसके तहत तिलहन फसलों को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने बजट में एक नए मिशन की शुरुआत करने का प्रस्‍ताव किया है. इसके जरिये सरकार का लक्ष्‍य है कि अगले पांच साल में तिलहन उपज 50 मिलियन टन तक पहुंचे. इस मिशन से तेल आयात निर्भरता कम होने में मदद मिलेगी. इससे न केवल बाजार में तेजी से बढ़ते खाद्य तेल (Edible Oil) के भाव कम हो पाएंगे, बल्कि तिलहन की फसल को बढ़ावा मिलने की वजह से देश के किसानों को भी फायदा मिलेगा.

दरअसल, खाद्य तेल की अंतरराष्‍ट्रीय कीमतें घरेलू कीमतों को भी प्रभावित करती हैं, ऐसे में सरकार ने बाजार के साथ-साथ किसानों का ध्‍यान रखते हुए बजट में खास प्रावधान किया है. बजट 2022 (Budget 2022) के तहत कृषि एवं किसान कल्‍याण मंत्रालय को दिए अनुदानों में इसका उल्‍लेख किया गया है. सरकार ने लक्ष्‍य के तहत खाद्य तेल (तिलहन) के मामले में भारत को आत्‍मनिर्भर बनाने के लिए उत्‍पादन एवं उत्‍पादकता बढ़ाने के लिए तिलहन फसल (Oilseed Crop) के लिए एक नया मिशन एनएमई-ओएस (NME-OS) शुरु करने का निर्णय लिया है.

एक साल में करीब 100 फीसदी महंगा हुआ सरसों का तेल

सरकार का लक्ष्‍य अगले पांच सालों में इस मिशन के जरिये 1676 किलोग्राम प्रति हेक्‍टेयर उत्‍पादकता के साथ 54.10 मिलियन टन की उपज पैदा करना है. मौजूदा वक्‍त में 1254 किलोग्राम प्रति हेक्‍टेयर के साथ 36.10 मिलियन टन की उपज है. 3.5 मिलियन हेक्टेयर अतिरिक्त तिलहन क्षेत्र (28.79 मिलियन हेक्टेयर से 32.31 मिलियन हेक्टेयर) को चावल वाले बंजर भूमि, अंतर फसल, अधिक उपज वाले जिलों और गैर पारंपरिक राज्य/मौसम के माध्यम से तिलहन कृषि को सरसों एवं सोयाबीन मिशन तथा फसल विविधीकरण के अंतर्गत लाया जाएगा. मंत्रालय के अनुसार, इस मिशन से तेल आयात निर्भरता 52 प्रतिशत घटकर 36 प्रतिशत हो जाएगी.

वहीं, पाम ऑयल (Palm Oil) की बात करें वर्तमान में तिलहन और पाम ऑयल को बढ़ावा देने की योजना एनएफएसएम के माध्यम से कार्यान्वित की जाती है. यह प्रस्तावित है कि इन गतिविधियों को दो नई योजनाओं के तहत शुरू किया जाएगा, क्योंकि भारत कच्चे पाम तेल के आयात पर बहुत अधिक निर्भर रहता है. इसलिए अंतरराष्ट्रीय कीमत घरेलू कीमतों को प्रभावित करती हैं. किसानों को कीमतों में उतार-चढ़ाव से बचाने के लिए इस योजना के माध्यम से एक नया तंत्र प्रस्तावित किया गया है, ताकि पाम तेल रोपण के लिए किसानों का विश्वास पैदा करने के लिए लाभकारी रिटर्न सुनिश्चित किया जा सके. पाम ऑयल प्लांटेशन को आकर्षक बनाने के लिए एनवीएस की विशेष सहायता के साथ पूर्ववर्ती योजना के तहत सहायता के मानदंड पर फिर से विचार किया जाएगा.

बता दें कि पाम ऑयल वनस्पति तेल है, जिसका दुनिया में व्यापक पैमाने पर इस्तेमाल होता है. होटल, रेस्तरां में भी पाम तेल का इस्तेमाल खाद्य तेल की तरह होता है. इसके अलावा कई उद्योगों एवं नहाने वाले साबुन बनाने में भी पाम तेल का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है. फिलहाल दुनियाभर में 8 करोड़ टन से ज्‍यादा पाम ऑयल पैदा होता है. खाने वाले तेलों के मामले में भारत के आयात का दो तिहाई हिस्सा केवल पाम ऑयल का है. भारत सालाना करीब 90 लाख टन से ज्‍यादा पाम ऑयल का आयात करता है.

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