द कश्मीर फाइल्स: कितनी दर्दनाक थी वो रात, कैसे-कैसे हो रहे थे एलान…? पढ़ें- चश्मदीद कौल परिवार की जुबानी


सार

मैं, मेरे माता-पिता और मेरी दो बहनें एक अटैची कपड़ों के साथ दहशत के बीच से निकल आए थे। यह सोचकर कि दो चार साल में सब ठीक हो जाएगा। आज उस घटना को 32 साल गुजर गए। उत्तराखंड के हल्द्वानी में रह रहे कश्मीरी पंडित कौल परिवार का दर्द आया सामने। 

ख़बर सुनें

19 जनवरी 1990 की काली रात को कश्मीरी पंडितों के साथ कश्मीर के श्रीनगर रैनावारी से चार मंजिला मकान और संपत्ति को छोड़कर परिवार समेत पलायन करना बेहद दर्दनाक और डरावना मंजर था। तब मेरी उम्र महज 24 साल रही होगी। उस मंजर को बताते हुए कौल की आंखों में आंसू थमे नहीं। 

कश्मीर विवि के निदेशक रहे और इतिहासकार कश्मीरी पंडित भूषण कुमार कौल के पुत्र विनीत कौल डेम्बी बताते हैं कश्मीरी पंडित कौम काफी पढ़ी लिखी थी। विनीत कौल डेम्बी ने बताया कि मैं, मेरे माता-पिता और मेरी दो बहनें एक अटैची कपड़ों के साथ दहशत के बीच निकल आए थे। यह सोचकर कि दो चार साल में सब ठीक हो जाएगा, आज उस घटना को 32 साल गुजर गए। 

1986 में क्रिकेट मैच से कश्मीर में बदलाव की बयार बहनी शुरू हुई। तब कश्मीर में पांच या सात प्रतिशत हिंदू थे। 1989 में कश्मीर में निजाम ए मुस्तफा यानी इस्लामिक रूल की बातें होने लगीं। यहां से दहशत तेज हो गई। दहशतगर्द कश्मीरी पंडितों को प्रताड़ित करने लगे थे। उसके बाद हिंदू नेताओं की हत्याओं के साथ हमारे घरों की बेटियों और महिलाओं के साथ दुष्कर्म की घटनाएं शुरू हो गईं। नंदग्राम में सिखों और हिंदुओं को सरेआम मार दिया गया था। 

विनीत कौल डेम्बी बताते हैं कि 19 जनवरी 1990 की काली रात को याद कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। रात के अंधेरे में एक बैग कपड़ों का और कुछ नकदी के साथ लाखों कश्मीरी पंडितों, हिंदुओं ने बहू, बेटियों को छुपाते हुए घरबार छोड़ दिया। कुछ जम्मू में आकर सड़कों पर टेंट में रहने लगे तो कुछ ने कैंपों में शरण ली। 

मस्जिदों से दी चेतावनी
16, 17 और 18 जनवरी 1990 में सभी मस्जिदों से अजान के बाद कश्मीरी पंडितों को चेतावनी दी गई कि कश्मीर छोड़कर भाग जाओ या इस्लाम कबूल कर लो। इतना ही नहीं अपने घर की महिलाओं को कश्मीर में ही छोड़ने को कहा गया। 

विनीत कौल डेम्बी का परिवार 32 साल से हल्द्वानी के मथुरा विहार, नवाबी रोड में रहता है। कश्मीरी पंडितों के कुछ अन्य परिवार भी हल्द्वानी में रहते हैं। विनीत वर्तमान में कंपनी में जोनल मैनेजर हैं। वह बताते हैं कि 1990 में कश्मीरी पंडितों के मकानों, स्कूलों पर कब्जे कर लिए गए। उनके पड़ोसी मुस्लिम परिवार ने मदद की पेशकश की तो एक बारगी सांत्वना मिली लेकिन 50 हजार रुपये देकर जब उन्होंने जमीन के कागज यहीं छोड़कर जाने को कहा तो असलियत का पता चला।

ऑनलाइन नहीं, थियेटर में देखें फिल्म
विनीत का कहना है कि हिंदुओं और सिखों के नरसंहार पर बनी फिल्म द कश्मीर फाइल्स एक बेहतर और वास्तविक फिल्म है, जिसे जनता को थियेटर में जाकर देखना चाहिए। उन्होंने यह भी अपील कि है कि इस फिल्म को ऑनलाइन भी दिखाया जा रहा, लेकिन उसमें कई चीजें नहीं दिखाई गई हैं।

केंद्रीय मंत्री जगमोहन की वजह से खा रहे रोटी
कश्मीर में निवास करने वाले 95 प्रतिशत कश्मीरी पंडित, हिंदू सर्विस क्लास थे। 1990 को जब कश्मीर छोड़ना पड़ा तब केंद्रीय मंत्री जगमोहन ने सर्विस क्लास के लिए स्पेशल छुट्टी ऑर्डर की, जिसकी बदौलत नौकरी बची रही और कर्मचारी आज भी रोटी खा पा रहे हैं।  

हल्द्वानी में टिक्कू परिवार ने की कश्मीरी पंडितों की मदद 
विनीत कौल बताते हैं कि 32 साल पहले कश्मीर छोड़कर जब हल्द्वानी आए थे, तब यहां रहने वाले टिक्कू परिवार खासकर राज टिक्कू परिवार ने कश्मीरी पंडितों की मदद की।

विस्तार

19 जनवरी 1990 की काली रात को कश्मीरी पंडितों के साथ कश्मीर के श्रीनगर रैनावारी से चार मंजिला मकान और संपत्ति को छोड़कर परिवार समेत पलायन करना बेहद दर्दनाक और डरावना मंजर था। तब मेरी उम्र महज 24 साल रही होगी। उस मंजर को बताते हुए कौल की आंखों में आंसू थमे नहीं। 

कश्मीर विवि के निदेशक रहे और इतिहासकार कश्मीरी पंडित भूषण कुमार कौल के पुत्र विनीत कौल डेम्बी बताते हैं कश्मीरी पंडित कौम काफी पढ़ी लिखी थी। विनीत कौल डेम्बी ने बताया कि मैं, मेरे माता-पिता और मेरी दो बहनें एक अटैची कपड़ों के साथ दहशत के बीच निकल आए थे। यह सोचकर कि दो चार साल में सब ठीक हो जाएगा, आज उस घटना को 32 साल गुजर गए। 

1986 में क्रिकेट मैच से कश्मीर में बदलाव की बयार बहनी शुरू हुई। तब कश्मीर में पांच या सात प्रतिशत हिंदू थे। 1989 में कश्मीर में निजाम ए मुस्तफा यानी इस्लामिक रूल की बातें होने लगीं। यहां से दहशत तेज हो गई। दहशतगर्द कश्मीरी पंडितों को प्रताड़ित करने लगे थे। उसके बाद हिंदू नेताओं की हत्याओं के साथ हमारे घरों की बेटियों और महिलाओं के साथ दुष्कर्म की घटनाएं शुरू हो गईं। नंदग्राम में सिखों और हिंदुओं को सरेआम मार दिया गया था। 

विनीत कौल डेम्बी बताते हैं कि 19 जनवरी 1990 की काली रात को याद कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। रात के अंधेरे में एक बैग कपड़ों का और कुछ नकदी के साथ लाखों कश्मीरी पंडितों, हिंदुओं ने बहू, बेटियों को छुपाते हुए घरबार छोड़ दिया। कुछ जम्मू में आकर सड़कों पर टेंट में रहने लगे तो कुछ ने कैंपों में शरण ली। 

मस्जिदों से दी चेतावनी

16, 17 और 18 जनवरी 1990 में सभी मस्जिदों से अजान के बाद कश्मीरी पंडितों को चेतावनी दी गई कि कश्मीर छोड़कर भाग जाओ या इस्लाम कबूल कर लो। इतना ही नहीं अपने घर की महिलाओं को कश्मीर में ही छोड़ने को कहा गया। 



Source link

Enable Notifications OK No thanks