नई दिल्ली. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने कच्चे तेल की बढ़ी कीमतों का वैश्विक मुद्रास्फीति और विकास दृष्टिकोण के संदर्भ में रविवार को एक रिपोर्ट जारी की. आईएमएफ ने कहा है कि तेल की बढ़ी हुई कीमतें कुछ लोगों को 1970 के दशक की याद दिला सकती हैं जब भू-राजनैतिक कारणों से ईंधन की कीमतें बहुत बढ़ गई थीं.
बकौल आईएमएफ, उच्च मुद्रास्फीति और धीमी विकास दर के कारण उस समय जो मुद्रास्फीति जनित मंदी (स्टेगफ्लेश) पैदा हुई थी उसकी यादों ने एक बार फिर लोगों के मन में ऐसा कुछ होने का डर पैदा कर दिया है. आईएमएफ ने कहा है, “हालांकि, अब समय बदल गया है. केंद्रीय बैंक भी आज बहुत बदल चुके हैं. वे आज अधिक स्वतंत्र हैं और इन दशकों में उनकी मौद्रिक नीतियों पर लोगों का भरोसा बढ़ा है. हम उम्मीद करते हैं वैश्विक विकास दर 3.5 फीसदी के करीब रहेगी जबकि हमारी हालिया वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट ने पहले ही इसे कम बताया था. हालांकि, ये इससे और नीचे जा सकता है और मुद्रास्फीति अनुमान से बहुत अधिक हो सकती है. इसका सबसे अधिक प्रभाव यूरोप पर देखने को मिल सकता है क्योंकि ईंधन के लिए उनकी रूस पर निर्भरता बहुत अधिक है.”
यूक्रेन युद्ध से आर्थिक नुकसान
आईएमएफ ने पिछले महीने जारी अपनी वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक में कहा था कि यूक्रेन में युद्ध से मानवीय संकट तो पैदा हुआ ही है इससे आर्थिक संकट भी गहरा रहा है. आईएमएफ के अनुसार, युद्ध के कारण 2022 में वैश्विक वृद्धि में काफी सुस्ती देखने को मिलेगी जिससे मुद्रास्फीति और बढ़ेगी. ईंधन व खाद्य सामग्रियां बहुत तेजी से महंगी हुई हैं और इसका प्रभाव संकटग्रस्त देशों पर सबसे अधिक पड़ा है. वैश्विक आर्थिक वृद्धि 2021 के 6.1 से गिरकर 2022, 2023 में 3.6 फीसदी रहने का अनुमान है. ये जनवरी में अनुमानित वृद्धि दर से क्रमश: 0.8 और 0.2 फीसदी कम है. 2023 से आगे इसके लुढ़कर 3.3 फीसदी तक पहुंचने का अनुमान है. इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत सभी बड़ी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेजी से वृद्धि करेगा. भारत की जीडीपी विकास दर 2022 में 8.2 फीसदी और 2023 में 6.9 फीसदी रहने का अनुमान है. आईएमएफ ने कहा है कि मानवीय, आर्थिक, पर्यावरणीय संकट को दूर करने के लिए संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता है.
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Tags: IMF
FIRST PUBLISHED : May 09, 2022, 14:37 IST