अपने अंदर 30 छोटी पृथ्वी निगल चुका है बृहस्पति- NASA


Jupiter यानि बृहस्पति ग्रह हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। इसका आकार इतना बड़ा है, अगर सारे ग्रहों को मिला भी दें तो यह उनसे तब भी 2.5 गुना बड़ा साबित होता है। इसके बारे में हम सुनते आए हैं कि यह हीलियम और हाइड्रोजन गैसों से मिलकर बना है। लेकिन दूसरे गैसीय ग्रहों की तरह इसके निर्माण में भी धातु का इस्तेमाल हुआ है। वैज्ञानिकों ने अब पता लगा लिया है कि इसमें जो धातु मौजूद हैं क्या वे इसने दूसरे ग्रहों से ली थीं या यह पूरे के पूरे सूक्ष्म ग्रहों को अपने अंदर निगल चुका है!

Gravity Science यंत्र का इस्तेमाल करके नासा के स्पेस क्राफ्ट जूनो (Juno) के माध्यम से वैज्ञानिकों ने बृहस्पति ग्रह के निर्माण में शामिल होने वाले एलिमेंट्स का पता लगा लिया है। Juno का नाम भी जुपिटर से ही जुड़ा है। रोमन गॉड जुपिटर से विवाह करने वाली रोमन फीमेल गॉड के नाम पर इसका नाम जूनो रखा गया है। जूनो को 2016 में बृहस्पति के ऑर्बिट में उतारा गया था। वहां पर इसने ग्रह के ग्रेविटेशनल फील्ड को मापने के लिए रेडियो वेव्ज का इस्तेमाल किया। 

वैज्ञानिकों ने पाया कि बृहस्पति ग्रह के गर्भ में धातु जैसे तत्व मौजूद हैं जिनका माप धरती के आकार  से 11 से 30 गुना तक है। ये मेटल ग्रह के ठीक केंद्र के पास हैं।  

“जुपिटर जैसे गैस दैत्य के लिए मेटल इकट्ठा करना दो तरीके से संभव हो सकता है- या तो इसमें धातु के छोटे छोटे टुकड़े जाकर इकट्ठे हुए हैं या फिर इसने ग्रहों को अपने अंदर निगल लिया है।” स्टडी के प्रमुख लेखक यामिला मिग्यूल ने कहा। इस स्टडी को Jupiter’s inhomogeneous envelope का शीर्षक दिया गया है, जिसे Astronomy and Astrophysics जर्नल में प्रकाशित किया गया है। 

“हम जानते हैं कि एक नवजात ग्रह जब इस लायक हो जाता है तो वह छोटे छोटे धातु के टुकड़ों को बाहर फेंकने लगता है। जुपिटर में अभी धातुओं का जो भंडार है वो पहले संभव नहीं हो सकता था। इसलिए हम इस बात को छोड़ सकते हैं कि इतनी ज्यादा मेटल पहले से मौजूद थी और ये कह सकते हैं कि जुपिटर के बनने के समय केवल छोटे धातु के टुकड़े ही रहे होंगे। उसके बाद इसने ग्रहों के बड़े टुकड़ों को निगला है जिनसे इतनी ज्यादा मात्रा में धातु इकट्ठा हुई पाई गई है।”

अंअंतरिक्ष में मौजूद बड़े पिंडों, जो छोटे ग्रह जैसे होते हैं, को Planetesimals कहा जाता है।ये अंतरिक्ष में मौजूद धूल और कणों के बने होते हैं। एक बार जब ये एक किलोमीटर तक के आकार में बड़े हो जाते हैं तो इनका अपना एक गुरुत्वाकर्षण बल पैदा हो जाता है जिससे ये दूसरे टुकड़ों को खींचकर आकार में ग्रहों के जितने बड़े होते चले जाते हैं। फिर इन्हें  protoplanets या छोटे ग्रह कहा जाता है। 

“हमारे नतीजे ये कहते हैं कि जब बृहस्पति का हीलियम और हाइड्रोजन का बाहरी आवरण बड़ा हो रहा था, तब इसने धातु के इन सूक्ष्म ग्रहों को अपने अंदर निगला होगा, जिसके कारण इसके अंदर वर्तमान में इतनी ज्यादा मात्रा में धातु मौजूद है।” मिग्यूल ने कहा। 
 

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