Kaali Poster Row: काली फिल्म पर बंगाल में उबाल, इन 60 लाख वोटों में छिपा है भाजपा के विरोध का राज


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काली फिल्म के पोस्टर पर बढ़ते विवाद के बीच भाजपा ने पश्चिम बंगाल में बेहद आक्रामक तेवर अपना रखा है। पार्टी नेता शुभेंदु अधिकारी के नेतृत्व में पार्टी ने प्रदेश में जगह-जगह विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया है तो गुरुवार को कोलकाता में एक बैठक कर इस प्रदर्शन को और तेज करने की रणनीति बनाई गई है। काली पोस्टर विवाद में जल्द ही राज्य में और बड़े प्रदर्शन हो सकते हैं। विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी के सामने चारों खाने चित्त हुई भाजपा को लग रहा है कि इस विवाद पर उसे जनता का साथ मिल सकता है। पश्चिम बंगाल की सांस्कृतिक पहचान रहीं काली के नाम पर वह हिंदू मतदाताओं को और ज्यादा एकजुट कर सकती है।

हिंदू हितों पर शांत नहीं बैठ सकते- भाजपा

पश्चिम बंगाल भाजपा नेता भास्कर घोष ने अमर उजाला को बताया कि मां काली उनके प्रदेश की आत्मा हैं। वे यहां के कला, साहित्य, समाज और संस्कृति के हर स्वरूप में दिखाई पड़ती हैं। पश्चिम बंगाल से लेकर असम तक की जनता उनके 108 रूपों को किसी न किसी रूप में पूजा करती है और स्वयं को उनकी छाया में प्राणवान महसूस करती है। इसलिए भाजपा हिंदुओं के इस मुद्दे पर शांत नहीं रह सकती, जो यहां के जन-जन की आत्मा में बसा हुआ है। उन्होंने कहा कि मां काली का अपमान कर महुआ मोइत्रा ने पश्चिम बंगाल की संस्कृति पर हमला किया है। इसे कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता।

भाजपा नेता ने बताया कि पार्टी के शीर्ष नेता इस पर मंथन कर रहे हैं। यदि महुआ मोइत्रा और तृणमूल कांग्रेस सामने आकर इस प्रकरण पर पूरे राज्य की जनता से माफी नहीं मांगती, और महुआ पर उपयुक्त धाराओं में केस दर्ज नहीं किया जाता, तो यह विरोध तेज होगा जिसे संभालना ममता बनर्जी के लिए मुश्किल होगा।

कितने वोट, कितनी सीट

भाजपा के इस तेवर को चुनावी फायदे के लिए एक बेहतर मौके के तौर पर देखा जा रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को पश्चिम बंगाल में 17.02 फीसदी वोट मिले। उसे कुल 42 सीटों में केवल दो सीटों पर सफलता मिली थी। जबकि ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी को 39.05 फीसदी वोटों के साथ 34 सीटों पर सफलता मिली थी। 2016 के प्रदेश विधानसभा चुनाव में टीएमसी को 44.91 फीसदी वोटों के साथ 211 सीटों पर सफलता मिली।

लेकिन इसके बाद अगले आम चुनाव से भाजपा ने टीएमसी और वामदलों के गढ़ में जबरदस्त सेंध लगाई। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 18 सीटों पर सफलता मिली और उसका मत प्रतिशत आश्चर्यजनक रूप से 40.7 फीसदी के पार पहुंच गया। वह तृणमूल कांग्रेस के 43.3 फीसदी प्रतिशत वोटों से थोड़ा ही पीछे रह गई। हालांकि, भाजपा ने टीएमसी के 2014 के वोट शेयर से ज्यादा वोट प्रतिशत प्राप्त किए। टीएमसी को इस चुनाव में पिछले चुनाव के मुकाबले 12 सीटों का नुकसान हुआ और वह केवल 22 सीटें ही हासिल कर सकी।

ममता से केवल इतना पीछे

पिछले विधानसभा चुनाव 2021 में टीएमसी एक बार फिर विजयी रही। उसे 215 सीटों पर सफलता मिली। ममता बनर्जी की पार्टी को 48.02 फीसदी के साथ 2.89 करोड़ लोकप्रिय मत मिले। पिछले लोकसभा चुनाव परिणामों से उत्साहित भाजपा को केवल 77 सीटों से संतोष करना पड़ा, लेकिन इस हारे चुनाव में भी लगभग 38 फीसदी वोट और 2.29 करोड़ लोकप्रिय वोट मिले। यानी इस बेहद गर्म चुनाव में भी भाजपा टीएमसी से केवल 60 लाख वोट ही पीछे रही।    

60 लाख वोटों का राज

पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, वामदलों और अन्य छोटे दलों ने भाजपा को हराने के लिए जिस तरह एकजुट होकर हथियार डाल दिए थे, उससे इतर यदि पश्चिम बंगाल का चुनाव त्रिकोणीय हुआ तो सत्ता भाजपा के हाथ आ सकती है। पश्चिम बंगाल में लगभग एक तिहाई मतदाता मुसलमान है। माना जाता है कि यह पूरा वोट केवल तृणमूल के खाते में गया है। यदि ऐसा है तो तृणमूल कांग्रेस के कुल 2.89 करोड़ में हिंदू मतदाताओं का बेहद छोटा हिस्सा ही उसके साथ गया है।

वहीं, भाजपा के 2.29 करोड़ वोटरों में बड़ा हिस्सा हिंदू मतदाताओं का रहा है। सीएसडीएस के मुताबिक, 2019 के चुनाव में भाजपा को 57 फीसदी हिंदू मतदाताओं का साथ मिला था, जबकि 2021 में उसे केवल 50 फीसदी के करीब हिंदू मतदाताओं का साथ मिला। यदि भाजपा हिंदू मतदाताओं के लिए लड़ती हुई दिखाई नहीं देगी, तो इस मत प्रतिशत में और ज्यादा कमी आ सकती है जो उसके 2024 की संभावनाओं को कमजोर कर सकती है।

यानी पश्चिम बंगाल की सत्ता हासिल करने, या 2024 में अपने मजबूत प्रदर्शन के लिए उसे केवल अपने वोटरों को बनाकर रखते हुए इन 60 लाख मतदाताओं में से कुछ को अपने साथ जोड़ना है। अपने मतदाताओं को न खोने के लिए भाजपा के लिए जरूरी है कि वह हिंदू मतदाताओं के लिए लड़ती हुई दिखाई प़ड़े, और काली फिल्म के विरोध के साथ भाजपा यही करने की कोशिश कर रही है।

विस्तार

काली फिल्म के पोस्टर पर बढ़ते विवाद के बीच भाजपा ने पश्चिम बंगाल में बेहद आक्रामक तेवर अपना रखा है। पार्टी नेता शुभेंदु अधिकारी के नेतृत्व में पार्टी ने प्रदेश में जगह-जगह विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया है तो गुरुवार को कोलकाता में एक बैठक कर इस प्रदर्शन को और तेज करने की रणनीति बनाई गई है। काली पोस्टर विवाद में जल्द ही राज्य में और बड़े प्रदर्शन हो सकते हैं। विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी के सामने चारों खाने चित्त हुई भाजपा को लग रहा है कि इस विवाद पर उसे जनता का साथ मिल सकता है। पश्चिम बंगाल की सांस्कृतिक पहचान रहीं काली के नाम पर वह हिंदू मतदाताओं को और ज्यादा एकजुट कर सकती है।

हिंदू हितों पर शांत नहीं बैठ सकते- भाजपा

पश्चिम बंगाल भाजपा नेता भास्कर घोष ने अमर उजाला को बताया कि मां काली उनके प्रदेश की आत्मा हैं। वे यहां के कला, साहित्य, समाज और संस्कृति के हर स्वरूप में दिखाई पड़ती हैं। पश्चिम बंगाल से लेकर असम तक की जनता उनके 108 रूपों को किसी न किसी रूप में पूजा करती है और स्वयं को उनकी छाया में प्राणवान महसूस करती है। इसलिए भाजपा हिंदुओं के इस मुद्दे पर शांत नहीं रह सकती, जो यहां के जन-जन की आत्मा में बसा हुआ है। उन्होंने कहा कि मां काली का अपमान कर महुआ मोइत्रा ने पश्चिम बंगाल की संस्कृति पर हमला किया है। इसे कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता।

भाजपा नेता ने बताया कि पार्टी के शीर्ष नेता इस पर मंथन कर रहे हैं। यदि महुआ मोइत्रा और तृणमूल कांग्रेस सामने आकर इस प्रकरण पर पूरे राज्य की जनता से माफी नहीं मांगती, और महुआ पर उपयुक्त धाराओं में केस दर्ज नहीं किया जाता, तो यह विरोध तेज होगा जिसे संभालना ममता बनर्जी के लिए मुश्किल होगा।

कितने वोट, कितनी सीट

भाजपा के इस तेवर को चुनावी फायदे के लिए एक बेहतर मौके के तौर पर देखा जा रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को पश्चिम बंगाल में 17.02 फीसदी वोट मिले। उसे कुल 42 सीटों में केवल दो सीटों पर सफलता मिली थी। जबकि ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी को 39.05 फीसदी वोटों के साथ 34 सीटों पर सफलता मिली थी। 2016 के प्रदेश विधानसभा चुनाव में टीएमसी को 44.91 फीसदी वोटों के साथ 211 सीटों पर सफलता मिली।

लेकिन इसके बाद अगले आम चुनाव से भाजपा ने टीएमसी और वामदलों के गढ़ में जबरदस्त सेंध लगाई। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 18 सीटों पर सफलता मिली और उसका मत प्रतिशत आश्चर्यजनक रूप से 40.7 फीसदी के पार पहुंच गया। वह तृणमूल कांग्रेस के 43.3 फीसदी प्रतिशत वोटों से थोड़ा ही पीछे रह गई। हालांकि, भाजपा ने टीएमसी के 2014 के वोट शेयर से ज्यादा वोट प्रतिशत प्राप्त किए। टीएमसी को इस चुनाव में पिछले चुनाव के मुकाबले 12 सीटों का नुकसान हुआ और वह केवल 22 सीटें ही हासिल कर सकी।

ममता से केवल इतना पीछे

पिछले विधानसभा चुनाव 2021 में टीएमसी एक बार फिर विजयी रही। उसे 215 सीटों पर सफलता मिली। ममता बनर्जी की पार्टी को 48.02 फीसदी के साथ 2.89 करोड़ लोकप्रिय मत मिले। पिछले लोकसभा चुनाव परिणामों से उत्साहित भाजपा को केवल 77 सीटों से संतोष करना पड़ा, लेकिन इस हारे चुनाव में भी लगभग 38 फीसदी वोट और 2.29 करोड़ लोकप्रिय वोट मिले। यानी इस बेहद गर्म चुनाव में भी भाजपा टीएमसी से केवल 60 लाख वोट ही पीछे रही।    

60 लाख वोटों का राज

पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, वामदलों और अन्य छोटे दलों ने भाजपा को हराने के लिए जिस तरह एकजुट होकर हथियार डाल दिए थे, उससे इतर यदि पश्चिम बंगाल का चुनाव त्रिकोणीय हुआ तो सत्ता भाजपा के हाथ आ सकती है। पश्चिम बंगाल में लगभग एक तिहाई मतदाता मुसलमान है। माना जाता है कि यह पूरा वोट केवल तृणमूल के खाते में गया है। यदि ऐसा है तो तृणमूल कांग्रेस के कुल 2.89 करोड़ में हिंदू मतदाताओं का बेहद छोटा हिस्सा ही उसके साथ गया है।

वहीं, भाजपा के 2.29 करोड़ वोटरों में बड़ा हिस्सा हिंदू मतदाताओं का रहा है। सीएसडीएस के मुताबिक, 2019 के चुनाव में भाजपा को 57 फीसदी हिंदू मतदाताओं का साथ मिला था, जबकि 2021 में उसे केवल 50 फीसदी के करीब हिंदू मतदाताओं का साथ मिला। यदि भाजपा हिंदू मतदाताओं के लिए लड़ती हुई दिखाई नहीं देगी, तो इस मत प्रतिशत में और ज्यादा कमी आ सकती है जो उसके 2024 की संभावनाओं को कमजोर कर सकती है।

यानी पश्चिम बंगाल की सत्ता हासिल करने, या 2024 में अपने मजबूत प्रदर्शन के लिए उसे केवल अपने वोटरों को बनाकर रखते हुए इन 60 लाख मतदाताओं में से कुछ को अपने साथ जोड़ना है। अपने मतदाताओं को न खोने के लिए भाजपा के लिए जरूरी है कि वह हिंदू मतदाताओं के लिए लड़ती हुई दिखाई प़ड़े, और काली फिल्म के विरोध के साथ भाजपा यही करने की कोशिश कर रही है।



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