मिस इंडिया रनर अप रूबल शेखावत के पैरंट्स ने किया था मॉडलिंग का विरोध, बोलीं- पापा आर्मी में भेजना चाहते थे


साल 2022 के फेमिना मिस इंडिया की विनर सिनी शेट्टी रहीं। कॉन्टेस्ट की फर्स्ट रनर अप राजस्थान की रूबल शेखावत बनीं। रूबल के लिए यहां तक का सफर आसान नहीं था। अपनी जीत, परिवार और समाज के बारे में रूबल ने नवभारत टाइम्स से खुलकर की है बात।

फेमिना मिस इंडिया 2022 की फर्स्ट रनर अप का खिताब पाकर कैसा महसूस कर रही हैं?
मैं बहुत ही शानदार महसूस कर रही हूं। भारत सुंदरी बनने का मेरा सपना ही नहीं था बल्कि मेरी महत्वाकांक्षा भी थी। बचपन से ही मैं कुछ ऐसा करना चाह रही थी, जिससे मैं अपनी कम्युनिटी का नाम ऊंचा कर सकूं। मैं मूल रूप से राजस्थान से हूं और हमेशा से चाहती थी कि मैं जिस समाज से आती हूं, अपने गौरवान्वित सफर से उन्हें प्रभावित कर सकती हूं। मुझे खुशी है कि मैं ऐसा कर पाई। फिनाले में मेरी मां और भानजी भी आई हुई थी और जब मेरे नाम की घोषणा हुई, तो मेरी मॉम और नीज खुशी के मारे जंप कर रहे थे और उनकी खुशी देख कर मेरी आंखों से आंसू निकल पड़े। हालांकि मैं उन आंसुओं को बहुत मुश्किल से रोक पाई, क्योंकि उस वक्त मेरी ताजपोशी हो रही थी।

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राजस्थान जैसे परंपरावादी माहौल से ताल्लुक रखने के नाते आपको एक लड़की के रूप में किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा है?
चुनौतियां तो कई थीं, क्योंकि मैं एक ऐसी कम्युनिटी से आती हूं, जहां जेंडर स्टीरियोटाइप्स और लिंग भेद आज भी मौजूद है। शुरुआती दौर में मेरा इस प्रोफेशन को चूज करना और इसमें आगे बढ़ना मुश्किल था। मैंने जब मॉडलिंग की शुरुआत की, तो परिवार मेरे खिलाफ था। मेरे पिता आर्मी मैन हैं, तो वे चाहते थे कि मैं भी उन्हीं की तरह आर्मी से जुड़ूं। जब मैं छोटी थी, तब मैं भी इंडियन आर्मी जॉइन करना चाहती थी और अपने देश की सेवा करने की सोचा करती थी, मगर जब मैं बड़ी हुई, तो मुझे अहसास हुआ कि मैं अभिनय और मॉडलिंग को लेकर ज्यादा पैशनेट हूं, तो मैंने ये रास्ता चुनने की ठानी। आरंभ में माता-पिता विरोध में थे, मगर जब उन्हें एहसास हुआ कि इस रास्ते पर चल कर मैं खुद को ही नहीं बल्कि उन्हें भी प्राउड फील करवाना चाहती हूं, तो उन्होंने मुख्तलिफ सोच रखने के बावजूद मेरा साथ दिया। मेरा पहला ब्यूटी पेजेंट राजस्थान से ही था। जब मेरे पैरेंट्स को लगा कि मेरी खुशी इसी में है और इस राह को चुनकर मैं किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचा रही, तो उन्होंने मेरा हर तरह से साथ दिया। इसके अलावा एक और चैलेंज का मैंने बचपन में सामना किया है। मैं तब बहुत पतली हुआ करती थी और मेरा काफी मजाक भी उड़ाया जाता था, मगर मुझ में आत्मविश्वास का संचार करने वाले मेरे माता-पिता ही थे। पैरेंट्स ने ही मुझे सिखाया कि कैसे जिंदगी में सकारात्मक रवैया रखा चाहिए।
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भारत सुंदरी बनने के इस सफर में क्या कभी खुद की प्रतिभा को लेकर आपको डाउट आया?
आप जब फेमिना मिस इंडिया 2022 जैसे प्रतिष्ठित कॉन्टेस्ट में भाग ले रहे होते हैं और आपके साथ 30 स्टेट विनर्स भी होती हैं, तो कई बार सेल्फ डाउट भी आता है कि कहीं मैं पिछड़ तो नहीं जाऊंगी? कहीं मुझसे कुछ गलती तो नहीं हो जाएगी? मगर फिर जब भी ऐसे नकारात्मक खयाल आते, मैं आईने में देख कर खुद से पूछती कि मैं यहां क्यों हूं? ऐसे समय में मैं अपनी मां और बहन से बात किया करती थी। वे दोनों मेरे लिए आधार स्तंभ रहे हैं। उनसे बाद करके मैं काफी पॉजिटिव महसूस किया करती थी।
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आप मैटरनल और चाइल्ड हेल्थ केयर के क्षेत्र में काम करने की इच्छुक हैं? क्या इसके पीछे कोई विशेष कारण है?
राजस्थान में मैंने कई जगहों पर ऐसा देखा है कि औरतों को बच्चा पैदा करने वाली मशीन समझा जाता है। ये एक ऐसा कड़वा सच था, जो हमेशा से मेरे आस-पास था। मेरे घर में एक हाउस हेल्प थी, जो तीन बेटियों की मां थी और वो कई स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से गुजर रही थी, मगर इसके बावजूद उसे चौथी बार कंसीव होना पड़ा, क्योंकि घरवालों को बेटा चाहिए था। उस वक्त मैंने उसे अपनी सेहत और काम के साथ जूझते हुए देखा था। वे लोग आर्थिक रूप से भी कमजोर थे। उस वक्त मुझे लगा कि अगर ये लोग अभावग्रस्त होकर ऐसे बच्चे को जन्म देते हैं, जिसका ये सही तरीके से पालन-पोषण नहीं कर सकते, तो कहीं न कहीं ये खुद और समाज पर एक लाइबेलिटी बन जाते हैं। हां, अगर आप एक बच्चे की सही परवरिश करके उसे अच्छा इंसान बना पाते हैं, तो ये देश के लिए एक एसेट होता है। यही वजह है कि मैं ऐसी तमाम महिलाओं और बच्चों की सेहत के लिए काम करना चाहती हूं। मैं नहीं चाहती कि लोग औरत को बच्चा पैदा करने की मशीन समझें। या इस सोच के साथ जिएं कि बेटा नहीं होगा तो परिवार पूर्ण नहीं हो पाएगा। मैं लोगों को इस सोच के साथ जागरूक करना चाहती हूं कि एक परिवार के लिए लड़की का होना भी काफी है। एजुकेशन मेरी अगली पहल होगी, मगर मेरा पहला काम मां और बच्चे की सेहत को सुनिश्चित करना होगा।
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अपने परिवार में आप तीन बहनें हैं, तो क्या ‘काश बेटा होता’ वाला दबाव आपने अपने घर में महसूस किया?
हां, अपने पूरे बचपन में मैंने इस सोच का सामना किया है। मैं तीन बहनों में सबसे छोटी हूं, तो आम तौर पर जब मुझसे पूछा जाता कि कितने भाई-बहन हैं और जब उन्हें पता चलता कि मेरा कोई भाई नहीं है, तो वे लोग दुखी होकर मुझसे सहानुभूति दर्शाने लगते। मगर जब मैं अपने घर पर आकर ये बात बताती, तो पापा कहते, ‘तू मेरे बेटे से कम है क्या? तू मेरा बेटा ही है।’ मेरे मम्मी -पापा ने हम तीनों बहनों को कभी ये महसूस नहीं होने दिया कि काश उनका एक बेटा होता। ये भी एक कारण हैं कि मैं मैटरनिटी और चाइल्ड हेल्थ के क्षेत्र में काम करना चाहती हूं।
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एंटी अबॉर्शन लॉ के बारे में क्या राय रखती हैं आप?
मैं इस लॉ के खिलाफ हूं। एक औरत का मूलभूत अधिकार हैं अपने शरीर से जुड़े फैसले लेना, सीधी सी बात है कि जब एक महिला मां बनती है, तो सबसे ज्यादा उसकी जिंदगी प्रभावित होती है। अगर आप मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से इतने समर्थ नहीं हैं कि बच्चे की सही परवरिश कर सकें, तो आपको उसे दुनिया में लाने का कोई अधिकार नहीं।

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