Business Idea: बदलती दुनिया में खेती का स्वरूप भी बदल गया है. आज खेती केवल दो जून की रोटी का इंतजाम करने वाला जरिया नहीं रह गई है, बल्कि खेतों में कामयाबी की फसल तैयार हो रही है. ऐसे तमाम नौजवान हैं जो मल्टी नेशनल कंपनियों की नौकरी छोड़कर खेती कर रहे हैं और शोहरत की नई इबारत लिख रहे हैं.
आज हम एक ऐसी ही फसल के बारे में बता रहे हैं जिसका हर हिस्सा बेशकीमती होता है. हम बात कर रहे हैं अश्वगंधा की खेती की. अश्वगंधा की खेती तीन गुना फायदा देने वाली फसल है. अश्वगंधा की खेती से किसान कम समय में अधिक मुनाफा कमा कर मालामाल हो सकते हैं. भारत में अश्वगंधा की खेती हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात, पंजाब, केरल, आंध्र प्रदेश और जम्मू कश्मीर में की जा रही है. इसकी खेती खारे पानी में भी की जा सकती है.
अश्वगंधा की जड़ से घोड़े की तरह गंध आती है, जिस वजह से इसे अश्वगंधा कहते है. अश्वगंधा एक औषधिय फसल है. इसकी बाजार में हमेशा मांग रहती है. यह एक झाड़ीनुमा पौधा होता है. एक बार फसल लगाने पर यह कई साल तक उत्पादन देता है. अश्वगंधा की छाल, बीज और फल से कई तरह की दवाएं बनती हैं.
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अश्वगंधा की खेती के लिए मौसम और मिट्टी
अश्वगंधा की खेती गर्मी के मौसम में वर्षा शुरू होने के समय की जाती है. अच्छी फसल के लिए जमीन में नमी और मौसम शुष्क होना चाहिए. रबी के मौसम में यदि वर्षा हो जाए तो फसल में अच्छा सुधार हो जाता है. पौधों के अच्छे विकास के लिए 20-35 डिग्री तापमान और 500 से 750 एमएम वर्षा जरूरी है.
अश्वगंधा की नर्सरी तैयार करना
अगस्त और सितंबर बरसात के बाद खेत की जुताई करनी चाहिए. दो बार कल्टीवेटर से जुताई करने के बाद खेत में पाटा लगा देना चाहिए. नर्सरी से पानी निकासी का इंतजाम होना चाहिए. गोबर की खाद का इस्तेमाल करने से बीजों का अंकुरण अच्छा होता है. नर्सरी के लिए प्रति हेक्टेयर 5 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है.
सिंचाई और बीमारियों से बचाव
अगर सामान्य बरसात हो रही है तो अश्वगंधा की फसल की सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है. जरूरत पड़ने पर सिंचाई की जा सकती है. समय-समय पर खेत से खरपतवार निकलते रहना चाहिए. अश्वगंधा जड़ वाली फसल है इसलिए समय-समय पर निराई-गुडाई करते रहने से फसल अच्छी होती है.
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उत्पादन और कमाई
अश्वगंधा की फसल बोआई के 150 से 170 दिन में तैयार हो जाती है. पत्तियों सूखने लगें तो समझ लेना चाहिए कि फसल पककर तैयार हो गई है. पौधे को उखाडक़र जड़ों को गुच्छे से दो सेमी ऊपर से काट लें और इन्हें सुखा लें. फल को तोड़कर बीज निकाल लें.
एक हेक्टेयर खेत से 7-8 क्विंटल ताजा जड़ प्राप्त होती हैं जो सूखने पर 3-5 क्विंटल रह जाती हैं. इससे 50-60 किलो बीज प्राप्त होता है. एक हेक्टेयर में अश्वगंधा पर अनुमानित खर्चा 10,000 रुपए आता है जबकि करीब 5 क्विंटल जड़ों तथा बीज की बिक्री से लगभग 78,750 रुपए मिल जाते हैं. यानी एक हेक्टेयर से 6 से 7 महीने में 60,000 रुपये से अधिक की आमदनी हो जाती है. इस तरह 5 हेक्टेयर खेत से 3 लाख रुपये की आमदनी हासिल की जा सकती है.
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