आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका में राजनीतिक अस्थिरता आ चुकी है। महंगाई, पेट्रोल-डीजल की कमी समेत तमाम मुश्किलों का सामना कर रहे श्रीलंकाई लोग उग्र हो चुके हैं। शनिवार को हजारों लोगों ने राष्ट्रपति आवास और फिर प्रधानमंत्री के घर को निशाना बना लिया।
प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे के आवास पर पूरी तरह कब्जा कर लिया। इसके बाद प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के घर पहुंच गए और उसे आग के हवाले कर दिया। इस बीच राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे ने एलान किया कि वह 13 जुलाई को इस्तीफा दे देंगे।
आइए जानते हैं कि अब तक श्रीलंका में क्या-क्या हुआ? आगे क्या हो सकता है? श्रीलंका में यह संकट कब दूर होगा?
श्रीलंका में कैसे शुरू हुआ आर्थिक संकट?
यह समझने के लिए आपको एक दशक पहले चलना होगा। बात साल 2009 की है। श्रीलंका 26 साल से जारी गृहयुद्ध से निकला था। युद्ध के बाद की उसकी जीडीपी वृद्धि वर्ष 2012 तक प्रति वर्ष 8-9% के उपयुक्त उच्च स्तर पर बनी रही, लेकिन वैश्विक कमोडिटी मूल्यों में गिरावट, निर्यात की मंदी और आयात में वृद्धि के साथ वर्ष 2013 के बाद उसकी औसत जीडीपी विकास दर घटकर लगभग आधी रह गई।
2008 में गृहयुद्ध के दौरान श्रीलंका का बजट घाटा बहुत ज्यादा था। ऊपर से वैश्विक मंदी का भी दौर था। इसके चलते श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग समाप्त हो गया, जिसके कारण देश को वर्ष 2009 में IMF से 2.6 बिलियन डॉलर का कर्ज लेना पड़ा। इस कर्ज का असर 2013 के बाद देखने को मिला। जीडीपी तेजी से घट रही थी और कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा था। 2016 में श्रीलंका एक बार फिर 1.5 बिलियन डॉलर कर्ज के लिए आईएमएफ के पास पहुंचा, लेकिन आईएमएफ की शर्तों ने श्रीलंका की आर्थिक स्थिति को और बदतर कर दिया।
खैर, श्रीलंका की कमाई का मुख्य जरिया पर्यटन और खेती है। 2019 में इसे भी जोरदार झटका लगा। अप्रैल 2019 के बाद कोलंबो के विभिन्न गिरिजाघरों पर कई हमले हुए। पर्यटन अचानक से 80 फीसदी तक घट गया और इसका असर विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ा। 2019 में सत्ता में आई गोतबाया राजपक्षे की सरकार ने अपने चुनावी वादों को पूरा करने के लिए टैक्स घटा दिया। किसानों को भी कई तरह की रियायत दे दीं, जिससे अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान हुआ। वहीं, श्रीलंका ने आईएमएफ से भी ज्यादा कर्ज चीन से ले लिया, जिसने देश को पूरी तरह तोड़ दिया।
अभी श्रीलंका पुराने नुकसान से जूझ ही रहा था कि साल 2020 में कोरोना महामारी ने हालात पूरी तरह से खराब कर दिए। कोरोना के चलते चाय, रबर, मसालों और कपड़ों के एक्सपोर्ट पर असर पड़ा। पर्यटक आए नहीं, जिससे श्रीलंका के राजस्व और विदेशी मुद्रा की कमाई में जबरदस्त गिरावट आ गई। सरकार के व्यय में वृद्धि के कारण वर्ष 2020-21 में राजकोषीय घाटा 10 फीसदी से अधिक हो गया और ‘ऋण-जीडीपी अनुपात’ वर्ष 2019 में 94% के स्तर से बढ़कर वर्ष 2021 में 119% हो गया।
कोरोना के इन दो साल में श्रीलंका पूरी तरह डूब गया। एक तरफ कर्ज का ब्याज चुकाना पड़ रहा था और दूसरी तरफ देश के लिए ईंधन व अन्य जरूरी सामान आयात करना था। धीरे-धीरे श्रीलंका के पास मौजूद विदेशी मुद्रा पूरी तरह से खत्म हो गई, जिसके बाद अप्रैल 2022 में श्रीलंका ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया।
फिर क्या हुआ?
अप्रैल तक श्रीलंका पूरी तरह से कंगाल हो चुका था। यहां तक कि ईंधन खरीदने के लिए भी श्रीलंका के पास पैसे नहीं बचे। इससे पावर प्लांट बंद हो गए। ट्रांसपोर्टेशन पर असर पड़ा और खाद्य पदार्थ समेत हर चीज महंगी हो गई। उग्र श्रीलंकाई लोग सड़कों पर उतर आए। पड़ोसी मित्र होने के नाते भारत ने लगातार मदद की, लेकिन श्रीलंका को इस संकट से निकालने के लिए यह नाकाफी था। भारत अब भी श्रीलंका को आर्थिक मदद के साथ-साथ ईंधन, दवा व अन्य खाद्य पदार्थ भेज रहा है।
दो महीने में दो प्रधानमंत्रियों का इस्तीफा
श्रीलंका के लोगों ने आर्थिक संकट के लिए राष्ट्रपति राजपक्षे परिवार को जिम्मेदार ठहराया। जब यह संकट शुरू हुआ, तब श्रीलंका सरकार के 70 फीसदी पदों पर राजपक्षे का ही कब्जा था। राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे, प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे समेत कई मंत्री इसी परिवार से थे। लोगों का गुस्सा भड़का तो मई में महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। राजपक्षे परिवार के कुछ अन्य सदस्यों को भी मंत्री पद छोड़ना पड़ा। इसके बाद रानिल विक्रमसिंघे प्रधानमंत्री बने।
हालांकि, दो महीने में लोग उनके खिलाफ भी सड़कों पर उतर आए। शनिवार को रानिल विक्रमसिंघे का घर फूंक दिया गया, जिसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। प्रधानमंत्री के बाद दो मंत्रियों हरिन फर्नांडो और मानुषा ननायाक्करा ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। इस बीच, राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने भी एलान कर दिया कि वह 13 जुलाई को अपना पद छोड़ देंगे।
राष्ट्रपति के इस्तीफे के बाद क्या होगा?
श्रीलंका के संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति के इस्तीफे के बाद तीन दिन में संसद का सत्र बुलाना पड़ेगा। इस सत्र में संसद के किसी एक सदस्य को नए राष्ट्रपति के रूप में चुनना होगा। अगर संसद में एक से ज्यादा सदस्य राष्ट्रपति पद के लिए नामांकन करते हैं तो सीक्रेट बैलेट के जरिए चुनाव होगा। जिस उम्मीदवार को ज्यादा मत मिलेंगे, वह नया राष्ट्रपति चुन लिया जाएगा। यह पूरी प्रक्रिया एक महीने के अंदर करनी होगी। जब तक नए राष्ट्रपति का चुनाव नहीं होता, तब तक प्रधानमंत्री को ये पद संभालना होता है। हालांकि, मौजूदा समय प्रधानमंत्री खुद इस्तीफा दे चुके हैं। ऐसे में नए राष्ट्रपति के चुनाव तक संसद के स्पीकर ही राष्ट्रपति पद की जिम्मेदारी संभालेंगे। मतलब राजपक्षे के इस्तीफे के बाद स्पीकर महिंदा यापा अभयवर्द्धना को पद संभालेंगे।