नई दिल्ली . इंटरनेशनल मार्केट में क्रूड ऑयल की बढ़ती कीमतें आम लोगों के साथ साथ सरकार और सरकारी तेल कंपनियों के लिए गले की हड्डी बन गई हैं. रविवार को पेट्रोल और डीजल की कीमतों में क्रमश: 50 पैसे प्रति लीटर और 55 पैसे प्रति लीटर की बढ़ोतरी की गई थी. इस तरह पिछले हफ्ते ईंधनों की कीमतों में यह पांचवीं वृद्धि थी. जिससे तेल विपणन कंपनियों (OMCs) के स्तर पर क्रमशः 3.70 रुपए और 3.75 रुपए की प्रति लीटर वृद्धि हुई है.
आज सोमवार को भी पेट्रोल-कीतमों में 30 से 35 पैसे की बढ़ोतरी की गई है. ईंधन पंपों की कीमत में वृद्धि स्थानीय बिक्री कर या मूल्य वर्धित कर के आधार पर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होगी.
क्रूड की तुलना में पेट्रोल-डीजल में मामूली बढ़ोतरी
हालांकि, कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि की तुलना में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में इन दिनों काफी कम वृद्धि हुई है. कच्चे तेल के लिए भारतीय बास्केट की कीमत 24 मार्च को 117.7 डॉलर प्रति बैरल थी. नवंबर की शुरुआत से लगभग 41% बढ़ गई है. लेकिन पेट्रोल-डीजल के रेट इस अनुपात में नहीं बढ़े हैं.
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कितना बढ़ना चाहिए था पेट्रोल-डीजल
कोटल इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के विश्लेषक हेमांग खन्ना के मुताबिक, यदि कच्चे तेल के एक बैरल की कीमत 120 डॉलर है, तो राज्य द्वारा संचालित ओएमसी को पेट्रोल और डीजल की कीमतों में क्रमशः ₹22 प्रति लीटर और ₹25 प्रति लीटर की वृद्धि करने की आवश्यकता है, ताकि मानक विपणन मार्जिन 2.7 रुपए प्रति लीटर हो.
तेल कंपनियां को मार्च में घाटा ही घाटा
हालांकि, इस तरह की कीमत वृद्धि को लागू करना मुश्किल होगा. यह न केवल राजनीतिक रूप से कठिन होगा बल्कि यह खुदरा मुद्रास्फीति यानी महंगाई को भी तुरंत बढ़ावा देगा. मुद्रास्फीति पहले से ही भारतीय रिजर्व बैंक के 6% के ऊपरी स्तर से ऊपर है. कोरोना से मार खाई जनता के लिए यह और मुश्किल खड़ी कर देगा. अगर तेल कंपनिया दाम नहीं बढ़ाती हैं तो भी उन्हें मार्जिन में काफी नुकसान उठाना पड़ेगा. कोटक का अनुमान है कि मार्च में अब तक पेट्रोल और डीजल पर कुल विपणन मार्जिन निगेटिव ही रहेगा.
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सरकार को घटाना पड़ सकता है टैक्स
पेट्रोलियम क्षेत्र से होने वाले राजस्व पर केंद्र सरकार की निर्भरता काफी बढ़ गई है. बहरहाल, अगर वह यह सुनिश्चित करना चाहती है कि तेल की बढ़ती कीमत उच्च मुद्रास्फीति यानी महंगाई में तब्दील न हो, तो उसे पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क में कटौती करनी होगी. साल 2014 के बाद से क्रूड ऑयल के दाम काफी सस्ते हुए लेकिन सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क बढ़ाकर अपना फायदा बढ़ा लिया. एक्सपर्ट का मानना है कि अब यह उचित होगा कि सरकार अब टैक्स कम कर दे.
इसका मतलब होगा कम कर संग्रह. इसकी भरपाई के लिए, सरकार को अधिक उधार लेना होगा या विनिवेश और भूमि की बिक्री जैसे गैर-कर मार्गों के माध्यम से अधिक धन अर्जित करने का प्रयास करना होगा. यानी अर्थशास्त्र में मुफ्त खाने की व्यवस्था कहीं नहीं है. किसी न किसी रास्ते से जनता को इसकी कीमत चुकानी ही पड़ेगी. भले ही वो डायरेक्ट हो या इनडायरेक्ट.
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