सार
राजनीतिक विश्लेषक जीडी शुक्ला कहते हैं कि बसपा और सपा ने जिस तरीके से कई साल तक अलग-अलग पार्टी के लिए मेहनत करने वाले नेताओं को अपने दल में शामिल कर टिकट दिया है, उससे निश्चित तौर पर उस विधानसभा का चुनावी गणित बिगड़ा है। हालांकि यह अलग बात है कि यह बिगड़ा हुआ चुनावी गणित किस राजनीतिक पार्टी को फायदा पहुंचाएगा और किसे नुकसान यह 10 मार्च को ही पता चलेगा…
उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनावों में आखिरी चरण के मतदान में राजनीति के तमाम उलट फेरों के बाद दिए गए ‘टिकटों’ की अब परीक्षा होनी है। इसमें बड़े-बड़े नेता तो शामिल हैं ही, वहीं बागियों का असली इम्तिहान भी अभी होना बाकी है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बसपा ने जिस तरीके से राजनीतिक दांव-पेच इस्तेमाल करते हुए बागियों को आगे किया है वह पार्टी की भविष्य की राजनीति को भी तय करेगा। उसका कितना नफा नुकसान होगा यह तो चुनाव के परिणाम बताएंगे, लेकिन बसपा ने अपने बागी दांव से चुनाव को खूब रोचक बना दिया है।
कभी समाजवादी पार्टी सरकार में कद्दावर मंत्री रही शादाब फातिमा सपा और सुभाषपा के गठबंधन के चलते राजनीति की भेंट चढ़ गई। समाजवादी पार्टी ने गाजीपुर की जहूराबाद सीट से शादाब फातिमा का टिकट काटकर ओमप्रकाश राजभर को गठबंधन के चलते यह सीट दे दी। इससे नाराज होकर समाजवादी पार्टी का गुणगान करने वाली शादाब फातिमा ने बसपा का दामन थाम लिया और मायावती ने फातिमा को टिकट दे दिया। अब सपा की बागी शादाब फातिमा सपा गठबंधन की ओर से चुनाव लड़ रहे ओमप्रकाश राजभर से दो-दो हाथ कर रही हैं। सिर्फ बसपा ने यहां पर बागी पर दांव नहीं लगाया है बल्कि कभी बहुजन समाज पार्टी से विधायक रहे कालीचरण राजभर पर भारतीय जनता पार्टी ने दांव लगाया और उन्हें यहां से अपना प्रत्याशी बनाया है। फिलहाल जहूराबाद सीट से किसका कितना नुकसान होगा और कौन जीतेगा, यह तो कल होने वाले चुनाव और उसके परिणाम बताएंगे।
स्वामी प्रसाद मौर्या ने बिगाड़ा खेल
लड़ाई सिर्फ गाजीपुर के जहूराबाद बाद सीट पर ही नहीं है, बल्कि कुशीनगर की फाजिलनगर विधानसभा पर भी बहुजन समाज पार्टी ने ऐसा ही दांव चला है। बसपा ने यहां से इलियास अंसारी को इस बार चुनावी मैदान में उतारा है। वे कुशीनगर में करीब तीस सालों से ज्यादा वक्त से समाजवादी पार्टी का झंडा लेकर चल रहे थे। अंसारी को पूरा भरोसा था कि समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव इस बार उन्हें चुनावी मैदान में यहां से उतारेंगे। लेकिन भाजपा छोड़कर आए स्वामी प्रसाद मौर्या ने सारा खेल बिगाड़ दिया। इसी वजह से इलियास अंसारी समाजवादी पार्टी से इस्तीफा देकर बसपा में शामिल हो गए और मायावती ने इस झगड़े के बीच में इलियास अंसारी को फाजिलनगर से विधानसभा का चुनाव लड़ने मैदान में उतार दिया है। अब यह फाजिलनगर विधानसभा सीट भी बागियों की लड़ाई पर ही आगे बढ़ रही है। क्योंकि यहां पर सपा से बगावत कर इलियास अंसारी भाजपा में आए हैं तो भाजपा से बगावत कर समाजवादी पार्टी से स्वामी प्रसाद मौर्य मैदान में है।
शबाना खातून को टिकट
बसपा ने अंबेडकरनगर की टांडा विधानसभा और जौनपुर की मड़ियाहूं विधानसभा पर भी ऐसे ही बागियों को चुनावी मैदान में उतारकर राजनीतिक गणित बिगाड़ दिया है। अंबेडकरनगर की टांडा विधानसभा सीट से बहुजन समाज पार्टी ने नगर पंचायत अध्यक्ष रहीं शबाना खातून को टिकट दिया है। शबाना सपा के झंडे से टिकट चाह रही थीं। वह जिले में लंबे समय से सपा के लिए न सिर्फ काम कर रही थीं बल्कि संगठन को भी मजबूत कर रही थीं। लेकिन जब पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो वे बसपा के खेमे में चली गईं। बसपा ने टांडा में शबाना खातून को टिकट दे दिया है। जबकि भाजपा ने यहां से वर्तमान विधायक संजू देवी का टिकट काट दिया। अब मामला जिले में विरोध का भी है। इसलिए चुनाव टांडा का भी बहुत मजेदार हो चला है।
बसपा खेमे में श्रद्धा यादव
इसी तरह जौनपुर की मड़ियाहूं विधानसभा से कभी समाजवादी पार्टी की विधायक रहीं श्रद्धा यादव ने इस बार पाला बदल दिया। दरअसल उनके पाला बदलने की वजह यह रही कि सपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया, तो वे बसपा के खेमे में आ गईं और बसपा ने उन्हें मड़ियाहूं विधानसभा से टिकट दे दिया। मड़ियाहूं विधानसभा में सपा ने भी सुषमा पटेल को टिकट दिया है। सुषमा पटेल इस बार बसपा का दामन छोड़कर सपा के साथ जुड़ी हैं। इससे पहले वह मुंगरा बादशाहपुर सीट से विधायक भी थीं। मड़ियाहूं विधानसभा में सिर्फ सपा बसपा के प्रत्याशियों की अदला-बदली नहीं हुई है, बल्कि यहां पर अपना दल और भाजपा गठबंधन से वर्तमान विधायक मीना चौधरी का टिकट काट दिया गया है। अब इस गठबंधन की ओर से आरके पटेल मैदान में हैं। लड़ाई त्रिकोणात्मक बताई जा रही है। मामला टिकट कटने के बाद पैदा हुए विरोध से भी बढ़ रहा है।
भाजपा ने टिकट काटा तो मायावती ने बनाया प्रत्याशी
देवरिया के रूद्रपुर विधानसभा सीट से कभी बसपा के विधायक रहे सुरेश तिवारी पार्टी बदलने में माहिर माने जाते हैं। तिवारी 2007 में इसी विधानसभा सीट से बसपा के विधायक थे। मायावती की सरकार थी तो जिले में तिवारी का जलवा था। 2012 में चुनाव हार गए तो तिवारी भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा से बरहज विधानसभा से चुनाव लड़े और विधायक बन गए। भाजपा ने इस बार आकलन किया है कि तिवारी जिताऊ प्रत्याशी नहीं है, इसलिए टिकट काट दिया। सुरेश तिवारी वापस अपने घर बसपा चले गए। मायावती ने उन्हें टिकट दे दिया। सिर्फ सुरेश तिवारी ही नहीं, यहां पर तो मायावती की 2007 वाली सरकार में मंत्री रहे राम भुवाल निषाद को जब बसपा ने टिकट नहीं दिया, तो उनकी आस्था बदल गई और वह समाजवादी पार्टी में आ गए। सपा ने इस बार उनको रूद्रपुर सीट से प्रत्याशी बनाया है।
सोनभद्र की दुद्धी विधानसभा से भाजपा गठबंधन के अपना दल से वर्तमान विधायक हरिराम को बसपा ने टिकट दे दिया है। हरिराम अब अपना दल भाजपा गठबंधन से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। समाजवादी पार्टी ने यहां से सात बार के विधायक विजय सिंह गोंड को टिकट दिया है। गोंड पिछली बार बसपा से दुद्धी विधानसभा सीट से चुनाव लड़े थे हालांकि बाहर गए थे।
राजनीतिक विश्लेषक जीडी शुक्ला कहते हैं कि बसपा और सपा ने जिस तरीके से कई साल तक अलग-अलग पार्टी के लिए मेहनत करने वाले नेताओं को अपने दल में शामिल कर टिकट दिया है, उससे निश्चित तौर पर उस विधानसभा का चुनावी गणित बिगड़ा है। हालांकि यह अलग बात है कि यह बिगड़ा हुआ चुनावी गणित किस राजनीतिक पार्टी को फायदा पहुंचाएगा और किसे नुकसान यह 10 मार्च को ही पता चलेगा। लेकिन एक बात बिल्कुल तय है कि ऐसे हालात में पूर्वांचल के आखिरी के दो चरणों में होने वाले विधानसभा चुनावों में लड़ाई कई जगहों पर त्रिकोणात्मक हो गई है।
विस्तार
उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनावों में आखिरी चरण के मतदान में राजनीति के तमाम उलट फेरों के बाद दिए गए ‘टिकटों’ की अब परीक्षा होनी है। इसमें बड़े-बड़े नेता तो शामिल हैं ही, वहीं बागियों का असली इम्तिहान भी अभी होना बाकी है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बसपा ने जिस तरीके से राजनीतिक दांव-पेच इस्तेमाल करते हुए बागियों को आगे किया है वह पार्टी की भविष्य की राजनीति को भी तय करेगा। उसका कितना नफा नुकसान होगा यह तो चुनाव के परिणाम बताएंगे, लेकिन बसपा ने अपने बागी दांव से चुनाव को खूब रोचक बना दिया है।
कभी समाजवादी पार्टी सरकार में कद्दावर मंत्री रही शादाब फातिमा सपा और सुभाषपा के गठबंधन के चलते राजनीति की भेंट चढ़ गई। समाजवादी पार्टी ने गाजीपुर की जहूराबाद सीट से शादाब फातिमा का टिकट काटकर ओमप्रकाश राजभर को गठबंधन के चलते यह सीट दे दी। इससे नाराज होकर समाजवादी पार्टी का गुणगान करने वाली शादाब फातिमा ने बसपा का दामन थाम लिया और मायावती ने फातिमा को टिकट दे दिया। अब सपा की बागी शादाब फातिमा सपा गठबंधन की ओर से चुनाव लड़ रहे ओमप्रकाश राजभर से दो-दो हाथ कर रही हैं। सिर्फ बसपा ने यहां पर बागी पर दांव नहीं लगाया है बल्कि कभी बहुजन समाज पार्टी से विधायक रहे कालीचरण राजभर पर भारतीय जनता पार्टी ने दांव लगाया और उन्हें यहां से अपना प्रत्याशी बनाया है। फिलहाल जहूराबाद सीट से किसका कितना नुकसान होगा और कौन जीतेगा, यह तो कल होने वाले चुनाव और उसके परिणाम बताएंगे।
स्वामी प्रसाद मौर्या ने बिगाड़ा खेल
लड़ाई सिर्फ गाजीपुर के जहूराबाद बाद सीट पर ही नहीं है, बल्कि कुशीनगर की फाजिलनगर विधानसभा पर भी बहुजन समाज पार्टी ने ऐसा ही दांव चला है। बसपा ने यहां से इलियास अंसारी को इस बार चुनावी मैदान में उतारा है। वे कुशीनगर में करीब तीस सालों से ज्यादा वक्त से समाजवादी पार्टी का झंडा लेकर चल रहे थे। अंसारी को पूरा भरोसा था कि समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव इस बार उन्हें चुनावी मैदान में यहां से उतारेंगे। लेकिन भाजपा छोड़कर आए स्वामी प्रसाद मौर्या ने सारा खेल बिगाड़ दिया। इसी वजह से इलियास अंसारी समाजवादी पार्टी से इस्तीफा देकर बसपा में शामिल हो गए और मायावती ने इस झगड़े के बीच में इलियास अंसारी को फाजिलनगर से विधानसभा का चुनाव लड़ने मैदान में उतार दिया है। अब यह फाजिलनगर विधानसभा सीट भी बागियों की लड़ाई पर ही आगे बढ़ रही है। क्योंकि यहां पर सपा से बगावत कर इलियास अंसारी भाजपा में आए हैं तो भाजपा से बगावत कर समाजवादी पार्टी से स्वामी प्रसाद मौर्य मैदान में है।
शबाना खातून को टिकट
बसपा ने अंबेडकरनगर की टांडा विधानसभा और जौनपुर की मड़ियाहूं विधानसभा पर भी ऐसे ही बागियों को चुनावी मैदान में उतारकर राजनीतिक गणित बिगाड़ दिया है। अंबेडकरनगर की टांडा विधानसभा सीट से बहुजन समाज पार्टी ने नगर पंचायत अध्यक्ष रहीं शबाना खातून को टिकट दिया है। शबाना सपा के झंडे से टिकट चाह रही थीं। वह जिले में लंबे समय से सपा के लिए न सिर्फ काम कर रही थीं बल्कि संगठन को भी मजबूत कर रही थीं। लेकिन जब पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो वे बसपा के खेमे में चली गईं। बसपा ने टांडा में शबाना खातून को टिकट दे दिया है। जबकि भाजपा ने यहां से वर्तमान विधायक संजू देवी का टिकट काट दिया। अब मामला जिले में विरोध का भी है। इसलिए चुनाव टांडा का भी बहुत मजेदार हो चला है।
बसपा खेमे में श्रद्धा यादव
इसी तरह जौनपुर की मड़ियाहूं विधानसभा से कभी समाजवादी पार्टी की विधायक रहीं श्रद्धा यादव ने इस बार पाला बदल दिया। दरअसल उनके पाला बदलने की वजह यह रही कि सपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया, तो वे बसपा के खेमे में आ गईं और बसपा ने उन्हें मड़ियाहूं विधानसभा से टिकट दे दिया। मड़ियाहूं विधानसभा में सपा ने भी सुषमा पटेल को टिकट दिया है। सुषमा पटेल इस बार बसपा का दामन छोड़कर सपा के साथ जुड़ी हैं। इससे पहले वह मुंगरा बादशाहपुर सीट से विधायक भी थीं। मड़ियाहूं विधानसभा में सिर्फ सपा बसपा के प्रत्याशियों की अदला-बदली नहीं हुई है, बल्कि यहां पर अपना दल और भाजपा गठबंधन से वर्तमान विधायक मीना चौधरी का टिकट काट दिया गया है। अब इस गठबंधन की ओर से आरके पटेल मैदान में हैं। लड़ाई त्रिकोणात्मक बताई जा रही है। मामला टिकट कटने के बाद पैदा हुए विरोध से भी बढ़ रहा है।
भाजपा ने टिकट काटा तो मायावती ने बनाया प्रत्याशी
देवरिया के रूद्रपुर विधानसभा सीट से कभी बसपा के विधायक रहे सुरेश तिवारी पार्टी बदलने में माहिर माने जाते हैं। तिवारी 2007 में इसी विधानसभा सीट से बसपा के विधायक थे। मायावती की सरकार थी तो जिले में तिवारी का जलवा था। 2012 में चुनाव हार गए तो तिवारी भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा से बरहज विधानसभा से चुनाव लड़े और विधायक बन गए। भाजपा ने इस बार आकलन किया है कि तिवारी जिताऊ प्रत्याशी नहीं है, इसलिए टिकट काट दिया। सुरेश तिवारी वापस अपने घर बसपा चले गए। मायावती ने उन्हें टिकट दे दिया। सिर्फ सुरेश तिवारी ही नहीं, यहां पर तो मायावती की 2007 वाली सरकार में मंत्री रहे राम भुवाल निषाद को जब बसपा ने टिकट नहीं दिया, तो उनकी आस्था बदल गई और वह समाजवादी पार्टी में आ गए। सपा ने इस बार उनको रूद्रपुर सीट से प्रत्याशी बनाया है।
सोनभद्र की दुद्धी विधानसभा से भाजपा गठबंधन के अपना दल से वर्तमान विधायक हरिराम को बसपा ने टिकट दे दिया है। हरिराम अब अपना दल भाजपा गठबंधन से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। समाजवादी पार्टी ने यहां से सात बार के विधायक विजय सिंह गोंड को टिकट दिया है। गोंड पिछली बार बसपा से दुद्धी विधानसभा सीट से चुनाव लड़े थे हालांकि बाहर गए थे।
राजनीतिक विश्लेषक जीडी शुक्ला कहते हैं कि बसपा और सपा ने जिस तरीके से कई साल तक अलग-अलग पार्टी के लिए मेहनत करने वाले नेताओं को अपने दल में शामिल कर टिकट दिया है, उससे निश्चित तौर पर उस विधानसभा का चुनावी गणित बिगड़ा है। हालांकि यह अलग बात है कि यह बिगड़ा हुआ चुनावी गणित किस राजनीतिक पार्टी को फायदा पहुंचाएगा और किसे नुकसान यह 10 मार्च को ही पता चलेगा। लेकिन एक बात बिल्कुल तय है कि ऐसे हालात में पूर्वांचल के आखिरी के दो चरणों में होने वाले विधानसभा चुनावों में लड़ाई कई जगहों पर त्रिकोणात्मक हो गई है।
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