अंजू शर्मा ने यूपीएससी परीक्षा में केवल 22 साल की उम्र में सफलता प्राप्त कर ली थी। उन्होंने 1991 में राजकोट से असिस्टेंट कलेक्टर के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। उनकी ये सफलता सुनकर लगेगा कि इतनी छोटी उम्र में इतनी बड़ी सफलता वाकई शानदार है। लेकिन उनकी ये जर्नी इतनी आसान नहीं थी। अंजू ने बारहवीं कक्षा में इकोनॉमिक्स के पेपर में फेल हो गई थी और दसवीं की केमिस्ट्री प्री बोर्ड में भी उन्हें असफलता का सामना करना पड़ा था।
कमाल की बात तो यह है कि इकोनॉमिक्स के पेपर में फेल होने वाली अंजू ने बाकी विषयों में डिस्टिंक्शन हासिल किया। यह सुनने में बड़ा अटपटा सा लग सकता है लेकिन यह सच है। अंजू का मानना है कि असफलता ही व्यक्ति को बड़ी सफलता के लिए तैयार करती है। वर्तमान में सरकारी शिक्षा विभाग (उच्च और तकनीकी शिक्षा), सचिवालय, गांधीनगर में प्रधान सचिव अंजू मानती हैं कि उनके जीवन की इन दो घटनाओं ने उनके भविष्य को आकार दिया।
अंजू ने एक बार एक प्रमुख दैनिक से कहा था कि उनके प्री-बोर्ड के दौरान उन्हें कवर करने के लिए बहुत सारे चैप्टर बचे थे और यह लगभग रात के खाने के बाद वह घबराने लगी थी क्योंकि वो परीक्षा के लिए तैयार नहीं थी और उन्हें पता था कि वो जरूर फेल होने वाली हैं। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि उनके आस-पास के सभी लोगों ने इस बात पर जोर दिया कि 10वीं कक्षा का प्रदर्शन कितना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमारे उच्च अध्ययन को निर्धारित करता है।
मुश्किल समय में माता पिता कभी अपने बच्चों का साथ नहीं छोड़ते और अंजू के साथ भी उनकी मां डट कर खड़ी रहीं। इस कठिन समय के दौरान, उसकी मां ने उन्हें सांत्वना दी और प्रेरित भी किया। अंजू ने अपनी असफलता से यह सबक भी सीखा कि किसी को अंतिम समय की पढ़ाई पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। फेल होने के बाद उन्होंने शुरू से ही कॉलेज परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी और इससे उन्हें अपने कॉलेज में गोल्ड मेडलिस्ट विनर बनने में मदद मिली। उन्होंने जयपुर से बीएससी और एमबीए पूरा किया। इसी रणनीति ने उन्हें पहले प्रयास में यूपीएससी परीक्षा को पास करने में भी मदद की। अंजू ने अपना सिलेबस पहले से ही पूरा कर लिया और पहले ही प्रयास में आईएएस टॉपर्स की सूची में शामिल हो गई।
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