उत्तर प्रदेश चुनाव छठा चरण: केवल जातिवाद ही नहीं, बल्कि दूसरे मुद्दे भी कर रहे हैं पूर्वांचल में मतदाताओं को प्रभावित


सार

सेंटर फॉर द स्ट़डी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS) के संजय कुमार ने अमर उजाला से कहा कि जातिवाद भारतीय राजनीति की कटु सच्चाई है। जातियां उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति में बड़ा प्रभाव डालती रही हैं, इस चुनाव में समाजवादी पार्टी का गठबंधन इसी आधार पर जीत हासिल करने की योजना बना रहा है। वहीं, भाजपा इस रणनीति को भेदने के लिए बड़े नैरेटिव सेट करने की कोशिश कर रही है…

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यूपी चुनाव के छठे-सातवें चरण में पूर्वांचल में मतदान होना है। यहां के मतदाताओं की पसंद-नापसंद की व्याख्या करते समय जातिवाद के मुद्दे पर खूब चर्चा हो रही है। किस क्षेत्र में किन जातियों के कितने फीसदी मतदाता हैं, उनका रुझान किस ओर है और किन जातियों का गठजोड़ किसी राजनीतिक दल को जीत दिलाने में सक्षम होगा, इस पर लगातार बहस हो रही है। बताया जा रहा है कि इस क्षेत्र में भाजपा के ‘राष्ट्रवाद और हिंदुत्व’ का समाजवादी पार्टी के ‘विभिन्न जातीय गठजोड़ वाली राजनीति’ के बीच ही मुख्य मुकाबला है। लेकिन क्या केवल जातीय राजनीति ही पूर्वांचल की राजनीति को निर्धारित करती है? क्या दूसरे मुद्दे यहां के मतदाताओं को प्रभावित नहीं करते?

सेंटर फॉर द स्ट़डी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS) के संजय कुमार ने अमर उजाला से कहा कि जातिवाद भारतीय राजनीति की कटु सच्चाई है। जातियां उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति में बड़ा प्रभाव डालती रही हैं, इस चुनाव में समाजवादी पार्टी का गठबंधन इसी आधार पर जीत हासिल करने की योजना बना रहा है। वहीं, भाजपा इस रणनीति को भेदने के लिए बड़े नैरेटिव सेट करने की कोशिश कर रही है। लेकिन यह कहना बिल्कुल सही नहीं है कि जातिवाद ही यहां के मतदाताओं की पसंद-नापसंद का एकमात्र आधार है। उन्होंने कहा कि भाजपा ने कल्याणकारी योजनाओं के सहारे समाज में एक नए आधार वर्ग को तैयार किया है। यह वर्ग बहुत खुलकर अपनी बात भले ही न कहे, लेकिन मतदान करने के समय वह इन बातों को अवश्य ध्यान में रखता है। इसके साथ अन्य फैक्टर भी अपनी भूमिका निभाते हैं।

संजय कुमार के मुताबिक, इस वर्ग के कुछ मतदाता अपना जातीय आधार पीछे छोड़कर लाभकारी योजना देने वाली सरकारों के पक्ष में वोट करते हैं। इस विधानसभा चुनाव में इस तरह के मतदाता भाजपा के सबसे बड़े वोटर साबित हो सकते हैं। लेकिन यह मतदाता वर्ग कितना बड़ा होगा और वह चुनाव परिणामों को कितना प्रभावित कर पाएगा, यह अभी कहना मुश्किल है।

युवा तय कर रहे नई राजनीति के मुद्दे

यूपी-बिहार की राजनीति पर विशेष नजर रखने वाले चुनाव विश्लेषक सुनील पांडेय ने कहा कि यदि सदैव विकास को अपनी प्राथमिकता बताने वाले प्रधानमंत्री मोदी स्वयं को ओबीसी समुदाय का नेता बताने पर मजबूर हो जाते हैं तो इससे समझा जा सकता है कि पूर्वांचल की राजनीति में जातीय राजनीति का कितना महत्त्व है। सभी राजनीतिक दल जातीय समीकरणों को ध्यान में रखकर ही उम्मीदवारों के नाम तय करते हैं। यह भी साबित करता है कि वे जानते हें कि पूर्वांचल की राजनीति में जाति का कितना महत्त्व है।

वर्ष 2014, 2017 या 2019 के चुनावों में भाजपा को मिली सफलता के पीछे एक बड़ा कारण यह भी था कि उसके नेता अमित शाह ने विभिन्न जातीय राजनीति करने वाले दलों से गठबंधन कर अपना सामाजिक दायरा इतना बढ़ा लिया था कि उसे पार कर पाना विपक्ष के लिए सफल नहीं हो पाया। इसलिए जातीय राजनीति को कम करके नहीं आंका जा सकता।  

हालांकि, यह भी सत्य है कि हर जाति-वर्ग में ऐसे मतदाता बन रहे हैं जो जातीय पहचान को तोड़कर विकास, सुविधाओं और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों से प्रेरित होकर वोट कर रहे हैं। ऐसे मतदाता शहरी क्षेत्रों में ज्यादा तो ग्रामीण इलाकों में कुछ कम होते हैं। सुनील पांडेय के मुताबिक भाजपा को 2019 में ऐसे मतदाताओं का ही साथ मिला था, जिसके बल पर वह 300 के आंकड़े को भी पार कर गई थी। इस चुनाव में भी उसे ऐसे मतदाताओं का लाभ मिलना तय है।    

पीएम ने तैयार किया नया आधार वर्ग

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम शुक्ला ने अमर उजाला से कहा कि अब तक का इतिहास बताता है कि जातीय आधार पर राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों के नेताओं ने अपने मतदाताओं को केवल छलने का काम किया है। वे जाति के नाम पर लोगों से वोट तो ले लेते हैं, लेकिन सत्ता में आने के बाद केवल अपना और अपने परिवार के हित साधने का काम करते हैं, जबकि प्रधानमंत्री मोदी ने एक नए सामाजिक आधार पर काम करने को अपनी प्राथमिकता बनाई है। केंद्र सरकार की सभी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ हर जाति, हर वर्ग और हर धर्म-संप्रदाय के गरीब लोगों को मिला है। यही भाजपा की प्राथमिकता है।   

प्रेम शुक्ला ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी की इसी दृष्टि का परिणाम हुआ है कि जनता ने जातीय गठजोड़ पर आधारित राजनीति करने वाले दलों को नकारा है, जबकि भाजपा को बढ़चढ़कर स्वीकार किया है। इस सोच का परिणाम चुनाव परिणामों में भी झलकता है। 2014, 2019 के आम चुनावों और 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली शानदार सफलता इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। उन्होंने कहा कि इससे साबित होता है कि जनता ने अपनी पसंद बदली है, लेकिन कुछ राजनीतिक दल अभी भी जनता की इस बदलती पसंद को समझने और स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं।

विस्तार

यूपी चुनाव के छठे-सातवें चरण में पूर्वांचल में मतदान होना है। यहां के मतदाताओं की पसंद-नापसंद की व्याख्या करते समय जातिवाद के मुद्दे पर खूब चर्चा हो रही है। किस क्षेत्र में किन जातियों के कितने फीसदी मतदाता हैं, उनका रुझान किस ओर है और किन जातियों का गठजोड़ किसी राजनीतिक दल को जीत दिलाने में सक्षम होगा, इस पर लगातार बहस हो रही है। बताया जा रहा है कि इस क्षेत्र में भाजपा के ‘राष्ट्रवाद और हिंदुत्व’ का समाजवादी पार्टी के ‘विभिन्न जातीय गठजोड़ वाली राजनीति’ के बीच ही मुख्य मुकाबला है। लेकिन क्या केवल जातीय राजनीति ही पूर्वांचल की राजनीति को निर्धारित करती है? क्या दूसरे मुद्दे यहां के मतदाताओं को प्रभावित नहीं करते?

सेंटर फॉर द स्ट़डी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS) के संजय कुमार ने अमर उजाला से कहा कि जातिवाद भारतीय राजनीति की कटु सच्चाई है। जातियां उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति में बड़ा प्रभाव डालती रही हैं, इस चुनाव में समाजवादी पार्टी का गठबंधन इसी आधार पर जीत हासिल करने की योजना बना रहा है। वहीं, भाजपा इस रणनीति को भेदने के लिए बड़े नैरेटिव सेट करने की कोशिश कर रही है। लेकिन यह कहना बिल्कुल सही नहीं है कि जातिवाद ही यहां के मतदाताओं की पसंद-नापसंद का एकमात्र आधार है। उन्होंने कहा कि भाजपा ने कल्याणकारी योजनाओं के सहारे समाज में एक नए आधार वर्ग को तैयार किया है। यह वर्ग बहुत खुलकर अपनी बात भले ही न कहे, लेकिन मतदान करने के समय वह इन बातों को अवश्य ध्यान में रखता है। इसके साथ अन्य फैक्टर भी अपनी भूमिका निभाते हैं।

संजय कुमार के मुताबिक, इस वर्ग के कुछ मतदाता अपना जातीय आधार पीछे छोड़कर लाभकारी योजना देने वाली सरकारों के पक्ष में वोट करते हैं। इस विधानसभा चुनाव में इस तरह के मतदाता भाजपा के सबसे बड़े वोटर साबित हो सकते हैं। लेकिन यह मतदाता वर्ग कितना बड़ा होगा और वह चुनाव परिणामों को कितना प्रभावित कर पाएगा, यह अभी कहना मुश्किल है।

युवा तय कर रहे नई राजनीति के मुद्दे

यूपी-बिहार की राजनीति पर विशेष नजर रखने वाले चुनाव विश्लेषक सुनील पांडेय ने कहा कि यदि सदैव विकास को अपनी प्राथमिकता बताने वाले प्रधानमंत्री मोदी स्वयं को ओबीसी समुदाय का नेता बताने पर मजबूर हो जाते हैं तो इससे समझा जा सकता है कि पूर्वांचल की राजनीति में जातीय राजनीति का कितना महत्त्व है। सभी राजनीतिक दल जातीय समीकरणों को ध्यान में रखकर ही उम्मीदवारों के नाम तय करते हैं। यह भी साबित करता है कि वे जानते हें कि पूर्वांचल की राजनीति में जाति का कितना महत्त्व है।

वर्ष 2014, 2017 या 2019 के चुनावों में भाजपा को मिली सफलता के पीछे एक बड़ा कारण यह भी था कि उसके नेता अमित शाह ने विभिन्न जातीय राजनीति करने वाले दलों से गठबंधन कर अपना सामाजिक दायरा इतना बढ़ा लिया था कि उसे पार कर पाना विपक्ष के लिए सफल नहीं हो पाया। इसलिए जातीय राजनीति को कम करके नहीं आंका जा सकता।  

हालांकि, यह भी सत्य है कि हर जाति-वर्ग में ऐसे मतदाता बन रहे हैं जो जातीय पहचान को तोड़कर विकास, सुविधाओं और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों से प्रेरित होकर वोट कर रहे हैं। ऐसे मतदाता शहरी क्षेत्रों में ज्यादा तो ग्रामीण इलाकों में कुछ कम होते हैं। सुनील पांडेय के मुताबिक भाजपा को 2019 में ऐसे मतदाताओं का ही साथ मिला था, जिसके बल पर वह 300 के आंकड़े को भी पार कर गई थी। इस चुनाव में भी उसे ऐसे मतदाताओं का लाभ मिलना तय है।    

पीएम ने तैयार किया नया आधार वर्ग

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम शुक्ला ने अमर उजाला से कहा कि अब तक का इतिहास बताता है कि जातीय आधार पर राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों के नेताओं ने अपने मतदाताओं को केवल छलने का काम किया है। वे जाति के नाम पर लोगों से वोट तो ले लेते हैं, लेकिन सत्ता में आने के बाद केवल अपना और अपने परिवार के हित साधने का काम करते हैं, जबकि प्रधानमंत्री मोदी ने एक नए सामाजिक आधार पर काम करने को अपनी प्राथमिकता बनाई है। केंद्र सरकार की सभी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ हर जाति, हर वर्ग और हर धर्म-संप्रदाय के गरीब लोगों को मिला है। यही भाजपा की प्राथमिकता है।   

प्रेम शुक्ला ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी की इसी दृष्टि का परिणाम हुआ है कि जनता ने जातीय गठजोड़ पर आधारित राजनीति करने वाले दलों को नकारा है, जबकि भाजपा को बढ़चढ़कर स्वीकार किया है। इस सोच का परिणाम चुनाव परिणामों में भी झलकता है। 2014, 2019 के आम चुनावों और 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली शानदार सफलता इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। उन्होंने कहा कि इससे साबित होता है कि जनता ने अपनी पसंद बदली है, लेकिन कुछ राजनीतिक दल अभी भी जनता की इस बदलती पसंद को समझने और स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं।



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