LIC IPO में हो रही ग्रीन शू विकल्प की चर्चा, क्या है यह और जानिए इसके फायदे


नई दिल्ली. देश के सबसे बड़े पब्लिक इश्यू एलआईसी के आईपीओ (LIC IPO) में ग्रीन शू विकल्प के जरिये भी पूंजी जुटाने की चर्चा हो रही है. इस विकल्प के जरिये 9,000 करोड़ रुपये जुटाने की बात कई मीडिया रिपोर्ट्स में सामने आई है.

शेयर बाजार में भारी उतार-चढ़ाव को देखते हुए इस विकल्प को अपनाने की बात कही जा रही है. अगर ऐसा होता है तो यह पहली सरकारी कंपनी होगी जिसके पब्लिक इश्यू में ग्रीन शू विकल्प का इस्तेमाल किया जाएगा. आखिर ग्रीन शू विकल्प है क्या और क्या हैं इसके फायदे, आइए हम आपको बताते हैं.

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क्या है ग्रीन शू विकल्प

आईपीओ (IPO) में ग्रीन शू विकल्प मुख्य रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए दिया जाता है कि कंपनी के शेयर अच्छी कीमत पर सूचीबद्ध हों और वे आईपीओ मूल्य से नीचे न गिरें. कोई भी कंपनी जो आईपीओ लाना चाहती है, वह इसके लिए निवेश बैंकरों की मदद लेती है. इन बैंकरों को अंडरराइटर कहा जाता है. ये अंडरराइटर्स कंपनी के शेयरों के लिए बड़े खरीदार जैसे क्यूआईबी, एंकर इन्वेस्टर्स आदि ढूंढते हैं. आईपोओ को सफल बनाने की जिम्मेदारी इन्हीं निवेश बैंकरों पर होती है.

ग्रीन शू विकल्प इन अंडरराइटर्स को शेयर की कीमत को स्थिर रखने के लिए 30 दिन की अवधि के भीतर बाजार में हस्तक्षेप करने की अनुमति देता है. इस विकल्प के तहत उन्हें 15 फीसदी तक शेयर खरीदने की अनुमति होती है. यदि लिस्टिंग के बाद शेयरों की कीमत आईपीओ मूल्य से नीचे जाती है तो अंडरराइटर्स बाजार से शेयर खरीदना शुरू कर देते हैं और मांग को बढ़ाते हैं. इससे कीमतों में गिरावट रोकने में मदद मिलती है.

क्या हैं इसके फायदे

आम निवेशक के नजरिये से देखें तो जिस आईपीओ में ग्रीन शू विकल्प होता है, वह निवेशकों के शेयरों को खरीदे जाने की संभावना बढ़ा देता है. यह शेयर बाजार को यह भी संकेत देता है कि गिरावट के बावजूद शेयर की कीमत एक महीने में स्थिर हो जाएगी.

कैसे करता है यह काम

अंडरराइटर्स की ओर से ग्रीनशू विकल्प का इस्तेमाल दो तरह से किया जाता है. पहला, यदि कंपनी की लिस्टिंग इश्यू प्राइस से ज्यादा कीमत पर होती है तो अंडरराइटर्स कंपनी से इश्यू प्राइस पर शेयर खरीदते हैं. उन शेयरों को वे अपने ग्राहकों को मुनाफे पर जारी करते हैं. दूसरा, यदि लिस्टिंग इश्यू प्राइस से नीचे होती है तो अंडरराइटर्स बाजार से शेयर खरीदते हैं न कि कंपनी से. इससे बाजार में शेयरों की मांग बढ़ती है और शेयर की कीमत को समर्थन मिलता है.

15 फीसदी ज्यादा शेयर होता है जारी

उदाहरण के तौर पर कोई कंपनी अपने 1 लाख शेयरों को सूचीबद्ध करने की योजना बना रही है और आईपीओ में ग्रीन शू विकल्प को शामिल करना चाहती है तो उसे 15 फीसदी और शेयर जारी करने होंगे. यानी उसे 1.15 लाख शेयर जारी करने होंगे. इनमें से 15,000 शेयर अंडरराइटर्स को दिए जाएंगे. अंडरराइटर्स को देने के लिए नया शेयर जारी नहीं किया जाता है बल्कि ये 15 फीसदी शेयर प्रमोटर्स से उधार लिया जाता है. इस संबंध में अंडरराइटर्स और प्रमोटर्स में एक समझौता होता है.

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मार्केट रगुलेटर सेबी द्वारा भारत में पहली बार ग्रीन शू विकल्प 2003 में पेश किया गया था. बीएसई और एनएसई में लिस्टेड कंपनियों के शेयर की कीमतों को स्थिर करने के लिए इसे पेश किया गया था.

Tags: LIC IPO, Life Insurance Corporation of India (LIC), SEBI, Stock market

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