सीने में 15 गोलियां, आंखों में तिरंगे की चमक, कहानी सूबेदार योगेंद्र यादव की जिनपर बन रही है फिल्‍म


सिनेमा के पर्दे पर जल्‍द ही कारगिल युद्ध के हीरो सूबेदार योगेंद्र यादव की कहानी दिखेगी। वो योगेंद्र यादव, जो महज 16 साल की उम्र में भारतीय सेना में भर्ती हुए। 19 साल की उम्र में साहस और पराक्रम के सर्वोच्‍च सम्‍मान परमवीर चक्र से सम्‍मानित किया गया। इस सम्‍मान को पाने वाले वह सबसे कम उम्र के सेनानी हैं। बॉलीवुड एक्‍ट्रेस से प्रोड्यूसर बनीं चित्रांगदा सिंह ने सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव की जिंदगी पर फिल्‍म बनाने के अध‍िकार पा लिए हैं और वह जल्‍द ही महापराक्रमी सैनिक पर फिल्‍म बनाएंगी। चित्रांगदा सिंह ने ‘सूरमा’ फिल्‍म ने बतौर प्रोड्यूसर डेब्‍यू किया था। हालांकि, उन्‍होंने अभी तक इस फिल्‍म का टाइटल नहीं सोचा है, लेकिन वह इसे लेकर खूब एक्‍साइटेड हैं।

Chitrangda Singh ने अपने बयान में कहा, ‘मैं असल जिंदगी के हीरोज की कहानी को लेकर खुद भी बहुत एक्‍साइटेड रहती हूं। हम इन हीरोज में से कइयों को भूल जाते हैं, जबकि वो आज भी हमारे बीच हैं। Subedar Yogender Singh Yadav ऐसे ही एक वीर सैनिक रहे हैं, जिन्‍होंने अपनी जान की परवाह किए बगैर देश की मान को सर्वोपरि रखा।’

टाइगर हिल के हीरो हैं सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव
चित्रांगदा सिंह के इस ऐलान के साथ ही हर किसी की दिलचस्‍पी पराक्रमी योगेंद्र सिंह यादव को लेकर बढ़ गई है। यह दिलचस्‍प है कि भारतीय सेना में परमवीर चक्र विजेता सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव इसी साल 1 जनवरी को रिटायर हुए हैं। इससे पहले 75वें स्‍वतंत्रता दिवस के मौके पर तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्‍हें मानद कैप्‍टन से सम्‍मानित किया था। योगेंद्र सिंह यादव को कारगिल युद्ध में टाइगर हिल का हीरो माना जाता है।

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रिटायरमेंट पर फेयरवेल के दौरान सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव

बुलंदशहर में पैदा हुआ देश का परामक्रमी लाल
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में पैदा हुए योगेंद्र सिंह यादव की बहादुरी का किस्‍सा ऐसा है, जिसे सुनकर हिंदुस्‍तान तो क्‍या दुश्‍मन देश के भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे। सूबेदार योगेन्द्र सिंह यादव को साल 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान टाइगर हिल कब्‍जा जमाने के लिए दुश्मन के तीन बंकरों को तबाह करने का जिम्‍मा सौंपा गया था। सीने में 15 गोलियां लगने के बाद भी उन्‍होंने न सिर्फ अपनी जिम्‍मेदारी निभाई, बल्‍क‍ि दुश्‍मनों के दांत खट्टे करते हुए टाइगर हिल पर तिरंगा लहराया।

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जब 16 की उम्र में गांव आई थी सेना भर्ती की चिट्ठी
बुलंदशहर के सिकंदराबाद स्‍थ‍ित अहीर गांव में 10 मई 1980 को योगेंद्र सिंह यादव का जन्‍म हुआ था। उनके पिता करण सिंह यादव भी सेना में थे। उन्‍होंने 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में हिस्‍सा लिया था। वो कुमाऊं रेजीमेंट में थे। पिता के नक्‍शे कदम पर आगे बढ़ते हुए महज 16 साल की उम्र में योगेंद्र सिंह यादव सेना में भर्ती हो गए। गांव वाले बताते हैं कि जब 1996 में सेना में भर्ती की चिट्ठी गांव पहुंची थी तो योगेंद्र की खुशी का ठ‍िकाना नहीं था।

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कारगिल युद्ध के दौरान ली गई तस्‍वीर (फाइल फोटो)

शादी के 15 दिन बाद युद्ध लड़ने पहुंच गए कारगिल
यह भी दिलचस्‍प है कि साल 1999 में ही योगेंद्र सिंह यादव शादी के बंधन में भी बंधे थे। अभी शादी को 15 दिन ही हुए थे कि सेना मुख्यालय से कारगिल में रिपोर्ट करने का आदेश मिला। कई लोगों ने योगेंद्र को समझाने की कोश‍िश की, लेकिन उनके लिए कर्म पहले था। लिहाजा, सामान पैक कर वर्दी का कर्ज निभाने चल पड़े। जब वह जम्मू कश्मीर पहुंचे तो पता चला कि उनकी बटालियन 18 ग्रिनेडियर द्रास सेक्टर की सबसे ऊंची पहाड़ी तोलोलिंग पर लड़ाई लड़ रही है।

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दुश्‍मनों को दिया झांसा, फिर बरसा दी गोलियां
योगेंद्र कुछ ही घंटों में पहाड़ी पर अपनी बटालियन के पास पहुंच तो गए, लेकिन पाकिस्‍तानी दुश्‍मनों की गोलियों और बमबारी से उनकी बटालियन के कई साथी शहीद हो चुके थे। ऐसे में पहाड़ी पर पहुंचते ही योगेंद्र सिंह यादव ने गोलियां दागनी शुरू कर दीं। उन्‍होंने कई बंकरों को तबाह कर दिया। पाकिस्‍तानी ग्रेनेड बम से हमला कर रहे थे। ऐसे में एक वक्‍त ऐसा आया, जब योगेंद्र की टुकड़ी में बहुत कम सैनिक बचे थे। योजना बनी कि फिलहाल फायरिंग को रोकते हैं और सही समय का इंतजार करते हैं। यह दुश्‍मनों को झांसा देने की तरकीब थी।

खून से लथपथ का शरीर, टूट गई थी पैर की हड्डी
भारतीय खेमे से गोलीमारी बंद देख पाकिस्‍तानियों को लगा कि योगेंद्र की पूरी बटालियन खत्‍म हो गई है। लिहाजा, वह थोड़े सुस्‍त पड़ गए। लेकिन आंखों में तिरंगा लहराने का सपना लिए योगेंद्र सिंह यादव और उनके साथ‍ियों के लिए यही सही वक्‍त था। पाकिस्‍तानी सुस्‍ती के साथ भारतीय खेमे की तरफ बढ़ रहे थे, तभी योगेंद्र सिंह यादव और उनके साथ‍ियों ने दुश्‍मनों पर हमला बोल दिया। कई पाकिस्‍तानी ढेर हो गए। एक दुश्‍मन सैनिक ने पीछे यह खबर दे दी कि वहां भारतीय टुकड़ी अभी भी मौजूद है। ऐसे में कई और पाकिस्‍तानी सैनिक भारतीय सैनिकों की तरह बढ़ने लगे। इस लड़ाई में योगेंद्र सिंह यादव भी बुरी तरह घायल हो चुके थे। उनका शरीर खून से लथपथ था और एक पैर टूट चुका था।

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टाइगर हिल पर तिरंगा लहराने का ऐतिहासिक पल

लगी थीं 15 गोलियां, फिर भी दुश्‍मनों की दी जानकारी
बताया जाता है कि जब दुश्‍मन सेना योगेंद्र सिंह यादव के पास पहुंची तो उन्‍होंने मरने का नाटक किया। लेकिन जैसे ही पाकिस्‍तानी लड़ाके सुस्‍त हुए, योगेंद्र सिंह यादव ने उनपर हमला कर दिया। तब उनके हाथ में जो भी आया, वह उससे हमला करने लगे। लेकिन इस दौरान योगेंद्र सिंह यादव के सीने को भी 15 गोलियां छेद चुकी थीं। इस दौरान एक वक्‍त ऐसा भी आया था, जब भारतीय सैनिक भी यह समझने लगे थे कि योगेंद्र शहीद हो चुके हैं। थोड़ी देर बाद जब पाकिस्‍तानी गोलाबारी की आवाज कम हुई तो योगेंद्र सिंह यादव पहाड़ी से नीचे खि‍सककर अपनी भारतीय सैन्‍य टुकड़ी के पास आ गए। उनकी हालत गंभीर थी। शरीर से खून लगातार बह रहा था। लेकिन इस हालत में भी अस्‍पताल जाने के दौरान उन्‍होंने ऊपर मौजूद पाकिस्‍तानी सेना की संख्‍या, उनकी लोकेशन की पूरी जानकारी भारतीय टुकड़ी को दे दी।

टाइगर हिल पर कब्‍जा और अस्‍पताल
यह योगेंद्र सिंह के पराक्रम का ही नतीजा रहा है कि उनकी बताई जानकारी पाकर भारतीय टुकड़ी ने पाकिस्‍तानियों पर दोगुने जोश के साथ हमला किया। इस बार पाकिस्‍तानी सैनिकों के चिथड़े उड़ गए। टाइगर हिल पर हिंदुस्‍तान की जीत हुई। ति‍रंगा एक बार फिर लहराने लगा। कारगिल युद्ध में घायल हुए योगेंद्र सिंह यादव को स्‍वस्‍थ होने में कई महीने लग गए। पूरी तरह से स्‍वस्‍थ होने के बाद योगेंद्र सिंह यादव ने एक बार फिर 18 ग्रेनेडियर्स में देश की सेवा की।

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