9 Hours Review: क्या मनी हाइस्ट का देशी जवाब है ‘9 आवर्स’


भारत में बैंक लूटने के कई कारनामों को अंजाम दिया जा चुका है. छोटे शहरों और गांवों में बैंक की सुरक्षा प्रणाली इतनी सुदृढ़ नहीं रहती कि अच्छी प्लानिंग से की गयी डकैती को अंजाम न दिया जा सके. हालांकि बैंक रॉबरी पर अधिकांश दर्शकों ने स्पेनिश वेब सीरीज ‘मनी हाइस्ट’ देख ली है और इसलिए उसकी टक्कर की वेब सीरीज बना पाना अब संभव नजर नहीं आता है. इसके बावजूद डिज्नी+ हॉटस्टार पर एक नयी वेब सीरीज ‘9 आवर्स’ रिलीज की गयी है जो मूलतः तेलुगु भाषा में बनायीं गयी है मगर हिंदी डब के साथ भी उपलब्ध है. इस वेब सीरीज में 1985 में हुई एक ही बैंक की तीन अलग अलग शाखाओं पर एक साथ और एक समय डाली गयी बैंक डकैतियों की कहानी है जो कि कुछ हिस्सों में बहुत रोचक है और कुछ हिस्सों में मूल कथा से भटक जाती है. कहने को इसकी तुलना मनी हाइस्ट से की जा सकती है लेकिन ये वेब सीरीज पूरी तरह से परिपक्व नहीं है और इसमें तेलुगु सिनेमा के कई ऐसे तत्व रखे गए हैं जो अब दर्शकों को निराश करते हैं. वेब सीरीज का बैकग्राउंड संगीत सशक्त है. वेब सीरीज देखने लायक तो बनी है बस दर्शक 9 आवर्स को मनी हाइस्ट न समझें.

तेलुगु लेखक मल्लाड़ी वेंकट कृष्णमूर्ति, थ्रिलर साहित्य की दुनिया में एक जानामाना नाम हैं. उनकी लघु कथाएं और उपन्यासों पर फिल्में बन चुकी हैं या फिर कुछ फिल्मों की कथा का मूल आधार रही हैं. उन्ही का एक उपन्यास है “तोमिडी गंतालु” जिसका अर्थ होता है 9 घंटे, उसी पर बनायीं गयी है ये वेब सीरीज 9 आवर्स. इस उपन्यास को पटकथा की शक्ल दी है राधा कृष्ण जगलारमुड़ी (क्रिश) ने जिन्होंने कंगना राणावत अभिनीत फिल्म “मणिकर्णिका” का निर्देशन किया था. क्रिश की लेखनी की खास बात है कि वे चरित्र गढ़ने में माहिर हैं. इस वेब सीरीज में एक एक किरदार अपने आप में महत्वपूर्ण है और भले ही भूमिका छोटी हो लेकिन क्लाइमेक्स तक आते आते वेब सीरीज में उनका होना अत्यंत महत्वपूर्ण नज़र आता है. इतनी बड़ी वेब सीरीज लिखने में क्रिश दो जगह चूक गए हैं – एक है लगभग हर किरदार की बैकस्टोरी में ज़रुरत से ज़्यादा समय लगाना और दूसरा है 1985 में बसी इस कहानी में पुराने तेलुगु सिनेमा की तर्ज़ पर फालतू की डायलॉगबाज़ी और छोटी छोटी घटनाओं से कहानी को भटकाना. इस वेब सीरीज में यदि अच्छे अभिनेता नहीं होते और धर्मेंद्र ककराला जैसे अनुभवी और रचनात्मक एडिटर न होते तो इस वेब सीरीज को देखना मुश्किल हो जाता.

कहानी बड़ी ही सरल सी है. रेस कोर्स पर रेस खेलने का शौक़ रखने वाले एक जेलर पर एक बड़े गुंडे का लाखों का उधार हो जाता है. उसको उतारने के लिए वो जेल के एक ऐसे कैदी की मदद लेता है जो बैंक डकैती करने में उस्ताद हैं. जेल के ही तीन कैदियों को कचरे के डब्बों में छिपा कर जेल से बाहर भेजा जाता है. प्रत्येक कैदी को एक अलग बैंक लूटना होती है ताकि एक साथ तीन बैंक लूटी जा सके. दो बैंक बड़े आराम से लूट ली जाती है लेकिन तीसरी बैंक में मामला गड़बड़ा जाता है और डकैत बैंक के कर्मचारियों और ग्राहकों को बंधक बना लेते हैं. असल कहानी इसके बाद शुरू होती है जिसमें डकैतों द्वारा खुद को बचाने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाये जाते हैं और पुलिस द्वारा इस केस को सुलझा कर डकैतों को पकड़ने के लिए अलग अलग तरह की कोशिशें की जाती हैं. अंत में कौन जीतता है वो देखने के लिए 9 एपिसोड पूरे देखने पड़ेंगे. नाम से आप समझ गए होंगे कि 9 आवर्स यानि 9 एपिसोड, बस अच्छी बात ये है कि एपिसोड एक एक घंटे के नहीं हैं.

कास्टिंग बहुत बढ़िया की गयी है. खड़ूस पुलिस अफसर के रूप में जूनियर एनटीआर के कजिन तारक रत्न ने अपने बेहतरीन अभिनय से इस लड़खड़ाती पटकथा को पूरी तरह संभाले रखा है. उनकी पूर्व पत्नी और एक तेज़ तर्रार प्रेस रिपोर्टर की भूमिका में मधु शालिनी, तारक के ऊबड़ खाबड़ और गुस्सैल किरदार की गर्मी कम करती नज़र आती है. बैंक की सबसे नयी कर्मचारी के रूप में प्रीती असरानी ने अपने भोले चेहरे का भरपूर इस्तेमाल किया है. उनकी और अंकित कोया की केमिस्ट्री वेब सीरीज में अच्छी लगती है. तेलुगु फिल्मों के कुछ जाने पहचाने चेहरे भी इस वेब सीरीज में महत्वपूर्ण किरदार निभा रहे हैं. सुगुना के बेहतरीन किरदार में मोनिका रेड्डी, के अलावा विनोद कुमार, ज्वाला कोटि और रवि वर्मा जैसे अभिनेताओं को हम देख चुके हैं. वेब सीरीज का सबसे महत्वपूर्ण और सबसे बेहतरीन किरदार अजय को मिला है जो पूरी बैंक रॉबरी का मास्टरमाइंड है. कमाल अभिनय का अवसर उन्हें मिले है और उन्होंने उसे बेहतरीन तरीके से भुनाया है. अजय को पुष्पा, आरआरआर, और आचार्य जैसी फिल्मों में हाल ही में देखा गया है.

9 आवर्स में हर प्रमुख किरदार को एक एक बैक स्टोरी दी गयी है. कुछ किरदार सिर्फ एक या दो एपिसोड में ही नज़र आये हैं लेकिन कहानी में उनकी छोटी भूमिका भी आवश्यक रही है. इस फॉर्मूले की वजह से कुछ फालतू किरदारों को भी महत्त्व मिल गया जिस से बैंक रॉबरी की कहानी कमज़ोर हो गयी. डाकू भी अपने मूल उद्देश्य से भटक रहे थे जिस वजह से हिंसा का होना ही सही नहीं लग रहा है. सीरीज में एक किरदार है गिरिजा का जिसके पति की हाल ही में मृत्यु हुई है लेकिन बैंक में काम करने वाला उसके पति का दोस्त उस पर ऑफिस में डोरे डालता रहता है और एक बार उसके साथ बलात्कार की कोशिश भी करता है लेकिन इस बात का आगे सही इस्तेमाल नहीं किया गया है. खिड़की की ग्रिल्स काट कर अंदर आने की पुलिस की कोशिश को डकैत सिर्फ एक गोली मार कर ख़त्म कर देता है क्योंकि ग्रिल काटने वाले की अंगुली गोली का निशाना बन जाती है. इस दृश्य को भी अधूरा ही छोड़ दिया गया है. बैंक के पास के सभी एसटीडी पीसीओ से अलग अलग लोग बैंक के अंदर फंसे गुंडों को या फिर इस स्कीम के रचने वाले को फ़ोन करते रहते हैं. बैंक में डकैती पड़ी है और पुलिस ने सारा इलाका घेर रखा है, रिपोर्टर्स और जनता भी जमा है लेकिन फ़ोन करने वाले बड़ी आसानी से फ़ोन करते हैं और फ़ोन की दुकान वाले को कुछ समझ भी नहीं आता. पटकथा में ये गलतियां माफ नहीं की जा सकती. इन सबके बावजूद, वेब सीरीज बांध के रखती है. हर एपिसोड में अभिनेता और किरदार आपको स्क्रीन की तरफ खींच ही लाते हैं. एपिसोड एक घंटे के नहीं हैं लेकिन जितने समय चलते हैं, आप कुछ और नहीं कर सकते. 5वे एपिसोड से 7वे तक थोड़ा झोल खा जाती है कहानी मगर फिर अंत की तरफ रफ़्तार वापस लौट आती है और सारे ट्रैक्स एक एक कर के सुलझने लगते हैं.

‘9 आवर्स’ वेब सीरीज बांधकर रखने वाली वेब सीरीज है. पटकथा की गलतियों को नजरअंदाज करके दर्शक अगर स्वयं ही शरलॉक होम्स न बने तो ये वेब सीरीज आपको मजा दिला सकती है. वीकेंड पर बिंज वॉच के लिए एकदम सही है. हमारे यहां बैंक डकैती पर बहुत अच्छी फिल्में तो नहीं बनी हैं इसलिए भी 9 आवर्स देखनी चाहिए. चूंकि हिंदी के दर्शकों के मन में तेलुगु अभिनेताओं की कोई छवि अभी नहीं है इसलिए हर किरदार से एक सरप्राइज की उम्मीद की जा सकती है जो कि शर्तिया तौर पर पूरी भी होगी.

Tags: Film review, Hotstar, Web Series

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