नई दिल्ली: कंज्यूमर प्रॉडक्ट्स के हलाल सर्टिफिकेशन (Halal Certification) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका (Petition in Supreme Court) दायर हुई है. एक छात्र ने यह याचिका दाखिल की है. जिसमें कहा गया है कि देश के 15 फीसदी लोगों के लिए 85 फीसदी आबादी को उनकी इच्छा के विरुद्ध हलाल प्रमाणित वस्तुओं के इस्तेमाल के लिए मजबूर किया जा रहा है. यह सर्टिफिकेट निजी संस्थाएं जारी करती हैं इसलिए इस पर पाबंदी लगनी चाहिए. हालांकि अभी यह याचिका दाखिल हुई है इसे सुनवाई के लिए नहीं लिया गया है.
हलाल सर्टिफिकेट सिर्फ मीट प्रॉडक्ट तक सीमित नहीं है, बल्कि स्नेक्स, मिठाइयों , अनाज, तेल, कॉस्मेटिक्स, साबून, शैम्पू, टूथपेस्ट, नेल पॉलिश, लिपस्टिक को भी हलाल प्रमाणपत्र दिया जाने लगा है. सर्टिफिकेट देने का काम निजी संस्थाएं करती हैं और सरकार का कोई रोल ही नहीं है.
“ये गैर-मुस्लिम नागरिकों के मूल अधिकारों का हनन”
अधिवक्ता विभोर आनंद की याचिका में कहा गया है कि देश के 15 प्रतिशत लोगों के लिए 85 प्रतिशत आबादी को उनकी इच्छा के विरुद्ध हलाल प्रमाणित वस्तुओं के इस्तेमाल के लिए मजबूर किया जा रहा है. “ये गैर-मुस्लिमों के मूल अधिकारों का हनन है. एक धर्म निरपेक्ष देश में किसी एक धर्म की मान्यताओं और विश्वास को दूसरे धर्म पर थोपा नहीं जा सकता.”
याचिका के अनुसार, “वर्तमान याचिका भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 21 के तहत प्रदान किए गए मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए देश के 85 प्रतिशत नागरिकों की ओर से याचिकाकर्ता द्वारा दायर की जा रही है, क्योंकि उनके अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है. यह देखा जा रहा है कि 15 प्रतिशत आबादी की खातिर बाकी 85 प्रतिशत लोगों को उनकी इच्छा के विरुद्ध हलाल उत्पादों का उपभोग करने के लिए मजबूर किया जा रहा है.”
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याचिकाकर्ता के अनुसार, अधिकांश व्यवसायों ने हलाल और गैर-हलाल मांस के लिए आपूर्ति श्रृंखलाओं को बनाए रखने की लागत को बचाने के लिए अब केवल हलाल मांस परोसना शुरू कर दिया है और जो लोग हलाल मांस के साथ सहज नहीं हैं, या किसी धर्म वाले लोगों के लिए, जहां केवल झटका मीट की इजाजत है, उनके लिए हलाल प्रोडक्ट चुनने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होता है.
याचिका में कहा गया है कि जमीयत उलमा-ए-हिंद और कुछ अन्य वैसे ही निजी संगठनों द्वारा हलाल प्रमाणीकरण की स्वीकृति का मतलब है कि उपभोक्ता उत्पादों पर आईएसआई और एफएसएसएआई जैसे मौजूदा सरकारी प्रमाणीकरण पर्याप्त नहीं हैं. याचिका में दलील दी गई है कि मुस्लिम अल्पसंख्यक, जो आबादी का 15 फीसदी है, हलाल मांस खाना चाहता है, बाकी 85 फीसदी लोगों पर इसे थोपा जा रहा है.
याचिका में शीर्ष अदालत से केंद्र सरकार को विभिन्न संगठनों द्वारा जारी किए गए सभी प्रमाणपत्रों को अमान्य घोषित करने का निर्देश देने और केंद्र को हलाल प्रमाणित सभी उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है.
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