उत्तर प्रदेश: नेताओं के बगावती रुख से जूझ रहे हैं अखिलेश यादव, क्या दिखेगा राज्यसभा चुनाव पर असर


ममता त्रिपाठी

लखनऊ. चौबे गए छब्बे बनने, दूबे बनकर आए…ये कहावत समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) पर बिल्कुल सटीक बैठती है. उत्तर प्रदेश के बजट सत्र के दौरान समाजवादी पार्टी ने रणनीति बनाई थी कि भाजपा की योगी सरकार को महंगाई, बेरोजगारी, जैसे मुद्दों पर घेरेगी. मगर यहां तो अपनों की नाराजगी ही सामने आने लगी और पार्टी में पड़ी फूट सतह पर दिखाई देने लगी. उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव को गुजरे दो महीने का वक्त ही हुआ है मगर सपा प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) सियासी रूप से अलग थलग पड़ते दिखाई दे रहे हैं.

अखिलेश यादव इन दिनों कई बड़े नेताओं के बगावती रुख से जूझते दिख रहे हैं. इन्हीं सब वजहों से विधानसभा में भी सपा पूरी तरह से अलग थलग दिखाई पड़ रही है, जिसका सीधा असर राज्यसभा चुनावों पर भी पड़ेगा. सियासी जानकारों के मुताबिक पार्टी की राह आसान नहीं है. अखिलेश यादव के ऊपर उनके अपनों का ही दबाव इस कदर बढ़ चुका है कि अगर समय रहते इन बगावती सुरों को शांत नहीं किया गया तो दिक्कतें ज्यादा बढ़ जाएंगी.

दबाव की राजनीति कर रहे हैं ओपी राजभर

विधानसभा में बजट सत्र के दौरान राज्यपाल के अभिभाषण के वक्त एक तरफ सपा के विधायक हंगामा कर रहे थे तो वहीं गठबंधन के साथी शांत बैठे थे. सुभासपा के सारे विधायक चुपचाप भाषण सुन रहे थे और कार्यवाही के बाद ओमप्रकाश राजभर ने सपा के हंगामे का खुलकर विरोध किया और अखिलेश पर सीधा हमला किया. अखिलेश के प्रति तल्खी और सरकार के प्रति नरमी भरे बयान से आगामी राज्यसभा चुनाव में बड़े फेरबदल के आसार दिख रहे हैं. पार्टी के नेताओं का कहना है कि ओपी राजभर दबाव की राजनीति कर रहे हैं. वो अपने बेटे को राज्यसभा भेजना चाहते हैं, इसीलिए वो इस तरीके के दंद फंद अपना रहे हैं.

शिवपाल दे रहे आजम की नाराजगी को हवा

दूसरी तरफ आजम खान तो शपथ लेकर चले गए मगर उनके बेटे और स्वार से विधायक अब्दुल्ला आजम और अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव खामोशी से बैठे रहे जबकि तकनीकी तौर पर दोनों ही सपा के विधायक हैं. हालांकि अब्दुल्ला से अखिलेश की बंद कमरे में आधे घंटे तक मुलाकात हुई और उन्होंने फोन पर अखिलेश की अपने पिता से बात भी कराई. मगर शाम को शिवपाल यादव और आजम खान की दो घंटे चली मुलाकात से अभी भी ये कहा जा रहा है कि शिवपाल यादव, आजम खान की नाराजगी को और हवा दे रहे हैं. आजम खान भी अपनी पत्नी को फिर से राज्यसभा भिजवाना चाहते हैं मगर अखिलेश ने इस बात पर चुप्पी साध ली है. जिसके चलते आजम खान भी पार्टी लाइन से इतर चल रहे हैं.

शुरू हो गई नामांकन की प्रक्रिया

गौरतलब है कि राज्यसभा की 11 सीटों के लिए 24 मई से नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गई है जिसमें नंबर के हिसाब से माना जा रहा है कि भाजपा 7 तो सपा 3 प्रत्याशियों को राज्यसभा भेज सकती है, लेकिन जिस तरह के हालात बने हुए हैं उससे नतीजे अप्रत्याशित होते हुए दिख रहे हैं.

राज्यसभा में सपा की दलीय मान्यता पर भी खतरा

आपको बता दें कि राज्यसभा में समाजवादी पार्टी की दलीय मान्यता पर भी खतरा मंडरा रहा है. मान्यता के लिए सदन में पांच सदस्य होने चाहिए. रामगोपाल यादव और जया बच्चन ही अभी पार्टी के सदस्य हैं. विधायकों की संख्या के आधार पर आगामी चुनाव में सपा 3 सदस्य भेज सकती है, यदि एक सीट पर आरएलडी के जयंत चौधरी राज्यसभा जाते हैं तो सदन में सपा के चार ही सदस्य रह जाएंगे.जिसके चलते राज्यसभा से सपा की दलीय मान्यता खत्म हो जाएगी. दल की मान्यता होने से हर मुद्दे पर बोलने का मौका मिलता है साथ ही अलग से सीट का आवंटन भी किया जाता है.

Tags: Akhilesh yadav, Samajwadi party



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