अमर उजाला खास: लिंग परिवर्तन को प्राथमिकता नहीं देते सरकारी अस्पताल, दिल्ली के 42 में से केवल एक हॉस्पिटल में सुविधा, वहां भी दो साल की वेटिंग


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विनीत (32) बीते तीन साल से लोकनायक अस्पताल के चक्कर लगा रहे हैं। विनीत अपना लिंग परिवर्तन कराना चाहते हैं। लेकिन उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। ऐसे में वे सरकारी अस्पताल के भरोसे हैं जहां कोरोना महामारी के चलते दो साल से लिंग परिवर्तन की सर्जरी नहीं हुई। भीषण गर्मी में भी हर महीने अस्पताल आकर ऑपरेशन डेट के बारे में पूछने वाले विनीत अकेले नहीं है। इनके जैसे और भी कई हैं जो निम्न या मध्यम वर्गीय परिवार से जुड़े हैं और ये सभी लोकनायक अस्पताल में लिंग परिवर्तन कराना चाहते हैं। इसलिए यहां की वेटिंग लिस्ट भी दो साल लंबी है। 

विनीत बताते हैं, मेरा जीवन बचपन से ही कठिन रहा। पहले परिवार, फिर दोस्त, रिश्तेदार और समाज के बाद जब मैंने खुद को बदलने का फैसला लिया तो पता चला कि दिल्ली में सिर्फ एक ही अस्पताल में इलाज होता है। तीन साल में करीब 28 बार अस्पताल आने के बाद भी उन्हें अब तक उपचार नहीं मिला है। 

लिंग परिवर्तन के उपचार से जुड़ी इस परेशानी को लेकर जब ‘अमर उजाला’ ने राजधानी के अस्पतालों में पड़ताल शुरू की तो पता चला कि दिल्ली के 42 में से केवल एक सरकारी अस्पताल (लोकनायक) में लिंग परिवर्तन सर्जरी निशुल्क उपलब्ध है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), सफदरजंग, आरएमएल जैसे नामचीन सरकारी अस्पतालों में भी यह सर्जरी नहीं होती। जबकि इनकी तुलना में दो दर्जन से ज्यादा प्राइवेट अस्पताल इस सर्जरी के लिए 10 से 15 लाख रुपये फीस ले रहे हैं। 

दिल्ली सरकार के अधीन लोकनायक अस्पताल के वरिष्ठ प्लास्टिक सर्जन डॉ. पीएस भंडारी बताते हैं, लिंग परिवर्तन सर्जरी सरकारी अस्पतालों की प्राथमिकता में नहीं है। इसकी मुख्य वजह यह भी है कि यहां कैंसर, आग में झुलसने और तेजाब से जलने के मामले काफी संख्या में पहुंचते हैं। पहले से सीमित संसाधन इन्हीं उपचार में व्यस्त रहते हैं। 

दिल्ली एम्स में प्लास्टिक सर्जरी को लेकर बकायदा अलग से एक ब्लॉक भी मिला है लेकिन यहां अभी तक एक भी लिंग परिवर्तन का उपचार नहीं हुआ। यहां के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने बताया कि उनके यहां फिलहाल सबसे ज्यादा सर्जरी कैंसर मरीजों की हो रही है जिनकी रेडियोथैरेपी या फिर सर्जरी के दौरान अंग या मांसपेशियां नष्ट हुई हों। 

डॉ. भंडारी कहते हैं, लिंग परिवर्तन कराने वाले बड़ी संख्या में हैं। यह आपको सामने दिखाई नहीं देगी लेकिन जब आप प्रोसीजर करने लगते हैं तो धीरे धीरे यह लोग आपके सामने आते हैं। उनके पास वर्तमान में 100 से भी ज्यादा ऐसे लोगों की सूची है जो प्राइवेट अस्पताल में सर्जरी नहीं करा सकते लेकिन सरकारी अस्पताल में उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। साल 2014 से अब तक उनके यहां करीब 80 लोगों का लिंग परिवर्तन किया जा चुका है। 
 

डॉक्टरों के अनुसार, लिंग परिवर्तन करने से पहले एक साल तक संबंधित व्यक्ति या महिला का रिअसाइनमेंट में रहना जरूरी होता है। ऐसा इसलिए ताकि लिंग परिवर्तन कर वह जो बनना चाहती या चाहता है उसे कम से कम सर्जरी से पहले वह महसूस करना शुरू करें, क्योंकि यह सर्जरी एक बार की प्रक्रिया है। इसके बाद कोई विकल्प नहीं बचता। रिअसाइनमेंट के साथ साथ कम से कम दो मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग करते हैं। इनकी सिफारिश पर ही ऑपरेशन करने या न करने का निर्णय होता है। अगर प्रक्रिया आगे बढ़ती है तो हारमोनल ट्रीटमेंट छह माह तक चलता है। हालांकि लिंग परिवर्तन सर्जरी पीड़ादायक हो सकती है लेकिन अगर सही तरीके से यह की जाए तो आगे बहुत ज्यादा इलाज बगैरह की जरूरत नहीं पड़ती। 

लिंग परिवर्तन को लेकर जब दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग से जानकारी ली गई तो पता चला कि मौजूदा समय में लिंग परिवर्तन सर्जरी को लेकर राजधानी में कोई नियम-कानून नहीं है। लोकनायक अस्पताल ने अपने स्तरपर नियम बनाए हैं। जबकि प्राइवेट अस्पताल अपने दिशा निर्देशों पर काम कर रहे हैं। जबकि बिहार में मुख्यमंत्री राहत कोष से 1.50 लाख रुपये की आर्थिक सहायता की जाती है।

आईने को देखकर हमेशा झूठ जिया है मैंने, आज जब बन गई हूं औरत, जीने का जज्बा जागा है मन में।’’ ये कहना है महाराष्ट्र के नांदेड़ निवासी सानवी जेठवानी का, जिन्होंने हाल ही में दिल्ली के एक प्राइवेट अस्पताल में लिंग परिवर्तन कराया। एक सवाल पर उन्होंने कहा कि सर्जरी के पहले तक काफी खुशी थी। इस बीच थोड़ा डर भी था। सर्जरी के बाद पहला और दूसरा दिन काफी कठिन था लेकिन तब मैं सोचती थी कि कुछ ही दिन की तकलीफ है। जब मैंने 30 साल तकलीफ सहन की है तो कुछ और दिन सहने के बाद मुझे नया जीवन मिल रहा है। उन्होंने दिल्ली की स्थिति को लेकर कहा कि सुप्रीम कोर्ट से अधिकार मिलने के बाद भी हमारी सरकारें अब तक ट्रांसजेंडर समुदाय को लेकर गंभीर नहीं हैं। सरकारों को अपने अस्पतालों में इस पर जोर देना चाहिए। समाज के साथ साथ सरकारों के जहन में भी ‘ट्रांस’ शब्द बैठा हुआ है जिसे सुनते ही हमें सड़कों पर ताली बजाने वालों की तस्वीर दिखाई देती है। 

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विनीत (32) बीते तीन साल से लोकनायक अस्पताल के चक्कर लगा रहे हैं। विनीत अपना लिंग परिवर्तन कराना चाहते हैं। लेकिन उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। ऐसे में वे सरकारी अस्पताल के भरोसे हैं जहां कोरोना महामारी के चलते दो साल से लिंग परिवर्तन की सर्जरी नहीं हुई। भीषण गर्मी में भी हर महीने अस्पताल आकर ऑपरेशन डेट के बारे में पूछने वाले विनीत अकेले नहीं है। इनके जैसे और भी कई हैं जो निम्न या मध्यम वर्गीय परिवार से जुड़े हैं और ये सभी लोकनायक अस्पताल में लिंग परिवर्तन कराना चाहते हैं। इसलिए यहां की वेटिंग लिस्ट भी दो साल लंबी है। 

विनीत बताते हैं, मेरा जीवन बचपन से ही कठिन रहा। पहले परिवार, फिर दोस्त, रिश्तेदार और समाज के बाद जब मैंने खुद को बदलने का फैसला लिया तो पता चला कि दिल्ली में सिर्फ एक ही अस्पताल में इलाज होता है। तीन साल में करीब 28 बार अस्पताल आने के बाद भी उन्हें अब तक उपचार नहीं मिला है। 

लिंग परिवर्तन के उपचार से जुड़ी इस परेशानी को लेकर जब ‘अमर उजाला’ ने राजधानी के अस्पतालों में पड़ताल शुरू की तो पता चला कि दिल्ली के 42 में से केवल एक सरकारी अस्पताल (लोकनायक) में लिंग परिवर्तन सर्जरी निशुल्क उपलब्ध है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), सफदरजंग, आरएमएल जैसे नामचीन सरकारी अस्पतालों में भी यह सर्जरी नहीं होती। जबकि इनकी तुलना में दो दर्जन से ज्यादा प्राइवेट अस्पताल इस सर्जरी के लिए 10 से 15 लाख रुपये फीस ले रहे हैं। 

दिल्ली सरकार के अधीन लोकनायक अस्पताल के वरिष्ठ प्लास्टिक सर्जन डॉ. पीएस भंडारी बताते हैं, लिंग परिवर्तन सर्जरी सरकारी अस्पतालों की प्राथमिकता में नहीं है। इसकी मुख्य वजह यह भी है कि यहां कैंसर, आग में झुलसने और तेजाब से जलने के मामले काफी संख्या में पहुंचते हैं। पहले से सीमित संसाधन इन्हीं उपचार में व्यस्त रहते हैं। 

दिल्ली एम्स में प्लास्टिक सर्जरी को लेकर बकायदा अलग से एक ब्लॉक भी मिला है लेकिन यहां अभी तक एक भी लिंग परिवर्तन का उपचार नहीं हुआ। यहां के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने बताया कि उनके यहां फिलहाल सबसे ज्यादा सर्जरी कैंसर मरीजों की हो रही है जिनकी रेडियोथैरेपी या फिर सर्जरी के दौरान अंग या मांसपेशियां नष्ट हुई हों। 

डॉ. भंडारी कहते हैं, लिंग परिवर्तन कराने वाले बड़ी संख्या में हैं। यह आपको सामने दिखाई नहीं देगी लेकिन जब आप प्रोसीजर करने लगते हैं तो धीरे धीरे यह लोग आपके सामने आते हैं। उनके पास वर्तमान में 100 से भी ज्यादा ऐसे लोगों की सूची है जो प्राइवेट अस्पताल में सर्जरी नहीं करा सकते लेकिन सरकारी अस्पताल में उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। साल 2014 से अब तक उनके यहां करीब 80 लोगों का लिंग परिवर्तन किया जा चुका है। 

 



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