Ambedkar Jayanti 2022 Speech: अंबेडकर जयंती पर छात्र ऐसे दे सकते हैं स्पीच, देखें सैंपल


14 अप्रैल को देश भर में बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर की जयंती (Ambedkar Jayanti 2022) मनाई जाती है। बाबा साहेब देश के एक ऐसे व्यक्तित्व हैं जिनकी तुलना किसी और से नहीं की जा सकती। उन्होंने भारत के संविधान निर्माण में एक पिता की भूमिका निभाई। वे हमेशा शोषितों के लिए लड़ते रहे और जातिवाद को चुनौती देते रहें। डॉ भीमराव अंबेडकर जी के व्यक्तित्व के विषय में छात्रों को ज्ञान होना बेहद आवश्यक है। छात्र अपने ज्ञान का प्रयोग प्रतियोगी परीक्षा में कर सकते हैं या वाद-विवाद और स्पीच देते समय इस्तेमाल कर सकते हैं। आइए इस सैम्पल स्पीच के माध्यम से जानते हैं कि आप अंबेडकर जयंती (Ambedkar Jayanti Speech In Hindi) पर किस तरह अपने विचारों को शब्दों का रूप दे सकते हैं।

सैंपल स्पीच (Sample Speech)

सभा में मौजूद माननीय प्रिंसिपल, आदरणीय अध्यापकगण, अतिथिगण और मेरे सभी प्रिय साथियों को नमस्कार।

मैं आज अंबेडकर जयंती के अवसर पर आप सब के समक्ष एक स्पीच के माध्यम से अपने विचार प्रस्तुत करने आई हूं। आशा करती हूं कि आप सभी मेरा हौसला बढ़ाएंगे और मेरा मार्गदर्शन करेंगे।

भारतीय संविधान के पिता कहे जाने वाले डॉ भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महू में हुआ था। उन्हें दलितों का नेता, समाज सुधारक और संविधान के निर्माता के रूप में भी जाना जाता है। बाबा साहेब के बचपन का नाम भीम सकपाल था। उनके पिता रामजी मोलाजी एक प्रधानाध्यापक थे। डॉ भीमराव अंबेडकर ने हमेशा शोषितों, वंचितों और महिलाओं के लिए कार्य किया है। बाबा साहेब मानते थे कि एक देश तब तक विकास नहीं कर सकता जब तक वहां की औरतें विकसित ना हो जाएं।

उन्होंने पढ़ाई करने के लिए अमेरिका और जर्मनी के विश्वविद्यालयों को चुना। लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि उनकी स्कूली शिक्षा सुखमय थी। दलित जाति से ताल्लुक रखने के कारण अंबेडकर को कक्षा में बैठने के लिए अलग से टाट लेकर जाना पड़ता था क्योंकि उन्हें अन्य बच्चों के साथ बैठने की अनुमति नहीं थी। परंतु बाबा साहेब ने हार नहीं मानी और अपनी पढ़ाई करते रहें। जल्द ही वे दलितों के प्रमुख नेता बनकर उभरे।

1947 में अंबेडकर भारत सरकार में कानून मंत्री बने और भारत के संविधान निर्माण में एक अहम भूमिका निभाई। उन्होंने 1951 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने दलितों के साथ शोषण के कारण 1956 में अपने 20,000 अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। 1956 में ही देश ने अपने सपूत डॉ भीमराव अंबेडकर को खो दिया।

इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देता हूं। आशा है मेरा वक्त्वय आप सभी को पसंद आया होगा।
धन्यवाद।

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