Ashish Vidyarthi BDay: ‘विधु के सामने उस दिन मैं कांप रहा था’, आशीष विद्यार्थी ने सुनाई ऑडिशन की दिलचस्प कहानी


11 भाषाओं में करीब सवा दो सौ फिल्में कर चुके अभिनेता आशीष विद्यार्थी का बचपन दिल्ली में बीता है। वह बीती सदी में जन्मे उन सौभाग्यशाली बेटों में हैं जिन्हें अपने मन का करियर बनाने में माता-पिता का सौ फीसदी सहयोग मिला। उनकी अभिनय की तरफ रही ललक को घर में हमेशा प्रोत्साहन मिला और इसकी वजह रही उनके माता और पिता दोनों का कला क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहना। आशीष रविवार को 60 साल के हो रहे हैं, लेकिन वह अब भी ना तो चांदनी चौक भूले हैं और ना ही वे यादें जिनके सहारे आहिस्ता आहिस्ता उन्होंने अभिनय के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई।

संस्कारों का डीएनए

माता, पिता से उन्हें शुरुआती प्रोत्साहन जो मिला, उसने उन्हें एक अच्छा कलाकार बनने के साथ साथ एक बेहतर इंसान बनने में भी मदद की। वह बताते हैं, ‘मां और बिरजू महाराज ने एक साथ लच्छू महाराज से कथक सीखा। बाद में वह शंभू महाराज की भी शिष्या रहीं। दिल्ली में वह कथक गुरु थीं। पिताजी भी दिन पर संगीत नाटक अकादमी में ही रहते थे। मैं स्कूल से आने के बाद अपनी अलग ख्याली दुनिया में रहता था। कभी घंटों टेनिस बाल को बैडमिंटन रैकेट से दीवार पर मारते गुजार देता। कहानियां बुनने में तब मेरा सानी नहीं था। मुझे लगता है अभिनय की शुरूआत मेरी वहीं से हुई।’

दिल्ली में रंगमंच से हुई शुरुआत

आशीष अभिनय को लेकर शुरू से सक्रिय रहे। 1981-82 के आसपास वह उस मंडली के सदस्य बने जिसने दिल्ली में हिंदी नाटकों के उत्थान का बीड़ा उठाया। उसी दौर में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से निकले कुछ युवाओं ने ‘संभव’ की शुरूआत की। देवेंद्र राज अंकुर, राजेंद्र गुप्ता, वीरेंद्र सक्सेना, अमिताभ श्रीवास्तव जैसे लोगों ने तय किया कि हर महीने एक नया नाटक करेंगे। ‘संभव’ ने दिल्ली में हिंदी नाटकों को पुनर्जीवित किया। आशीष बताते हैं, ‘रंगमंच की संस्था ‘संभव’ के समय मैं कॉलेज में था और सबसे बहुत जूनियर था। लेकिन मैं जाया करता था इन लोगों के साथ काम करने। ठेले पर सामान भी ढोया करता था। फिर एनएसडी में रहा। वहां से निकला तो ‘एक्ट वन’ से जुड़ा। हम लोग जब एन के शर्मा से जुड़े तो एन के सिर्फ एनके ही था। एनके के साथ मेरा काम दो साल रहा मुंबई आने से पहले।’

‘मैं अपने मां, बाबा का आशीष’

और, इस दौरान माता पिता का कितना आशीर्वाद मिला? इस सवाल पर ही आशीष भावुक हो जाते हैं। कहते हैं, ‘मैं अपने मां, बाबा का ही आशीष हूं। वे मेरा हर नाटक देखने आते थे। ये वह समय था जब माता पिता अपने बच्चों को डॉक्टर या इंजीनियर ही बनाना चाहते रहे होंगे। लेकिन, मेरे अभिनय के क्षेत्र में जाने को मेरे मां, बाबा का पूरा आशीर्वाद मिला। हम सब लोग जो भी हैं, जहां भी हैं, ना जाने कितने लोगों के आशीष से बने हैं, ना जाने कितने लोगों के धक्कों से बने हैं।’

नटराज स्टूडियो का ऑडिशन

आशीष विद्यार्थी ने दिल्ली से मुंबई आने के बाद खूब संघर्ष किया। ‘1942 ए लव स्टोरी’ के लिए विधु विनोद चोपड़ा से हुई पहली मुलाकात के बारे में बताते बताते वह अब भी रोमांचित हो जाते हैं, ‘उस दिन तेज बारिश हो रही है। नटराज स्टूडियो के गेट पर भीड़ जमा थी। केतन मेहता और सईद अख्तर मिर्जा की चिट्ठी थी मेरे पास। ‘सरदार’ मैं कर चुका था। अंदर जाने का मौका मिला तो मैं कांप रहा था उस समय। जीवन भर की तैयारी थी उस मौके के लिए। बीस मिनट मैंने उस दिन विधु विनोद चोपड़ा के सामने परफॉर्म किया। वह मेरी पूरी जिंदगी की मेहनत थी कि ये काम मुझे मिले तो मैं अपने मां बाप को अच्छे से रख पाऊं। वह शुरुआत थी मेरी। उसके बाद मैंने महेश भट्ट के ड्राइंग रूम में जाकर परफॉर्म किया है। मकरंद देशपांडे का हमेशा शुक्रगुजार रहूंगा कि उन्होंने मुझे महेश भट्ट से मिलवाया।’



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