Ayushmann Khurrana Exclusive: ‘फिल्म ‘पुष्पा’ की कामयाबी गरीब को मिली इज्जत है, साउथ सिनेमा को नब्ज की पहचान’


फिल्म ‘विकी डोनर’ से हिंदी सिनेमा में पदार्पण करने वाले अभिनेता आयुष्मान खुराना की फिल्मों की तासीर अलग रही है। वह बड़े परदे पर मनोरंजक फिल्मों की एक नई लीक बनाना चाहते हैं। बीते 10 साल में उन्होंने इसमें काफी कुछ कामयाबी पाई भी है, लेकिन सिनेमा के साथ उनके प्रयोग जारी हैं और इन्हें आगे भी जारी रखने की वह हिम्मत बांधे हुए हैं। कोरोना संक्रमण काल में उनकी फिल्म ‘गुलाबा सिताबो’ ने भी सीधे ओटीटी पर रिलीज होने की एक नई राह हिंदी सिनेमा को दिखाई थी। अपनी पिछली फिल्म ‘चंडीगढ़ करे आशिकी’ में आयुष्मान एक ट्रांसजेंडर के प्रेमी बने थे और अब अपनी नई फिल्म ‘अनेक’ में निभा रहे हैं एक अंडरकवर एजेंट की भूमिका। अपनी इस नई फिल्म ‘अनेक’, कहानियां चुनने की अपनी प्रक्रिया और निर्देशकों को लेकर अपने भरोसे पर आयुष्मान खुराना ने ‘अमर उजाला’ के सलाहकार संपादक पंकज शुक्ल से की ये खास बातचीत। इसके प्रमुख अंश ‘अमर उजाला’ अखबार के शनिवार के संस्करण में प्रकाशित हो चुके हैं। यहां पढ़िए इंटरव्यू विस्तार से…

फिल्म ‘अनेक’ उत्तर पूर्व भारत को मुख्य भारत से जोड़ने की कितनी कोशिश कर रही है और इसमें कितनी कामयाब रही?

हमारी फिल्म की यही मुहिम है। ये पहली दफा है शायद कि हम हिंदी सिनेमा में पूर्वोत्तर के राज्यों की, जो मुख्यधारा से अलग है और जिनकी बातचीत मुख्यधारा के मीडिया में नहीं होती, उनको मुख्यधारा के सिनेमा से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। और, ये कोशिश सिर्फ बातों में नहीं है। फिल्म ‘अनेक’ के 70 प्रतिशत कलाकार पूर्वोत्तर राज्यों से हैं। पहली दफा ऐसा हो रहा है। मेरे लिए ये फिल्म बहुत ऐतिहासिक है।

उत्तर पूर्व के कलाकारों के साथ काम करने का आपका अलग अनुभव भी रहा होगा, आप खुद रंगमंच के कलाकार रहे हैं, आपने कितनी मदद की इन कलाकारों को फिल्म अनेक’ के लिए तैयार होने में?
ये कास्टिंग निर्देशक मुकेश छाबड़ा का कमाल है। आप हैरान हो जाएंगे ये जानकर कि उनमें से काफी कलाकार एनएसडी (राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय) से हैं। ये कलाकार 40-50 साल से सिर्फ रंगमंच पर काम कर रहे हैं। उनको फिल्मों में मौका ही नहीं मिला। उनको खुद भी लगता है कि उनके चेहरे अलग दिखते हैं तो शायद मुख्यधारा सिनेमा में उनको मौका ही न मिले। मिलता भी नहीं है। फिल्म में जो टाइगर सांगा बने हैं, जो जॉनसन बने हैं, वे दोनों एनएसडी से हैं। मंझे हुए कलाकार हैं। उनको देखकर लगता है कि मतलब कहां थे अब तक ये लोग। हमारी जो लीड एक्ट्रेस हैं एंड्रिया केविचुसा, वह पहली बार फिल्म कर रही हैं। 21 साल की हैं, मॉडल हैं और परदे पर उनका रुआब भी दिखता है।

फिल्म ‘अनेक’ की कहानी को चुनने का आपका पैमाना क्या रहा?

‘अनेक’ ऐसी कहानी है जिसको आप कमर्शियल सिनेमा के मापदंड में नहीं देख सकते। ये एक जरूरी विषय है। मेरे दिल के बहुत करीब रहा है ये विषय। मुझे यह करना ही है। कॉलेज में मेरे म्यूजिक बैंड का एक सदस्य हुआ करता था। वह मणिपुर से था तो वो मुझे बताता था कि चंडीगढ़ में उसके साथ कैसा बर्ताव किया जाता है। चंडीगढ़ में उत्तर पूर्व के लोगों का अपना एक छोटा सा समुदाय भी हुआ करता था। उसे काफी मुश्किल होती थी तो काफी रोष था उसके भीतर इन सब बातों को लेकर कि उनके साथ सही बर्ताव नहीं होता है।

ऐसी फिल्में करते समय क्या बॉक्स ऑफिस के आंकड़ों का तनाव भी रहता है आपको?

कई फिल्मों को लेकर होता है, कइयों में नहीं भी होता। फिल्म ‘अनेक’ एक महत्वपूर्ण फिल्म है तो इसको लेकर मुझे बॉक्स ऑफिस का कोई तनाव नहीं है क्योंकि ये कभी सौ करोड़ की फिल्म हो ही नहीं सकती। मुझे बस इतना पता है कि ये अनुभव सिन्हा की फिल्म है तो वह कुछ बोलेंगे, कुछ बौद्धिक सिनेमा दिखाएंगे। ये कमर्शियल मापदंड से नहीं देखी जा सकती। हां, अगर ‘ड्रीमगर्ल’ होती, ‘बाला’ होती तो जरूर बात बॉक्स ऑफिस की आती।



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