यूपी का रण : कल्याणपुर में मंत्री और पूर्व विधायक के बीच घमासान; गोपामऊ, बांगरमऊ और जहानाबाद में भी कांटे की जंग


सार

आज बात मंगरू की। वो मंगरू जिसके लिए सिर पर छत एक सपना है। वो मंगरू जो पेट काटकर पाई-पाई जोड़ता है। बेचारा अंटी में कुछ जोड़े नहीं, तो बेटी के हाथ कैसे पीले होंगे? खुद के कंधे पर उम्मीदों का पहाड़ ढोते-ढोते कब कंधे झुक गए, पता नहीं। वो टकटकी लगाए बैठा है, लोकतंत्र के इस महापर्व पर।

कानपुर : बुनियादी मुद्दों के साथ ही कल्याणपुर विधानसभा सीट इस बार बिकरू कांड को लेकर भी चर्चा में है। यहां भाजपा ने प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री नीलिमा कटियार को फिर मैदान में उतारा है, तो कांग्रेस ने नेहा तिवारी के रूप में नया चेहरा उतार दिया है। नेहा का सियासत से कभी कोई नाता नहीं रहा, लेकिन उनके चुनावी मैदान में उतरने की चर्चा खूब है। वजह यह है कि नेहा बिकरू कांड में आरोपी खुशी दुबे की बड़ी बहन हैं। खुशी की शादी के महज दो दिन बाद ही दो जुलाई 2020 को बिकरू कांड हुआ था। इसके बाद मुठभेड़ में पुलिस ने उसके पति अमर दुबे को मार गिराया था और खुशी को भी आरोपी बनाया है। खुशी अभी भी जेल में है।

समाजवादी पार्टी ने पूर्व  विधायक सतीश निगम को फिर से मैदान में उतारा है, जबकि बसपा ने ब्राह्मण चेहरे अरुण कुमार मिश्रा पर दांव लगाया है। आम आदमी पार्टी ने भी अरुण कुमार श्रीवास्तव को मैदान में उतारकर सियासी जमीन तैयार करने की कोशिश की है। मुद्दों की बात करें, तो मतदाताओं में रोजगार, सड़क, समस्याओं को लेकर सवाल हैं, पर ध्रुवीकरण के दौर में वे सवाल चुनाव में असर दिखातेे नजर नहीं आ रहे। जातिगत समीकरणों में अनुसूचित जाति और पिछड़ी जातियों का रुख मायने रखता है। जो इनमें ज्यादा से ज्यादा सेंध लगा लेगा, वह मजबूती से उभरेगा। इनके साथ ब्राह्मण और क्षत्रिय बिरादरी के मतदाताओं को जो जोड़ने में कामयाब हो गया, जीत उसकी होगी। यही वजह है कि सभी प्रत्याशी अनुसूचित और पिछड़ी जाति के मतदाताओं में पैठ बनाने के साथ सवर्णों को अपने पाले में लाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं। भाजपा प्रत्याशी केंद्र व प्रदेश सरकार की उपलब्धियां गिनाकर वोट मांग रहे हैं तो सपा प्रत्याशी अखिलेश की 2012 की विशेषताएं गिनाने में जुटे हैं। कांग्रेस की नेहा ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ नारे को लेकर चुनावी मैदान में दम भ् हैं।

सात बार महिला प्रत्याशियों को जिताकर भेजा विधानसभा
वर्ष 1977 में अस्तित्व में आई कल्याणपुर सीट पर अब तक 11 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। यहां से भाजपा को सबसे अधिक छह तो कांग्रेस व जनता दल को दो-दो और सपा को एक बार जीत हासिल हुई। पहली जीत जनता दल की पुष्पा तलवार को मिली थी।  1980 व 1985 में कांग्रेस से राम नारायण पाठक और 1989 में जनता दल से भूधर नारायण मिश्र यहां से विधायक चुने गए। वर्ष 1991 से 2007 तक लगातार पांच बार प्रेमलता कटियार विधायक चुनी गईं। 2012 में सपा के सतीश निगम और 2017 में भाजपा की नीलिमा कटियार विधायक चुनी गईं। इस सीट के मतदाता सात बार महिलाओं को विधानसभा भेज चुके हैं।

मां-बेटी ने बनाया इतिहास
कल्याणपुर विधानसभा सीट पर भाजपा अभी तक छह बार चुनाव जीत चुकी है। 1991 से 2007 तक प्रेमलता कटियार विधायक चुनी गईं। वह कैबिनेट मंत्री भी बनी थीं। इसी तरह उनकी बेटी नीलिमा कटियार ने 2017 में भाजपा से चुनाव जीता, वह भी प्रदेश सरकार में उच्च शिक्षा राज्यमंत्री हैं। इस बार भी नीलिमा भाजपा के टिकट से चुनाव मैदान में हैं। लोगों में एक धारणा यह भी है कि यदि भाजपा की प्रदेश में सरकार बनती है और नीलिमा दोबारा जीतती हैं, तो वह और बड़े ओहदे पर सरकार में जगह बना सकती हैं। इस धारणा से भी उन्हें फायदा मिल रहा है।

वोटों का गणित
ब्राह्मण  46 हजार
क्षत्रिय  23 हजार
वैश्य  17 हजार
निषाद  35 हजार
कुर्मी  25 हजार
पाल  18 हजार
कुुशवाहा 17 हजार
यादव  16 हजार
लोधी  14 हजार
जाटव  21 हजार
वाल्मीकि 20 हजार
खटिक  16 हजार
पासी  14 हजार
कठेरिया  11 हजार
मुस्लिम  14 हजार

2017 का परिणाम
नीलिमा कटियार, भाजपा 86,620
सतीश कुमार निगम, सपा  63,278
दीपू कुमार, बसपा 25,706 

समाजवादी पार्टी में बड़ा कद रखने वाले पूर्व कैबिनेट मंत्री डॉ. अशोक वाजपेयी की सियासी जमीन मानी जाने वाली पिहानी के विलय होने से अस्तित्व में आई गोपामऊ (सुरक्षित) विधानसभा सीट पिछले एक दशक से विधायक श्याम प्रकाश की बेबाकी और बयानबाजी के लिए जानी जाती है। वर्ष 2012 के परिसीमन में बनी इस सीट पर पिछले दो चुनावों से फिलहाल उन्हीं का सिक्का चला है। इस बार भी वह भाजपा से चुनाव लड़ रहे हैं। उन्हें घेरने के लिए अन्य दलों ने भी आजमाए हुए सियासी मोहरे बिछाए हैं। इनमें एक नाम पूर्व मंत्री स्व. परमाई लाल की बहू राजेश्वरी का भी है। वह इस सीट पर सपा से चुनाव लड़ रही हैं। वह खुद दो बार विधानसभा का सफर तय कर चुकी हैं।

मतदाताओं के मिजाज से साफ है कि इस बार भाजपा-सपा में मुकाबला दिलचस्प है। बसपा प्रत्याशी सर्वेश जनसेवा इस मुकाबले में नया मोड़ ला सकते हैं। कांग्रेस से लोकसभा चुनाव लड़ने के बाद भाजपा से होते हुए बसपा में आए सर्वेश जनसेवा की जाटव समाज में अच्छी पैठ मानी जाती है। कांग्रेस प्रत्याशी जिला पंचायत सदस्य सुनीता देवी की सबसे बड़ी मजबूती उनका पहला चुनाव हो सकता है। क्योंकि, उनकी किसी प्रकार की नकारात्मक छवि मतदाताओं के बीच नहीं है। सियासी पंडितों का कहना है कि इस बार के चुनाव में किसी की खास लहर नहीं दिखाई दी है। यहां सपा, बसपा, भाजपा का काडर वोट होने के साथ ही जातिगत ध्रुवीकरण फैक्टर भी है। ऐसे में सवर्ण मतदाता यहां निर्णायक भूमिका अदा करने वाले हो सकते हैं। पर, सवर्ण मतदाताओं में संभावित बड़े विभाजन में एक बड़ा हिस्सा किस ओर जाएगा, इस पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं। अगर सवर्ण मतदाताओं में बंटवारा हुआ, तो परिणाम चौंकाने वाले हो सकते हैं। संवाद 

गोपामऊ जैसे रहे शाहाबाद और बालामऊ के परिणाम
गोपामऊ से शाहाबाद एवं बालामऊ सीट की सीमाएं जुड़ी हैं। बालामऊ सीट सुरक्षित श्रेणी में है। शाहाबाद सीट सामान्य है। बालामऊ सीट भी गोपामऊ की तरह 2012 में अस्तित्व में आई। इस तरह से गोपामऊ एवं बालामऊ सीटों पर हो चुके दो चुनावों में परिणाम एक जैसे रहे हैं। 2012 में दोनों सीटों से सपा, तो 2017 में दोनो सीटों से भाजपा प्रत्याशी विजयी रहे। शाहाबाद सीट पर पूर्व में ढेर सारे बदलाव रहे हैं मगर पिछले दो चुनावों में वहां भी परिणाम गोपामऊ जैैसे ही रहे।

वोटों का गणित
3,43,252 कुल मतदाता 

जाटव  61 हजार
पासी 63 हजार
ब्राह्मण 43 हजार
क्षत्रिय 41 हजार
मुस्लिम 39 हजार
वैश्य 16 हजार
यादव 12 हजार
कुशवाहा  10 हजार
अन्य 58 हजार

पिछड़ा वर्ग बहुल बांगरमऊ सीट पर इस बार जातीय समीकरणों की बिसात पर मोहरे इस तरह से बिछाए गए हैं कि मुकाबला बेहद दिलचस्प हो गया है। भाजपा ने विधायक पिछड़ा वर्ग के श्रीकांत कटियार पर फिर से दांव लगाया है। वहीं, बसपा ने भी पिछड़ा वर्ग के रामकिशोर पाल को टिकट दिया है। वह पूर्व मंत्री स्व. रामशंकर पाल के बेटे हैं। जबकि, कांग्रेस ने ब्राह्मण प्रत्याशी आरती बाजपेयी को और सपा ने मुस्लिम वर्ग से डॉ. मुन्ना अल्वी पर दांव लगाया है। चुनाव में पिछड़ा, ब्राह्मण और मुस्लिम वर्ग के मतदाताओं में जो प्रत्याशी सबसे ज्यादा पैठ बनाने में सफल होगा, जीत का ताज उसी के सिर पर सजेगा। 

प्रत्याशियों के कद और मतदाताओं के अब तक के रुझान को देखते हुए सियासी पंडितों का मानना है कि यहां मुकाबला त्रिकोणीय होगा। जातीय समीकरणों के अलावा भी कुछ और समीकरण यहां रंग दिखा सकते हैं। यहां से सपा ने पूर्व विधायक बदलू खां का टिकट काट दिया है। यह बात अलग है कि 2017 में चली भगवा लहर में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। पर, मुस्लिम मतदाताओं में उनकी गहरी पैठ मानी जाती है। सपा प्रत्याशी डॉ. मुन्ना अल्वी  सक्रिय राजनीति में पहली बार मैदान में उतरे हैं। सपा को भरोसा है कि उसे इस सीट पर अकेला मुस्लिम प्रत्याशी होने का लाभ मिलेगा। वहीं, कांग्रेस प्रत्याशी आरती बाजपेयी पूर्व विधायक व मंत्री स्व. गोपीनाथ दीक्षित की बेटी हैं। उनकी ब्राह्मणों के साथ ही अन्य वर्गों में भी अच्छी पैठ है। हालांकि, पार्टी का जनाधार कम होना आरती की बड़ी कमजोरी है। 

कुलदीप सेंगर यहां से 2017 में भाजपा से जीते थे। सेंगर के दुष्कर्म-हत्या मामले में सजा होने से 2020 में हुए उपचुनाव में श्रीकांत कटियार विधायक बने।  वह भाजपा के जिलाध्यक्ष रह चुके हैं। कटियार को भी मतदाताओं में अच्छी खासी तवज्जो मिल रही है। संवाद 

वोट गणित
3,57,017

कुल मतदाता
पाल  38 हजार
काछी  24 हजार
यादव  20 हजार
लोधी-निषाद  33 हजार
पासी 26 हजार
कुरील  34 हजार
कुर्मी 15 हजार
मुस्लिम  58 हजार
ब्राह्मण  24 हजार
ठाकुर  18 हजार

 

कानपुर सीमा से जुड़ी जहानाबाद विधानसभा सीट में सियासी पारा चढ़ने के साथ समीकरण बदल रहे हैं। चुनावी समीकरण जातीय गणित में उलझे हुए हैं। 2017 में भाजपा गठबंधन के सहयोगी अपना दल के प्रत्याशी जयकुमार सिंह जैकी को सपा के पूर्व विधायक मदनगोपाल वर्मा से ढाई गुना से अधिक वोटों से इस सीट पर जीत मिली थी। इस बार हालात बदले हुए हैं। भाजपा ने यह सीट अपने हिस्से में लेकर कुर्मी बिरादरी के पूर्व मंत्री राजेंद्र पटेल को मैदान में उतारा है। वे बिंदकी विधानसभा क्षेत्र के निवासी हैं, जबकि पूर्व में जीते अपना दल प्रत्याशी स्थानीय थे। 

सपा ने यहां से मदनगोपाल वर्मा को मैदान में उतारा है। पार्टी कुर्मी मतदाताओं में सेंध लगाने के साथ मुस्लिम, यादव और पिछड़ी जाति के मतदाताओं को अपने पाले में लाने की कोशिश में जुटी हुई है। बसपा के हाथी पर सवार आदित्य पांडेय पिछला चुनाव रालोद के टिकट पर लड़े थे। बसपा ब्राह्मणों में सेंध लगाने के साथ ही अनुसूचित जाति, निषाद, क्षत्रिय और मुस्लिम वोटों में सेंध लगाकर विजय हासिल करने का ताना-बाना बुन रही है। कांग्रेस ने अति पिछड़ी जाति की कमला प्रजापति पर भरोसा जताया है। कांग्रेस अति पिछड़ों के साथ अगड़ी जाति और मुस्लिम वोटों के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश में है। भाजपा की बात करें तो उसकी निगाहें कुर्मी के साथ निषाद, गैर यादव पिछड़ी जातियों, गैर जाटव अनुसूचित जातियों के अलावा क्षत्रिय, ब्राह्मण और वैश्य मतदाताओं पर है। 

पुरानी सीट के मतदाताओं पर भी भाजपा की निगाहें : भाजपा प्रत्याशी पूर्व मंत्री राजेंद्र पटेल 1996 में बिंदकी विधानसभा क्षेत्र से विधायक थे। जहानाबाद सीट में पुरानी बिंदकी विधानसभा क्षेत्र का बड़ा हिस्सा समायोजित है। ऐसे में भाजपा प्रत्याशी इसका फायदा उठाने के प्रयास में हैं। सपा प्रत्याशी पूर्व विधायक मदन गोपाल वर्मा भाजपा गठबंधन प्रत्याशी बदलने का पूरा लाभ उठाने की जुगत में हैं। इस सीट के समीकरणों में कुर्मी और ब्राह्मण अहम भूमिका निभाते रहे हैं। भाजपा और सपा प्रत्याशियों में कुर्मी मतों को ज्यादा से ज्यादा अपने पाले में लाने की चुनौती है। वहीं बसपा कुर्मी वोटों में बंटवारे का फायदा उठाने की कोशिश में है। 

पड़ोसी बिंदकी सीट पर प्रत्याशी बदलने से कांटे का मुकाबला : जहानाबाद विधानसभा सीट से जुड़ी बिंदकी विधानसभा सीट के भी समीकरण बदले हुए हैं। पिछले चुनाव में जहानाबाद सीट से अपना दल के टिकट पर जीतकर कारागार राज्यमंत्री बने जयकुमार सिंह जैकी इस बार बिंदकी सीट से अपना दल से चुनाव मैदान में हैं। सपा ने भी बड़ी तैयारियों के साथ पिछले चुनाव में प्रत्याशी रहे रामेश्वर दयाल को फिर चुनाव मैदान में उतारा है। सुनील कुमार पटेल दोषी  बसपा से चुनाव मैदान में हैं। कांग्रेस ने क्षत्रिय बिरादरी के अभिमन्यु सिंह को प्रत्याशी बनाया है। ऐसे में बदले समीकरणों की वजह से यहां भी कांटे की टक्कर होना तय है। (संवाद)

2017 चुनाव परिणाम
जय कुमार सिंह जैकी, अपना दल  81,438
मदनगोपाल वर्मा, सपा  33,832
रामनरायन निषाद, बसपा  32,010
आदित्य पांडेय, रालोद  21,812

वोटों का गणित
3,10,189 कुल मतदाता 
कुर्मी   42 हजार
निषाद  38 हजार
ब्राह्मण 36 हजार
क्षत्रिय 22 हजार
मुस्लिम 20 हजार
रैदास 21 हजार
यादव  18 हजार
वैश्य  9 हजार
अन्य दलित  23 हजार
अन्य पिछड़ा  79 हजार

 

विस्तार

कानपुर : बुनियादी मुद्दों के साथ ही कल्याणपुर विधानसभा सीट इस बार बिकरू कांड को लेकर भी चर्चा में है। यहां भाजपा ने प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री नीलिमा कटियार को फिर मैदान में उतारा है, तो कांग्रेस ने नेहा तिवारी के रूप में नया चेहरा उतार दिया है। नेहा का सियासत से कभी कोई नाता नहीं रहा, लेकिन उनके चुनावी मैदान में उतरने की चर्चा खूब है। वजह यह है कि नेहा बिकरू कांड में आरोपी खुशी दुबे की बड़ी बहन हैं। खुशी की शादी के महज दो दिन बाद ही दो जुलाई 2020 को बिकरू कांड हुआ था। इसके बाद मुठभेड़ में पुलिस ने उसके पति अमर दुबे को मार गिराया था और खुशी को भी आरोपी बनाया है। खुशी अभी भी जेल में है।

समाजवादी पार्टी ने पूर्व  विधायक सतीश निगम को फिर से मैदान में उतारा है, जबकि बसपा ने ब्राह्मण चेहरे अरुण कुमार मिश्रा पर दांव लगाया है। आम आदमी पार्टी ने भी अरुण कुमार श्रीवास्तव को मैदान में उतारकर सियासी जमीन तैयार करने की कोशिश की है। मुद्दों की बात करें, तो मतदाताओं में रोजगार, सड़क, समस्याओं को लेकर सवाल हैं, पर ध्रुवीकरण के दौर में वे सवाल चुनाव में असर दिखातेे नजर नहीं आ रहे। जातिगत समीकरणों में अनुसूचित जाति और पिछड़ी जातियों का रुख मायने रखता है। जो इनमें ज्यादा से ज्यादा सेंध लगा लेगा, वह मजबूती से उभरेगा। इनके साथ ब्राह्मण और क्षत्रिय बिरादरी के मतदाताओं को जो जोड़ने में कामयाब हो गया, जीत उसकी होगी। यही वजह है कि सभी प्रत्याशी अनुसूचित और पिछड़ी जाति के मतदाताओं में पैठ बनाने के साथ सवर्णों को अपने पाले में लाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं। भाजपा प्रत्याशी केंद्र व प्रदेश सरकार की उपलब्धियां गिनाकर वोट मांग रहे हैं तो सपा प्रत्याशी अखिलेश की 2012 की विशेषताएं गिनाने में जुटे हैं। कांग्रेस की नेहा ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ नारे को लेकर चुनावी मैदान में दम भ् हैं।

सात बार महिला प्रत्याशियों को जिताकर भेजा विधानसभा

वर्ष 1977 में अस्तित्व में आई कल्याणपुर सीट पर अब तक 11 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। यहां से भाजपा को सबसे अधिक छह तो कांग्रेस व जनता दल को दो-दो और सपा को एक बार जीत हासिल हुई। पहली जीत जनता दल की पुष्पा तलवार को मिली थी।  1980 व 1985 में कांग्रेस से राम नारायण पाठक और 1989 में जनता दल से भूधर नारायण मिश्र यहां से विधायक चुने गए। वर्ष 1991 से 2007 तक लगातार पांच बार प्रेमलता कटियार विधायक चुनी गईं। 2012 में सपा के सतीश निगम और 2017 में भाजपा की नीलिमा कटियार विधायक चुनी गईं। इस सीट के मतदाता सात बार महिलाओं को विधानसभा भेज चुके हैं।

मां-बेटी ने बनाया इतिहास

कल्याणपुर विधानसभा सीट पर भाजपा अभी तक छह बार चुनाव जीत चुकी है। 1991 से 2007 तक प्रेमलता कटियार विधायक चुनी गईं। वह कैबिनेट मंत्री भी बनी थीं। इसी तरह उनकी बेटी नीलिमा कटियार ने 2017 में भाजपा से चुनाव जीता, वह भी प्रदेश सरकार में उच्च शिक्षा राज्यमंत्री हैं। इस बार भी नीलिमा भाजपा के टिकट से चुनाव मैदान में हैं। लोगों में एक धारणा यह भी है कि यदि भाजपा की प्रदेश में सरकार बनती है और नीलिमा दोबारा जीतती हैं, तो वह और बड़े ओहदे पर सरकार में जगह बना सकती हैं। इस धारणा से भी उन्हें फायदा मिल रहा है।

वोटों का गणित

ब्राह्मण  46 हजार

क्षत्रिय  23 हजार

वैश्य  17 हजार

निषाद  35 हजार

कुर्मी  25 हजार

पाल  18 हजार

कुुशवाहा 17 हजार

यादव  16 हजार

लोधी  14 हजार

जाटव  21 हजार

वाल्मीकि 20 हजार

खटिक  16 हजार

पासी  14 हजार

कठेरिया  11 हजार

मुस्लिम  14 हजार

2017 का परिणाम

नीलिमा कटियार, भाजपा 86,620

सतीश कुमार निगम, सपा  63,278

दीपू कुमार, बसपा 25,706 



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