Corona Virus: बच्‍चों के लिए ये हैं कोविड गाइडलाइंस, हल्‍के लक्षणों में ऐसे करें इलाज


नई दिल्‍ली. भारत में कोरोना के मामलों में भारी गिरावट के बाद एक बार फिर उछाल देखने को मिल रहा है. एक दिन में ही देश में कोविड संक्रमितों (Covid Infected) की संख्‍या में 90 फीसदी की बढ़ोत्‍तरी हुई है. रोजाना 1000 से 1100 की संख्‍या में आ रहे कोविड के मामले सोमवार को 2183 दर्ज किए गए हैं. इतना ही नहीं प‍िछले कुछ दिनों से स्‍कूलों में भी बच्‍चों के संक्रमित होने की संख्‍या बढ़ रही है. वहीं दिल्‍ली का एक आंकड़ा बताता है कि कोरोना (Corona) के कारण अस्‍पतालों में भर्ती होने वालों में इस बार 27 फीसदी बच्‍चे हैं. दो साल के बाद स्‍कूल खुलने और मास्‍क (Mask) संबंधी पाबंदियां हटने के बाद बच्‍चे भी कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं. यही वजह है कि अभिभावकों की चिंता बढ़ गई है. हालांकि अभी तक स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञों का कहना है कि बच्‍चों में कोरोना का संक्रमण (Corona Infection) बहुत ज्‍यादा गंभीर नहीं देखा गया है. बच्‍चों में हल्‍के या असिम्‍टोमैटिक मामले सामने आ रहे हैं.

स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञों का कहना है कि अगर कोई बच्‍चा कोविड संक्रमित है भी तो घबराने के बजाय घर पर रहकर भी उसका इलाज हो सकता है. अगर बच्‍चा (Child) हल्‍के लक्षणों या बिना लक्षणों के कोविड संक्रमित है तो देश में बच्‍चों के लिए बनाई गई कोरोना गाइडलाइंस के अनुसार उसकी देखभाल घर पर ही की जा सकती है. बता दें कि जून 2021 को केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय (Union Health Ministry) की ओर बच्‍चों के लिए कोरोना इलाज का प्रोटोकॉल (Protocol) तैयार किया गया था. जिसे अभी भी अपनाया जा सकता है.

पीडियाट्रिक एज ग्रुप (Pediatric Age Group) के लिए कोविड इलाज का प्रोटॉकॉल तैयार करने वाली टीम में शामिल रहे ऑल इंडिया मेडिकल साइंसेज (AIIMS) के डिविजन ऑफ पल्‍मोनोलॉजी में प्रोफेसर डॉ. राकेश लोढ़ा के अनुसार कोरोना की पहली और दूसरी लहर (Second Wave) और तीसरी लहर में बच्‍चों को लेकर ज्‍यादा गंभीरता नहीं देखी गई. दूसरी लहर में कोरोना मामलों के डिनोमिनेटर प्रभाव के चलते कोरोना से युवाओं या बच्‍चों की मौत की संख्‍या बढ़ी. जबकि प्रतिशत देखा जाए तो पहली और दूसरी दोनों लहरों में लगभग बराबर ही रहा. हालांकि अब 12 साल से ऊपर के बच्‍चों को वैक्‍सीन की खुराक भी मिल रही है जो संक्रमण की गंभीरता को कम कर सकती है. ऐसे में लक्षणों के आधार पर इस प्रोटोकॉल के अनुसार इलाज किया जा सकता है.

एसिम्‍टोमैटिक या लक्षणों रहित (asymptomatic)

परिवार में किसी को कोरोना होने या न होने पर भी जो बच्‍चे स्‍क्रीनिंग में कोरोना से प्रभावित पाए जाते हैं लेकिन उनमें कोरोना के कोई लक्षण मौजूद नहीं रहते तो उन्‍हें असिम्‍टोमैटिक (Asymptomatic) यानि बिना लक्षणों वाला संक्रमित कहा जाता है. ऐसे बच्‍चों को घर पर ही सिर्फ निगरानी की जरूरत होती है. इनके खान-पान का ध्‍यान रखा जाए. मास्‍क और सोशल डिस्‍टेंसिंग का ध्‍यान रखा जाए. वहीं जैसे जैसे लक्षण बढ़ते हैं उसी आधार पर इन्‍हें इलाज की जरूरत होती है.

माइल्‍ड लक्षणों वाले बच्‍चे (Mild Disease)

माइल्‍ड लक्षणों वाले बच्‍चों में गले में दर्द, नाक बहना, गले में खराश, उल्‍टी-दस्‍त या डायरिया, बुखार, सांस लेने में तकलीफ हुए खांसी या किसी किसी बच्‍चे में पेट या आंत संबंधी परेशानी भी हो सकती हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे बच्‍चों को किसी अन्‍य जांच की जरूरत नहीं होती. इन्‍हें घर पर ही आइसोलेट करके ठीक किया जा सकता है. हालांकि इसके लिए होम आइसोलेशन की सभी जरूरतें पूरी करने की सुविधा होनी चाहिए. कमरे में सही वेंटीलेशन होना चाहिए. देखभाल के लिए एक अभिभावक का होना भी जरूरी है. यहां तक कि इन लक्षणों में हर्ट डिजीज, क्रॉनिक लंग डिजीज या मोटापे वाले बच्‍चों को भी घर पर ही ठीक किया जा सकता है.

स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय के प्रोटॉकॉल के अनुसार इन बच्‍चों को हर 4-6 घंटे में 10-15 एमजी प्रति किलोग्राम के हिसाब से पैरासीटामोल देनी होगी. यानि कि अगर कोई बच्‍चा 10 साल का है तो उसे 100 से 150 एमजी की पैरासीटामोल गोली दी जा सकती है. कफ और गले के दर्द के लिए गरारा करना होगा. साथ ही पोषणयुक्‍त डायट देनी होगी.

मॉडरेट लक्षणों वाले बच्‍चों के लिए (Moderate Covid 19 Disease)

कोविड के मॉडरेट लक्षणों वाले बच्‍चों को न्‍यूमोनिया हो सकता है. साथ ही इनका ऑक्‍सीजन सेचुरेशन लेवल 90 तक आ जाता है. विशेषज्ञ कहते हैं कि इसके लिए भी किसी लैब टेस्‍ट की जरूरत नहीं है. ऐसी परेशानी होने पर बच्‍चे को किसी कोविड सेंटर में भर्ती किया जा सकता है. इस दौरान लिक्विड डायट और इलेक्‍ट्रोलाइट का संतुलन जरूरी है. अगर मुंह से भोजन न कर पा रहे हों तो ओरल फीड थेरेपी अपनाई जा सकती है. हालांकि ऐसे बच्‍चे का घर पर इलाज संभव नहीं है. ऑक्‍सीजन स्‍तर गिरने पर अस्‍पताल में ही इलाज संभव है.

इस दौरान अस्‍पताल में बच्‍चे को 100.4 डिग्री फारेनहाइट या इससे ज्‍यादा बुखार होने पर हर 4-6 घंटे में 10-15 एमजी प्रति किलोग्राम के हिसाब से पैरासीटामोल की खुराक दी जा सकती है. अगर बैक्‍टीरियल इन्‍फैक्‍शन हो तो एमोक्सिलिन दिया जा सकता है. 94 फीसदी से कम ऑक्‍सीजन सेचुरेशन लेवल होने पर बाहरी ऑक्‍सीजन या पूरक की जरूरत होगी. वहीं अगर बच्‍चे को पहले से कोई बीमारी है तो कोरोना के लिए उपचार के साथ उसे सहायक उपचार दिया जा सकता है.

गंभीर लक्षणों वाले बच्‍चों के लिए (Severe covid 19 Disease)

90 फीसदी से कम ऑक्‍सीजन सेचुरेशन लेवल होने पर बच्‍चों को गंभीर लक्षणों वाले मरीज की क्षेणी में रखा जाएगा. इसमें निमोनिया, एक्‍यूट रेस्पिरेटरी डिस्‍ट्रेस सिंड्रोम, सेप्टिक शॉक, मल्‍टी ऑर्गन डिस्‍फंक्‍शन सिंड्रोम, साइनोसिस के साथ निमोनिया आदि हो सकता है. इसके साथ ही सीने में तकलीफ, अत्‍यधिक नींद, दौरे, सुस्‍ती आदि हो सकता है. ऐसे बच्‍चों को कोविड डेडिकेटेड अस्‍पताल में भर्ती कराना जरूरी है. साथ ही बच्‍चों को एचडीयू या आईसीयू की जरूरत महसूस हो सकती है. इन बच्‍चों को डॉक्‍टरों की निगरानी में डेक्‍सामेथासोन की खुराक तय मानकों के अनुसार दी जा सकती है.

Tags: AIIMS, Aiims delhi, Corona Virus

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