Deen Dayal Upadhyaya death anniversary: दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद की 10 बातें, जो आज हैं और भी प्रासंगिक


नई दिल्ली. भारतीय जनसंघ (Bharatiya Jana Sangh) के संस्थापकों में से एक पंडित दीनदयाल उपाध्याय (Pandit Deendayal Upadhyay) की आज पुण्यतिथि है. इनका शव मुगलसराय जंक्शन (Mughalsarai station) पर 11 फरवरी 1968 को लावारिस हालत में पाया गया था. पंडित दीनदयाल उपाध्याय का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  (Rashtriya Swayamsevak Sangh)  से जुड़ाव 1937 में हुआ था. दीनदयाल उपाध्याय ने अपने सिद्धांत एकात्म मानववाद (Ekaatm maanavavaad) को भारत की राजनीतिक समस्याओं के हल के लिए सुझाया था. उसमें बताई गई 10 महत्वपूर्ण बातें ऐसी हैं जो आज भी प्रासंगिक हैं. आइए इनके बारे में जानते हैं.

1. विदेशी विचारों की ललक घातक– दीनदयाल उपाध्याय ने आजादी मिलने के बाद भी भारत की समस्याओं के खत्म नहीं होने का सबसे कारण विदेशी विचारों के लिए भारतीय नेताओं, अफसरों, नीति निर्माताओं और व्यापारी तबके के बीच कायम ललक को ही जिम्मेदार माना था. जो किसी न किसी रूप में आज भी बरकरार है. आज भी लोग पश्चिमी राजनीति और अर्थनीति को ही आदर्श मानकर उसे भारत पर थोपने के जतन में लगे रहते हैं.

2. हर समाज अलग, उनकी समस्याएं और समाधान भी अलग- पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद के दर्शन के हिसाब से हर समाज की प्रकृति अलग-अलग होती है. इसलिए उनकी समस्याएं और समाधान भी अलग हो सकते हैं. किसी एक देश, काल, समय और परिस्थिति में किसी चीज के सफल होने का मतलब ये नहीं है कि वो हर जगह सफल हो सकती है.

3. एकांगी सोच से केवल संघर्ष का जन्म- दीनदयाल उपाध्याय का साफ कहना था कि केवल एकांगी सोच से संघर्ष से सिवा कुछ पैदा नहीं हो सकता है. चाहे उसके आदर्श कितने ही ऊंचे क्यों न हों. दीनदयाल उपाध्याय ने तत्कालीन परिस्थिति का उल्लेख करते हुए कहा कि दुनिया के कई देश गुलाम हैं. अगर शांति के आदर्श को ही सबसे ऊपर मान लिया जाएगा तो फिर उनको अपनी आजादी के लिए संघर्ष करने का नैतिक अधिकार ही नहीं बचेगा.

4. संघर्ष नहीं समन्वय है मानव संस्कृति का आधार-साम्यवाद के सिद्धान्त को पेश करने वाले कार्ल मार्क्स ने मानव सभ्यता के विकास को निरंतर चलने वाले संघर्ष का नतीजा बताया था. इसके विपरीत दीनदयाल उपाध्याय ने साफ कहा कि मानवीय संस्कृति के विकास का आधार संघर्ष नहीं सामंजस्य है. ये सामंजस्य प्रकृति में भी दिखाई देता है.

5. राष्ट्र की तुलना में समाज ज्यादा महत्वपूर्ण-पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने समाज को हमेशा राष्ट्र की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण माना है. उनका कहना था कि एक समय बहुत ताकतवर माने जाने वाले राष्ट्र जैसे-यूनान, मिस्र, रोम आदि नष्ट हो गए. जबकि राष्ट्रविहीन यहूदियों ने अपनी सामाजिक ताकत के बल पर हजारों साल के बाद फिर से अपना राष्ट्र खड़ा कर लिया है.

6. समाज और व्यक्ति के हित परस्पर पूरक- दीनदयाल उपाध्याय का साफ विचार था कि व्यक्ति और समाज के हित परस्पर एक-दूसरे के पूरक हैं. दोनों में कोई भिन्नता नहीं है बल्कि दोनों पूरी तरह एकाकार हैं. हो सकता है कि समाज की संस्थाओं में किसी कारण से दोष आ जाए. इसके बावजूद संस्थाओं में सुधार किया जा सकता है और जरूरत होने पर नई संस्थाएं कायम की जा सकती हैं.

7. धर्म ही हमारा प्राण- दीनदयाल उपाध्याय ने साफ कहा कि हर राज्य का एक आदर्श होता है. इस तरह सबसे बड़ा राज्य नहीं वरन आदर्श ही होता है. इसलिए भारत के लिए सबसे बड़ा आदर्श उसका धर्म ही है. जिसने धर्म छोड़ा, उसका प्राण गया. जिस राष्ट्र ने अपना धर्म छोड़ दिया, उसका सबकुछ चला गया.

8. आर्थिक उपभोग में मर्यादा जरूरी-दीनदयाल उपाध्याय का साफ कहना था कि मानव को अपना जीवन न्यूनतम जरूरतों के हिसाब से चलाना जाहिए. गैर-जरूरी उपभोग के लिए अंधाधुंध उत्पादन को बढ़ाकर प्रकृति के संसाधनों को दोहन करने के विचार का उन्होंने अपने एकात् मानववाद के दर्शन में विरोध किया है.

9. शिक्षा समाज का दायित्व-दीनदयाल उपाध्याय ने अपने एकात्म मानववाद के दर्शन में साफ कहा कि शिक्षा पूरी तरह से समाज का दायित्व है. जिस तरह से किसी फलदार पेड़ को लगाकर उसे सींचना और उसकी देखभाल करनी पड़ती है. उसी तरह एक बच्चे को शिक्षा देकर उसे समाज का उपयोगी अंग बनाना भी सामूहिक जिम्मेदारी है.

10. न्यूनतम का जन्मसिद्ध अधिकार-पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने अपने एकात्म मानववाद में साफ कहा है कि सभी को उसकी न्यूनतम जरूरतों को हासिल करने का जन्मसिद्ध अधिकार है. हर व्यक्ति को रोजगार ही किसी अर्थव्यवस्था का मूल उद्देश्य होना चाहिए. इसके लिए अर्थव्यवस्था के पूंजी, टेक्नोलॉजी और श्रम जैसे बुनियादी घटकों में संतुलन होना चाहिए.

Tags: BJP, Pandit Deendayal Upadhyay, Rashtriya Swayamsevak Sangh



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