Draupadi Murmu: महामहिम की महागाथा, जानें द्रौपदी मुर्मू ने कैसे तय किया एक शिक्षक से राष्ट्रपति पद तक का सफर?


द्रौपदी मुर्मू आज देश के 15वें राष्ट्रपति पद की शपथ ले लेंगी। कभी शिक्षक रहीं मुर्मू इलाके के विधायक के कहने पर राजानीति में आईं। 25 साल पहले 1997 में पहला चुनाव लड़ा। चुनाव पार्षद का था। मुर्मू चुनाव लड़ीं, जीतीं और यहीं से उनका राजनैतिक सफर शुरू हुआ। 

 

मुर्मू का ये सफर इतना आसान भी नहीं है। यहां तक पहुंचने के लिए मुर्मू ने न जाने कितनी तकलीफें झेलीं हैं। इस सफर में कई अपने भी दूर हो गए। कष्ट इतना मिला कि कोई आम इंसान कब का टूट गया होता। फिर भी मुर्मू ने न केवल संघर्ष जारी रखा बल्कि देश के सर्वोच्च पद तक पहुंचने में कामयाब हुईं। आज मुर्मू न केवल भारत, बल्कि दुनियाभर के अरबों लोगों के लिए एक मिसाल बन चुकी हैं। 

आइये जानते हैं मुर्मू के उसी सफर को…कैसे उन्होंने एक झोपड़ी से देश के सर्वोच्च पद तक का सफर तय किया?   

 

आदिवासी परिवार में जन्म

द्रौपदी का जन्म ओडिशा के मयूरगंज जिले के बैदपोसी गांव में 20 जून 1958 को हुआ था। द्रौपदी संथाल आदिवासी जातीय समूह से संबंध रखती हैं। उनके पिता का नाम बिरांची नारायण टुडू एक किसान थे। द्रौपदी के दो भाई हैं। 

द्रौपदी की शादी श्यामाचरण मुर्मू से हुई। उनसे दो बेटे और दो बेटी हुई। साल 1984 में एक बेटी की मौत हो गई। द्रौपदी का बचपन बेहद अभावों और गरीबी में बीता था। लेकिन अपनी स्थिति को उन्होंने अपनी मेहनत के आड़े नहीं आने दिया। उन्होंने भुवनेश्वर के रमादेवी विमेंस कॉलेज से स्नातक तक की पढ़ाई पूरी की। बेटी को पढ़ाने के लिए द्रौपदी मुर्मू शिक्षक बन गईं। 

 

कॉलेज जाने वाली गांव की पहली लड़की

मुर्मू की स्कूली पढ़ाई गांव में हुई। साल 1969 से 1973 तक वह आदिवासी आवासीय विद्यालय में पढ़ीं। इसके बाद स्नातक करने के लिए उन्होंने भुवनेश्वर के रामा देवी वुमंस कॉलेज में दाखिला ले लिया। मुर्मू अपने गांव की पहली लड़की थीं, जो स्नातक की पढ़ाई करने के बाद भुवनेश्वर तक पहुंची। 

 

कॉलेज में पढ़ाई के दौरान हुआ प्यार

कॉलेज में पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात श्याम चरण मुर्मू से हुई। दोनों की मुलाकात बढ़ी, दोस्ती हुई, दोस्ती प्यार में बदल गई। श्याम चरण भी उस वक्त भुवनेश्वर के एक कॉलेज से पढ़ाई कर रहे थे। 

 

शादी का प्रस्ताव लेकर द्रौपदी के गांव में श्याम ने डाला डेरा

बात 1980 की है। द्रौपदी और श्याम चरण दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे थे। दोनों एक साथ आगे का जीवन व्यतीत करना चाहते थे। परिवार की रजामंदी के लिए श्याम चरण विवाह का प्रस्ताव लेकर द्रौपदी के घर पहुंच गए। श्याम चरण के कुछ रिश्तेदार द्रौपदी के गांव में ही रहते थे। ऐसे में अपनी बात रखने के लिए श्याम चरण अपने चाचा और रिश्तेदारों को लेकर द्रौपदी के घर गए थे। तमाम कोशिशों के बावजूद द्रौपदी के पिता बिरंची नारायण टुडू ने इस रिश्ते को लेकर इंकार कर दिया। 

श्याम चरण भी पीछे हटने वाले नहीं थे। उन्होंने तय कर लिया था कि अगर वह शादी करेंगे तो द्रौपदी से ही करेंगे। द्रौपदी ने भी घर में साफ कह दिया था कि वह श्याम चरण से ही शादी करेंगी। श्याम चरण ने तीन दिन तक द्रौपदी के गांव में ही डेरा डाल लिया। थक हारकर द्रौपदी के पिता ने इस रिश्ते को मंजूरी दे दी। 

 



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