गुल हो रही बत्ती: खराब माली हालत के चलते राज्य ले रहे बिजली कटौती का सहारा, विदेश से महंगा कोयला खरीदने में हिचक रहीं कंपनियां


सार

कोयला संकट पर कोल सचिव एके जैन का कहना है कि देश में कोयले की कमी नहीं है। जबकि इस संकट की मुख्य वजह विभिन्न ईंधन स्रोतों से होने वाले बिजली उत्पादन में आई तीव्र गिरावट है। जैन का कहना है कि देश के कई राज्यों में कोयले का संकट न होकर बिजली की मांग और आपूर्ति का बेमेल होना है। देश में गैस-आधारित बिजली उत्पादन में भारी गिरावट आने से यह संकट और बढ़ गया है…

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देश में एक बार फिर कोयला की कमी से हाहाकार मचा हुआ हैं। कई राज्य बिजली कटौती की तरफ बढ़ रहे हैं, तो कई शहरों में बत्ती गुल होना शुरू हो गई है। इस संकट के पीछे विदेश से आयात होने वाले कोयले के बढ़ते दाम नजर आ रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ राज्य खराब वित्तीय हालत के चलते अतिरिक्त बिजली खरीदने के बजाए कटौती का सहारा लेते हुए दिखाई दे रहे हैं। कोयले की कमी पर विशेषज्ञों का कहना है कि यह कोयला संकट घरेलू न होकर बाहरी ज्यादा नजर आ रहा है। क्योंकि आज सरकार की तरफ से बिजली कंपनियों को 10 फीसदी कोयला विदेश से आयात करने की अनुमति है। लेकिन कंपनियां वैश्विक मुद्रास्फीति के चलते विदेश से महंगा कोयला खरीद नहीं पा रही हैं। इससे देश की कोयला खदानों पर दबाव बढ़ता जा रहा है। जबकि राज्यों की वित्तीय हालत इतनी खराब है कि उनका करीब एक लाख करोड़ रुपये केंद्र सरकार पर बकाया है। इसलिए राज्य सरप्लस पावर खरीदने के बजाए बिजली कटौती का सहारा ले रहे हैं।

जानें आखिर पिछले साल क्यों शुरू हुआ था कोयला संकट

दरअसल, पिछले दो वर्षों से देश में कोयला संकट देखने को मिल रहा है। बीते वर्ष ऐसी स्थिति इसलिए निर्मित हुई थीं क्योंकि लॉकडाउन होने से बिजली की खपत बहुत कम हो गई थी। इसलिए बिजली उत्पादन संयंत्रों ने अपने स्टाक में कोयला भी कम रखा था। अनलॉक होने के बाद सारी औद्योगिक इकाइयां तेजी से शुरू हो गईं, जिससे कोयला संकट गहराता चला गया। विशेषज्ञों ने अमर उजाला से चर्चा में कहा, सरकार के नियमों के मुताबिक कोयला खदान से दूर जो पावर प्लांट्स होते हैं, उन्हें 26 दिनों का कोयला अपने स्टॉक में रखना होता है। जबकि नजदीक के प्लांट को 17 दिनों का स्टॉक रखना जरूरी होता है।

पिछले वर्ष कोरोना की तीसरी लहर के लॉकडाउन के चलते देश में बिजली की खपत बेहद कम हो गई थी। ऐसे में बिजली संयंत्रों को भी उत्पादन घटाना पड़ा रहा था। लेकिन हालात सामान्य हुए तो कोयले की खपत देश में बढ़ गई। ऐसी स्थिति में संयंत्रों के पास कोयले का स्टॉक मौजूद नहीं था। इसके बाद जुलाई-अगस्त में बरसात आ गई, इससे देशभर में कोयले की सप्लाई भी बाधित हुई। देश में कई जगह रेलवे ट्रैक पानी में डूब गए, तो कहीं जगह कोयला खदानों में पानी भर गया। देश में बढ़ते बिजली संकट को देखते हुए सरकार डैमेज कंट्रोल में जुई गई। सरकार ने नॉन पावर सेक्टर जैसे सीमेंट, एलुमिनियम उद्योगों की कोयला सप्लाई को रोक दिया। इसके बाद बिजली संयंत्रों को कोयला पहुंचाया, जिससे बिजली संकट कम हुआ।

फिर इस साल क्यों मचा है बवाल?

विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले वर्ष की तुलना में इस बार हालात बिलकुल अलग हैं। बढ़ती हुई गर्मी के साथ-साथ इस बार देश की सभी औद्योगिक इकाइयां कोविड पूर्व के स्तर पर काम कर रही हैं। जिससे पिछले साल के मुकाबले इस बार बिजली की खपत कई गुना बढ़ी हुई नजर आ रही है। देश के हर पावर प्लांट पर दबाव बना हुआ है। कोयले की बढ़ती खपत को देखते हुए कोल इंडिया ने भी कोयले का उत्पादन बढ़ा दिया हैं। बीते वर्ष की तुलना में इस बार 14 फीसदी ज्यादा कोयले का उत्पादन हो रहा है। इसके बाद भी बिजली संयंत्र मांग कर रहे हैं कि उनके पास कोयला बहुत कम है।

दरअसल, आज सभी बिजली संयंत्रों के पास कोयले का उतना स्टॉक मौजूद है, जितना उनके पास होना चाहिए। लेकिन फिर भी कोयला संकट सरकार के नियमों के चलते बना हुआ है। पिछले साल हुए संकट को देखते हुए केंद्र सरकार ने नियमों में फेरबदल कर दिया था। नए नियमों के मुताबिक सभी पावर प्लांट्स को ज्यादा स्टॉक रखने के निर्देश दिए गए थे, ताकि बरसात में कोई दिक्कत नहीं हो। आज सभी प्लांट्स में कोयला स्टॉक इसलिए कम नजर आ रहा है, क्योंकि सरकार ने स्टॉक रखने को सीमा को पिछले साल के मुकाबले बढ़ा दिया है और जितना कोयला संयंत्रों में पहुंचना था उतना अभी तक नहीं पहुंचा है।

रुस-युक्रेन युद्ध और इन कारणों से भी हो रही दिक्कत

देश के पावर प्लांट्स अपनी उत्पादकता को बढ़ाने के लिए विदेश से भी कोयला आयात करते है। भारतीय कंपनियां इंडोनेशिया और रूस से बड़ी मात्रा में कोयला आयात करती हैं। यह बहुत ही निम्न स्तर का कोयला होता है। कंपनियां दूसरे कोयले को इस आयातित कोयले में मिलाकर इसे अपने पावर प्लांट्स में उपयोग करती हैं। ताकि पावर प्लांट की उत्पादकता बढ़ जाए। लेकिन इस बार बढ़ती वैश्विक मुद्रास्फीति और इंडोनेशिया से आने वाले डोमेस्टिक कोयले के दाम पहले के मुकाबले ज्यादा बढ़ गए हैं। जिससे भारतीय कंपनियों के लिए कोयला आयात करना बहुत महंगा सौदा साबित हो रहा है। इसलिए कंपनियों ने बाहर से कोयला खरीदना फिलहाल बंद कर दिया है। इसके अलावा जो कोयला बहुत पहले आर्डर किया गया था, वह रूस और यूक्रेन के युद्ध के चलते अब तक बंदरगाहों में पर अटका हुआ है। जिससे कंपनियों के ऊपर दबाव ज्यादा बढ़ गया है।

राज्य नहीं खरीद रहे अतिरिक्त बिजली

पिछले साल के मुकाबले इस बार बिजली की डिमांड 30 फीसदी ज्यादा है। वहीं पावर सप्लाई भी सभी राज्यों में पर्याप्त हो रही हैं। लेकिन कभी-कभी पीक आवर में राज्यों में डिमांड बढ़ जाती है। ऐसे में राज्य अतिरिक्त बिजली खरीद ले सकते हैं। लेकिन राज्य ऐसा नहीं कर रहे हैं। इसके बदले वे जानबूझकर कटौती का सहारा ले रहे हैं कि क्योंकि अगर अतिरिक्त बिजली खरीदेंगे तो उन्हें इसका पैसा देना पड़ेगा। इसलिए राज्यों में बिजली संकट हो रहा है। क्योंकि राज्य अतिरिक्त बिजली खरीदेंगे तो उन्हें पैसा देना होगा।  

विशेषज्ञों ने कहा कि आज यह बात सामने आ रही है कि कोयला की बहुत कमी है तो यह बिलकुल गलत है। क्योंकि अभी भी सभी पावर प्लांट्स के पास करीब 27 मिलियन टन कोयले का स्टॉक पड़ा हुआ है। आज जो पावर प्लांट्स यह कह रहे हैं कि हमारे पास कोयला स्टॉक कम है तो उसके दो कारण हैं, पहला यह कि रेलवे की पास रैक की कमी है जिससे कोयला ज्यादा मात्रा में संयंत्र तक नहीं पहुंच रहा है। दूसरा यह है कि कोल इंडिया का राज्यों की पावर कंपनियों पर बहुत बकाया है। इधर, सरकार भी कंपनियों से कह चुकी है कि जब तक वे अपना पुराना हिसाब नहीं करेंगी तब तक कोल इंडिया कोयला नहीं देगी। इसलिए आज कुछ राज्य अपनी क्षमता के हिसाब से बिजली भी खरीद रहे हे क्योंकि उनका बकाया राशि ज्यादा है।

संकट पर यह कहना है कोल सचिव का…

कोयला संकट पर कोल सचिव एके जैन का कहना है कि देश में कोयले की कमी नहीं है। जबकि इस संकट की मुख्य वजह विभिन्न ईंधन स्रोतों से होने वाले बिजली उत्पादन में आई तीव्र गिरावट है। ताप-विद्युत संयंत्रों के पास कोयले का कम स्टॉक होने के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं। कोविड-19 के बाद अर्थव्यवस्था में तेजी से बिजली की मांग बढ़ना, इस साल जल्दी गर्मी शुरू हो जाना, गैस और आयातित कोयले की कीमतों में वृद्धि होना और तटीय ताप विद्युत संयंत्रों के बिजली उत्पादन का तेजी से गिरना जैसे कारक इसके लिए जिम्मेदार रहे हैं।

जैन का कहना है कि देश के कई राज्यों में कोयले का संकट न होकर बिजली की मांग और आपूर्ति का बेमेल होना है। देश में गैस-आधारित बिजली उत्पादन में भारी गिरावट आने से यह संकट और बढ़ गया है। देश में बिजली आपूर्ति बढ़ाने के लिए पहले से ही कई उपाय किए जा रहे हैं। भारत में कुछ ताप-विद्युत संयंत्र समुद्री तट के किनारे बनाए गए थे ताकि आयातित कोयले का इस्तेमाल कर सकें। लेकिन आयातित कोयले की कीमत बढ़ने से उन संयंत्रों ने कोयला आयात कम कर दिया है। ऐसी स्थिति में तटीय ताप-विद्युत संयंत्र अब अपनी क्षमता का लगभग आधा उत्पादन ही कर रहे हैं।

कोयला सचिव ने कहा कि दक्षिणी और पश्चिमी क्षेत्रों में स्थित राज्य आयातित कोयले पर निर्भर हैं। जब इन राज्यों में स्थित घरेलू कोयला आधारित संयंत्रों को रेलवे वैगन और रैक से कोयला भेजा जाता है। रैक को फेरा लगाने में 10 दिन से अधिक समय लगता है। इसकी वजह से अन्य राज्यों में स्थित संयंत्रों तक कोयला आपूर्ति बाधित होती है। हालांकि रेलवे ने पिछले साल से बिजली क्षेत्र की बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए अन्य क्षेत्रों में रैक आपूर्ति को कम करके, पहले से कहीं अधिक कोयले की ढुलाई की है। मार्च के महीने में रैकों की अच्छी लदान हुई थी।

विस्तार

देश में एक बार फिर कोयला की कमी से हाहाकार मचा हुआ हैं। कई राज्य बिजली कटौती की तरफ बढ़ रहे हैं, तो कई शहरों में बत्ती गुल होना शुरू हो गई है। इस संकट के पीछे विदेश से आयात होने वाले कोयले के बढ़ते दाम नजर आ रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ राज्य खराब वित्तीय हालत के चलते अतिरिक्त बिजली खरीदने के बजाए कटौती का सहारा लेते हुए दिखाई दे रहे हैं। कोयले की कमी पर विशेषज्ञों का कहना है कि यह कोयला संकट घरेलू न होकर बाहरी ज्यादा नजर आ रहा है। क्योंकि आज सरकार की तरफ से बिजली कंपनियों को 10 फीसदी कोयला विदेश से आयात करने की अनुमति है। लेकिन कंपनियां वैश्विक मुद्रास्फीति के चलते विदेश से महंगा कोयला खरीद नहीं पा रही हैं। इससे देश की कोयला खदानों पर दबाव बढ़ता जा रहा है। जबकि राज्यों की वित्तीय हालत इतनी खराब है कि उनका करीब एक लाख करोड़ रुपये केंद्र सरकार पर बकाया है। इसलिए राज्य सरप्लस पावर खरीदने के बजाए बिजली कटौती का सहारा ले रहे हैं।

जानें आखिर पिछले साल क्यों शुरू हुआ था कोयला संकट

दरअसल, पिछले दो वर्षों से देश में कोयला संकट देखने को मिल रहा है। बीते वर्ष ऐसी स्थिति इसलिए निर्मित हुई थीं क्योंकि लॉकडाउन होने से बिजली की खपत बहुत कम हो गई थी। इसलिए बिजली उत्पादन संयंत्रों ने अपने स्टाक में कोयला भी कम रखा था। अनलॉक होने के बाद सारी औद्योगिक इकाइयां तेजी से शुरू हो गईं, जिससे कोयला संकट गहराता चला गया। विशेषज्ञों ने अमर उजाला से चर्चा में कहा, सरकार के नियमों के मुताबिक कोयला खदान से दूर जो पावर प्लांट्स होते हैं, उन्हें 26 दिनों का कोयला अपने स्टॉक में रखना होता है। जबकि नजदीक के प्लांट को 17 दिनों का स्टॉक रखना जरूरी होता है।

पिछले वर्ष कोरोना की तीसरी लहर के लॉकडाउन के चलते देश में बिजली की खपत बेहद कम हो गई थी। ऐसे में बिजली संयंत्रों को भी उत्पादन घटाना पड़ा रहा था। लेकिन हालात सामान्य हुए तो कोयले की खपत देश में बढ़ गई। ऐसी स्थिति में संयंत्रों के पास कोयले का स्टॉक मौजूद नहीं था। इसके बाद जुलाई-अगस्त में बरसात आ गई, इससे देशभर में कोयले की सप्लाई भी बाधित हुई। देश में कई जगह रेलवे ट्रैक पानी में डूब गए, तो कहीं जगह कोयला खदानों में पानी भर गया। देश में बढ़ते बिजली संकट को देखते हुए सरकार डैमेज कंट्रोल में जुई गई। सरकार ने नॉन पावर सेक्टर जैसे सीमेंट, एलुमिनियम उद्योगों की कोयला सप्लाई को रोक दिया। इसके बाद बिजली संयंत्रों को कोयला पहुंचाया, जिससे बिजली संकट कम हुआ।

फिर इस साल क्यों मचा है बवाल?

विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले वर्ष की तुलना में इस बार हालात बिलकुल अलग हैं। बढ़ती हुई गर्मी के साथ-साथ इस बार देश की सभी औद्योगिक इकाइयां कोविड पूर्व के स्तर पर काम कर रही हैं। जिससे पिछले साल के मुकाबले इस बार बिजली की खपत कई गुना बढ़ी हुई नजर आ रही है। देश के हर पावर प्लांट पर दबाव बना हुआ है। कोयले की बढ़ती खपत को देखते हुए कोल इंडिया ने भी कोयले का उत्पादन बढ़ा दिया हैं। बीते वर्ष की तुलना में इस बार 14 फीसदी ज्यादा कोयले का उत्पादन हो रहा है। इसके बाद भी बिजली संयंत्र मांग कर रहे हैं कि उनके पास कोयला बहुत कम है।

दरअसल, आज सभी बिजली संयंत्रों के पास कोयले का उतना स्टॉक मौजूद है, जितना उनके पास होना चाहिए। लेकिन फिर भी कोयला संकट सरकार के नियमों के चलते बना हुआ है। पिछले साल हुए संकट को देखते हुए केंद्र सरकार ने नियमों में फेरबदल कर दिया था। नए नियमों के मुताबिक सभी पावर प्लांट्स को ज्यादा स्टॉक रखने के निर्देश दिए गए थे, ताकि बरसात में कोई दिक्कत नहीं हो। आज सभी प्लांट्स में कोयला स्टॉक इसलिए कम नजर आ रहा है, क्योंकि सरकार ने स्टॉक रखने को सीमा को पिछले साल के मुकाबले बढ़ा दिया है और जितना कोयला संयंत्रों में पहुंचना था उतना अभी तक नहीं पहुंचा है।

रुस-युक्रेन युद्ध और इन कारणों से भी हो रही दिक्कत

देश के पावर प्लांट्स अपनी उत्पादकता को बढ़ाने के लिए विदेश से भी कोयला आयात करते है। भारतीय कंपनियां इंडोनेशिया और रूस से बड़ी मात्रा में कोयला आयात करती हैं। यह बहुत ही निम्न स्तर का कोयला होता है। कंपनियां दूसरे कोयले को इस आयातित कोयले में मिलाकर इसे अपने पावर प्लांट्स में उपयोग करती हैं। ताकि पावर प्लांट की उत्पादकता बढ़ जाए। लेकिन इस बार बढ़ती वैश्विक मुद्रास्फीति और इंडोनेशिया से आने वाले डोमेस्टिक कोयले के दाम पहले के मुकाबले ज्यादा बढ़ गए हैं। जिससे भारतीय कंपनियों के लिए कोयला आयात करना बहुत महंगा सौदा साबित हो रहा है। इसलिए कंपनियों ने बाहर से कोयला खरीदना फिलहाल बंद कर दिया है। इसके अलावा जो कोयला बहुत पहले आर्डर किया गया था, वह रूस और यूक्रेन के युद्ध के चलते अब तक बंदरगाहों में पर अटका हुआ है। जिससे कंपनियों के ऊपर दबाव ज्यादा बढ़ गया है।

राज्य नहीं खरीद रहे अतिरिक्त बिजली

पिछले साल के मुकाबले इस बार बिजली की डिमांड 30 फीसदी ज्यादा है। वहीं पावर सप्लाई भी सभी राज्यों में पर्याप्त हो रही हैं। लेकिन कभी-कभी पीक आवर में राज्यों में डिमांड बढ़ जाती है। ऐसे में राज्य अतिरिक्त बिजली खरीद ले सकते हैं। लेकिन राज्य ऐसा नहीं कर रहे हैं। इसके बदले वे जानबूझकर कटौती का सहारा ले रहे हैं कि क्योंकि अगर अतिरिक्त बिजली खरीदेंगे तो उन्हें इसका पैसा देना पड़ेगा। इसलिए राज्यों में बिजली संकट हो रहा है। क्योंकि राज्य अतिरिक्त बिजली खरीदेंगे तो उन्हें पैसा देना होगा।  

विशेषज्ञों ने कहा कि आज यह बात सामने आ रही है कि कोयला की बहुत कमी है तो यह बिलकुल गलत है। क्योंकि अभी भी सभी पावर प्लांट्स के पास करीब 27 मिलियन टन कोयले का स्टॉक पड़ा हुआ है। आज जो पावर प्लांट्स यह कह रहे हैं कि हमारे पास कोयला स्टॉक कम है तो उसके दो कारण हैं, पहला यह कि रेलवे की पास रैक की कमी है जिससे कोयला ज्यादा मात्रा में संयंत्र तक नहीं पहुंच रहा है। दूसरा यह है कि कोल इंडिया का राज्यों की पावर कंपनियों पर बहुत बकाया है। इधर, सरकार भी कंपनियों से कह चुकी है कि जब तक वे अपना पुराना हिसाब नहीं करेंगी तब तक कोल इंडिया कोयला नहीं देगी। इसलिए आज कुछ राज्य अपनी क्षमता के हिसाब से बिजली भी खरीद रहे हे क्योंकि उनका बकाया राशि ज्यादा है।

संकट पर यह कहना है कोल सचिव का…

कोयला संकट पर कोल सचिव एके जैन का कहना है कि देश में कोयले की कमी नहीं है। जबकि इस संकट की मुख्य वजह विभिन्न ईंधन स्रोतों से होने वाले बिजली उत्पादन में आई तीव्र गिरावट है। ताप-विद्युत संयंत्रों के पास कोयले का कम स्टॉक होने के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं। कोविड-19 के बाद अर्थव्यवस्था में तेजी से बिजली की मांग बढ़ना, इस साल जल्दी गर्मी शुरू हो जाना, गैस और आयातित कोयले की कीमतों में वृद्धि होना और तटीय ताप विद्युत संयंत्रों के बिजली उत्पादन का तेजी से गिरना जैसे कारक इसके लिए जिम्मेदार रहे हैं।

जैन का कहना है कि देश के कई राज्यों में कोयले का संकट न होकर बिजली की मांग और आपूर्ति का बेमेल होना है। देश में गैस-आधारित बिजली उत्पादन में भारी गिरावट आने से यह संकट और बढ़ गया है। देश में बिजली आपूर्ति बढ़ाने के लिए पहले से ही कई उपाय किए जा रहे हैं। भारत में कुछ ताप-विद्युत संयंत्र समुद्री तट के किनारे बनाए गए थे ताकि आयातित कोयले का इस्तेमाल कर सकें। लेकिन आयातित कोयले की कीमत बढ़ने से उन संयंत्रों ने कोयला आयात कम कर दिया है। ऐसी स्थिति में तटीय ताप-विद्युत संयंत्र अब अपनी क्षमता का लगभग आधा उत्पादन ही कर रहे हैं।

कोयला सचिव ने कहा कि दक्षिणी और पश्चिमी क्षेत्रों में स्थित राज्य आयातित कोयले पर निर्भर हैं। जब इन राज्यों में स्थित घरेलू कोयला आधारित संयंत्रों को रेलवे वैगन और रैक से कोयला भेजा जाता है। रैक को फेरा लगाने में 10 दिन से अधिक समय लगता है। इसकी वजह से अन्य राज्यों में स्थित संयंत्रों तक कोयला आपूर्ति बाधित होती है। हालांकि रेलवे ने पिछले साल से बिजली क्षेत्र की बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए अन्य क्षेत्रों में रैक आपूर्ति को कम करके, पहले से कहीं अधिक कोयले की ढुलाई की है। मार्च के महीने में रैकों की अच्छी लदान हुई थी।



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