Exclusive: खैनी का चूना आंखों के लिए एसिड से ज्यादा खतरनाक, 99 प्रतिशत मरीजों की रोशनी जाने का खतरा


सार

नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. योगेश छापड़िया बताया कि अगर आंखों में एक माइक्रोग्राम चूना भी रह जाता है तो वह धीरे-धीरे कर्निया को गला देता है। डॉ. राम कुमार जायसवाल ने बताया कि बीआरडी में हर माह चार से पांच केस इस तरह के आ रहे हैं।  

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बीआरडी मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. रामकुमार जायसवाल ने बताया कि खैनी का चूना या आम चूना (अल्कली बर्न) एसिड की तुलना में आंखों के लिए ज्यादा खतरनाक है। यह कम समय में आंखों के अंदर चला जाता है, इसकी वजह से कर्निया (पुतली) खराब हो जाती है। इसका शिकार अधिकांश बच्चे होते हैं।

बताया कि खैनी का चूना जिसकी आंखों में गया और उसका इमरजेंसी में इलाज नहीं हुआ तो ऐसे 99 प्रतिशत मरीजों की रोशनी चली जाती है। चूना आंख की पुतली को जला और गला देता है। कई बार पलक और पुतली दोनों चिपक जाती है, जिनका ऑपरेशन करना भी बेहद मुश्किल होता है। क्योंकि, चिपकने की वजह से कर्निया गल जाती है। इस तरह के केस 15 दिन पूर्व ही बीआरडी में आए थे। बताया कि खैनी का या साधारण चूना दोनों ज्यादा खतरनाक है। गलती से यह बच्चों या बड़ों की आंखों में चला जाए तो तत्काल इलाज शुरू कर दें।  

एक माइक्रोग्राम भी चूना आंखों के लिए खतरनाक

नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. योगेश छापड़िया बताया कि अगर आंखों में एक माइक्रोग्राम चूना भी रह जाता है तो वह धीरे-धीरे कर्निया को गला देता है। डॉ. राम कुमार जायसवाल ने बताया कि बीआरडी में हर माह चार से पांच केस इस तरह के आ रहे हैं।  
 

इस तरह से करें इमरजेंसी में इलाज

डॉ. राम कुमार जायसवाल ने बताया कि बीआरडी में जो केस आते हैं वह काफी गंभीर स्थिति में होते हैं। इसकी वजह से आंखों को बचा पाना मुश्किल हो जाता है। अगर इस तत्काल साफ पानी से आंखों को लगातार धुलते रहें और नजदीकी नेत्र चिकित्सक से संपर्क कर दवा लें।

केस-एक

बस्ती का रहने वाले 12 साल का बालक खेल रहा था। गलती से उसके आंखों में खैनी का चूना चला गया। इसका दुष्प्रभाव यह हुआ कि उसके आंखों की पलक और पुतली चिपक गई। परिजन इलाज के लिए बीआरडी मेडिकल कॉलेज लेकर आएं, जहां पर डॉक्टरों ने इलाज शुरू किया, लेकिन इलाज में देरी की वजह से उसके आंखों की 70 प्रतिशत रोशनी चली गई। अभी भी उसका इलाज चल रहा है।

केस-दो

संतकबीरनगर के रहने वाला सात साल का मासूम घर में खेल रहा था। खेलते-खेलते उसके हाथ में खैनी का चूना आ गया और उसकी आंखों में चला गया। परिजन पहले संतकबीरनगर जिला अस्पताल लेकर गए। डॉक्टरों ने बीआरडी रेफर कर दिया। लेकिन, परिजन शहर के डॉ. योगेश छापड़िया के यहां लेकर आए, जहां पर उसका इलाज चल रहा है। उसकी आंखों की रोशनी जाने का खतरा बढ़ गया है।

 

विस्तार

बीआरडी मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. रामकुमार जायसवाल ने बताया कि खैनी का चूना या आम चूना (अल्कली बर्न) एसिड की तुलना में आंखों के लिए ज्यादा खतरनाक है। यह कम समय में आंखों के अंदर चला जाता है, इसकी वजह से कर्निया (पुतली) खराब हो जाती है। इसका शिकार अधिकांश बच्चे होते हैं।

बताया कि खैनी का चूना जिसकी आंखों में गया और उसका इमरजेंसी में इलाज नहीं हुआ तो ऐसे 99 प्रतिशत मरीजों की रोशनी चली जाती है। चूना आंख की पुतली को जला और गला देता है। कई बार पलक और पुतली दोनों चिपक जाती है, जिनका ऑपरेशन करना भी बेहद मुश्किल होता है। क्योंकि, चिपकने की वजह से कर्निया गल जाती है। इस तरह के केस 15 दिन पूर्व ही बीआरडी में आए थे। बताया कि खैनी का या साधारण चूना दोनों ज्यादा खतरनाक है। गलती से यह बच्चों या बड़ों की आंखों में चला जाए तो तत्काल इलाज शुरू कर दें।  

एक माइक्रोग्राम भी चूना आंखों के लिए खतरनाक

नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. योगेश छापड़िया बताया कि अगर आंखों में एक माइक्रोग्राम चूना भी रह जाता है तो वह धीरे-धीरे कर्निया को गला देता है। डॉ. राम कुमार जायसवाल ने बताया कि बीआरडी में हर माह चार से पांच केस इस तरह के आ रहे हैं।  

 



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