GST ‘सहकारी संघवाद’ से ‘एक देश-एक टैक्स’ की सफलता


विराग गुप्ता

विराग गुप्ताएडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट

जीएसटी की पृष्ठभूमि 2003 के एक कानून में देखी जा सकती है जिसके तहत 2004 में टास्क फोर्स बनाया गया था. इसके बाद जीएसटी पर पहला डिस्कशन पेपर नवम्बर 2009 में जारी किया गया. वित्त मंत्रालय की स्टैंडिंग कमेटी ने 73वें रिपोर्ट से 2011 के एमेंडमेंट बिल के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला था. उसके बाद राज्य सभा और फिर लोकसभा में अगस्त 2016 में 122वां संविधान संशोधन पारित हुआ.

Source: News18Hindi
Last updated on: May 22, 2022, 11:01 AM IST

शेयर करें:
Facebook
Twitter
Linked IN

‘एक देश-एक कानून’ को सफल बनाने के लिए भारत में पांच साल पहले जीएसटी यानि ‘गुड्स एंड सर्विस टैक्स’ को लागू किया गया था. आजाद भारत के बाद टैक्स सुधार की दिशा में इसे सबसे बड़ा कदम बताते हुए कई लोग इसे ‘गुड एंड सिम्पल टैक्स’ भी बोलते हैं. लॉकडाउन और यूक्रेन युद्ध के बाद भारत समेत पूरी दुनिया में आर्थिक संकट के बादल मंडरा रहे हैं. भारत में केंद्र और राज्यों की संघीय व्यवस्था में भी आर्थिक संकट की वजह से अनेक गतिरोध और तनाव बढ़ रहे हैं. उस माहौल में सुप्रीम कोर्ट के इस नए फैसले ने पूरे देश में हलचल सी मचा दी है. केंद्र सरकार ने सफाई पेश करते हुए इस फैसले को संवैधानिक व्यवस्था के अनुकूल बताया तो विपक्षी राज्य इसे अपनी जीत के तौर पर मान रहे हैं. गुजरात हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि रिवर्स चार्ज के तहत समुद्री माल के लिए आयातकों पर एकीकृत जीएसटी (आईजीएसटी) नहीं लगाया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस चन्द्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने भारत सरकार बनाम मोहित मिनरलस प्राइवेट लिमिटेड मामले में गुजरात हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि जीएसटी परिषद की सिफारिशें केंद्र और राज्यों के लिए बाध्यकारी नहीं हैं.

2016 में संविधान संशोधन से जीएसटी लागू हुआ- जीएसटी के पहले देश में अनेक प्रकार के टैक्स और चुंगी थे जिससे सरकार, उद्योग, व्यवसायी और ग्राहक समेत सभी को असुविधा का सामना करना पड़ता था. जीएसटी की पृष्ठभूमि 2003 के एक कानून में देखी जा सकती है जिसके तहत 2004 में टास्क फोर्स बनाया गया था. इसके बाद जीएसटी पर पहला डिस्कशन पेपर नवम्बर 2009 में जारी किया गया. वित्त मंत्रालय की स्टैंडिंग कमेटी ने 73वें रिपोर्ट से 2011 के एमेंडमेंट बिल के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला था. उसके बाद राज्य सभा और फिर लोकसभा में अगस्त 2016 में 122वां संविधान संशोधन पारित हुआ जिसे राष्ट्रपति ने संविधान (101वां संशोधन) अधिनियम 2016 के तौर पर मंजूरी दे दी. उसके बाद 2017 से पूरे देश में जीएसटी की टैक्स व्यवस्था को लागू कर दिया गया.

जीएसटी काउंसिल की संवैधानिक व्यवस्था- संविधान के अनुच्छेद 279-ए में जीएसटी काउसिंल के लिए प्रावधान था. देश की राजधानी दिल्ली में मुख्यालय बनाते हुए राष्ट्रपति ने सितम्बर 2016 में जीएसटी काउसिंल की स्थापना के लिए नोटिफिकेशन जारी किया. इसका मुख्यालय दिल्ली में है. केन्द्रीय वित्त मंत्री इसकी चेयरमैन, वित्त राज्यमंत्री और सीबीआईसी के चेयरमैन समेत सभी राज्यों के वित्त मंत्री इसके सदस्य होते हैं. जीएसटी काउसिंल की सिफारिश पर कानून, प्रक्रिया और टैक्स दरों में बदलाव होते हैं. असहमति होने पर जीएसटी काउसिंल में वोटिंग के आधार पर फैसले होते हैं जिसमें एक तिहाई वोट केंद्र सरकार के पास और बकाया 2 तिहाई वोट राज्यों के होते हैं. केन्द्र में सत्तारुढ दल को अपनी पार्टी के शासित राज्यों का समर्थन मिलने से कई बार विपक्ष शासित राज्यों में असंतोष मुखर होता है. जीएसटी काउसिंल की सिफारिशें केंद्र और राज्यों के लिए बाध्यकारी नहीं हैं, इसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले से और स्पष्टता मिली है.

केंद्र और राज्यों को कानून बनाने के लिए संवैधानिक अधिकार- संविधान की सातवीं अनुसूची में केंद्र, राज्य और समवर्ती विषयों के बारे में 3 सूचियां हैं. अनुच्छेद-246 के तहत केन्द्रीय मामलों में संसद के माध्यम से केन्द्र सरकार को और राज्यों के विषय पर विधानसभा के माध्यम से राज्य सरकारों को कानून बनाने का अधिकार है. समवर्ती सूची में केंद्र और राज्य दोनों को कानून बनाने का अधिकार है. जीएसटी के लिए किए गए संविधान संशोधन के माध्यम से अनुच्छेद-246ए जोड़ा गया जिसके तहत केंद्र और राज्य दोनों को अपने क्षेत्राधिकार में कानून बनाने का अधिकार जारी रहा. सुप्रीम कोर्ट के नए आदेश से इस संवैधानिक व्यवस्था की पुष्टि हुई है.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला और सहकारी संघवाद- यह मामला आईजीएसटी से जुड़ा था जिसमें जीएसटी और जीएसटी काउसिंल के बारे में आदेश देने की सुप्रीम कोर्ट को विशेष जरुरत नहीं थी. केंद्र सरकार ने अनुच्छेद-246-ए की शक्तियों के अनुसार 279-ए में जीएसटी काउसिंल की सिफारिशों को बाध्यकारी मानने का निवेदन किया जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने 2011 के बाद अटार्नी जनरल की राय का भी उल्लेख अपने फैसले में किया है जिसके अनुसार जीएसटी काउसिंल की सिफारिशें केंद्र और राज्यों के उपर बाध्यकारी नहीं हैं.

जीएसटी लागू होने के बाद पांच साल तक राज्यों को क्षतिपूर्ति करने की समय सीमा 6 सप्ताह के बाद खत्म हो रही है. उसकी वजह से आर्थिक संसाधनों के बंटवारे और जीएसटी की क्षतिपूर्ति के लिए केंद्र और राज्यों के बीच में खींचतान बढ़ रही है. इस फैसले के बाद विवाद और उलझनें रोकने के लिए सरकार सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन फाइल कर सकती है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले से साफ है कि जीएसटी संघीय व्यवस्था का अहम हिस्सा है लेकिन इसे संवैधानिक तौर पर बाध्यकारी नहीं बनाया जा सकता. केंद्र और राज्यों के बीच सहकारी संघवाद के माध्यम से ही जीएसटी और संविधान के अन्य प्रावधानों को सफल और साकार बनाए जाने की जरूरत है.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)


ब्लॉगर के बारे में

विराग गुप्ता

विराग गुप्ताएडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट

लेखक सुप्रीम कोर्ट के वकील और संविधान तथा साइबर कानून के जानकार हैं. राष्ट्रीय समाचार पत्र और पत्रिकाओं में नियमित लेखन के साथ टीवी डिबेट्स का भी नियमित हिस्सा रहते हैं. कानून, साहित्य, इतिहास और बच्चों से संबंधित इनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं. पिछले 6 वर्ष से लगातार विधि लेखन हेतु सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस द्वारा संविधान दिवस पर सम्मानित हो चुके हैं. ट्विटर- @viraggupta.

और भी पढ़ें

First published: May 22, 2022, 11:01 AM IST



image Source

Enable Notifications OK No thanks