Gullak 3: गीतांजलि कुलकर्णी बोलीं- होममेकर हमेशा बेचारी नहीं होती, उसकी भी आवाज होती है


मिडिल क्लास परिवार की जिंदगी के छोटे-छोटे किस्से बयान करने वाली वेब सीरीज ‘गुल्लक’ (Gullak ) के पिछले सीजन ने लोगों का खूब प्यार बटोरा था। अब इस सीरीज का मिश्रा परिवार ‘गुल्लक 3’ (Gullak 3) के रूप में कुछ और नए किस्से लेकर एक बार फिर से दर्शकों के बीच हाजिर है। इसी सिलसिले में हमने घर की होम मिनिस्टर शांति मिश्रा यानी ऐक्ट्रेस गीतांजलि कुलकर्णी (Gitanjali Kulkarni) से की खास बातचीत

‘गुल्लक’ में आपके किरदार शांति मिश्रा से तमाम मिडिल क्लास महिलाएं रिलेट करती हैं। आपने खुद उससे कितना रिलेट किया?
असल में मुझमें और शांति मिश्रा में बहुत कम समानताएं हैं। मैं 25 साल से काम कर रही हूं और प्रफेशनल आर्टिस्ट हूं। जब मैं यंग थी, तब मुझे लगता था कि मैं कभी भी एक होममेकर या गृहिणी नहीं बनना चाहूंगी। एक ईगो होता है न, जब आप जवान होते हो, पर मैंने अपनी सासू मां को देखा, अपनी कुछ आंटियों, कुछ सहेलियों को देखा, जो बहुत अच्छी गृहणियां हैं। वे घर के लिए बहुत काम करती हैं, अपने बच्चों के लिए काम करती हैं, लेकिन उनकी आवाज, उनकी राय भी घर में बहुत इंपॉर्टेंट है। हमें हमेशा यह लगता है कि गृहणी तो बहुत दुर्बल होगी, बेचारी होगी, पर ऐसा नहीं है। उन्होंने बहुत अच्छी तरह अपना स्टेटस बनाया है। मुझे लगता है कि शांति मिश्रा देश के मिडिल क्लास की सारी होममेकर्स का प्रतिनिधित्व करती है। मुझे शांति मिश्रा इसलिए अच्छी लगती है क्योंकि वह अपनी अपनी सोच, अपने फैसले बताती है, परिवार का भी सुनती है, बच्चों का भी सुनती है, लेकिन उस घर में उसकी भी एक आवाज है और मुझे लगता है कि इस किरदार की वजह से मेरी समझ बढ़ी है। मैं खुद बहुत इवॉल्व हुई हूं।


पिछले सीजन में जो किट्टी का एपिसोड था, उसे बहुत पसंद किया गया, क्योंकि कहीं न कहीं वह हर घर की हकीकत है कि परिवार में औरतों की जरूरतें पीछे रह जाती हैं। सभी उन्हें फॉर ग्रांटेड लेते हैं। आपके हिसाब से यह परिस्थिति कैसे बदलेगी?
ये काफी जटिल सवाल है। जैसे, मैं एक प्रफेशनल हूं। मैं काम करती हूं, तो मैंने अपने घर में उस तरह का माहौल बनाया है कि सब काम करेंगे। आप एक सिस्टम बनाते हैं। बाकी, घर के लोगों को भी जब आपके काम का महत्व पता चलता है तो वे भी सहयोग करते हैं। लेकिन सामाजिक तौर पर बदलाव आने में काफी वक्त लगता है। आप सोचिए, सावित्री बाई फुले, महात्मा फुले ने 1850 में लड़कियों के लिए स्कूल खोले, जिसकी वजह से आज हम इस जगह पर पहुंचे हैं। उसके लिए उन लोगों ने कितना कुछ सहा। ये जो महान लोग थे, उनकी वजह से आजादी मिलते ही हमारे पास अच्छे इंस्टीट्यूट थे और इस शिक्षा की वजह से आज हम औरतें यहां पहुंची हैं कि काम कर रही हैं। मुझे लगता है कि अब हमें अपने स्तर योगदान देना चाहिए, बदलाव लाने में। हालांकि, सामाजिक बदलाव बहुत मुश्किल होता है लेकिन हम अपने स्तर पर कोशिश तो कर सकते हैं। अपनी छोटी-छोटी लड़ाइयां लड़कर, जैसे शांति मिश्रा ने लड़ी कि मैं सिलबट्टे पर चटनी नहीं बनाऊंगी। मैं अपनी किट्टी के पैसे से अपने लिए मिक्सी खरीदूंगी, न कि किसी और के लिए टीवी या फोन, तो ये जो लड़ाइयां हैं, वो हमें जीतनी हैं, तो मुझे लगता है कि धीरे-धीरे सब समझेंगे। इसमें वक्त लगता है।


आपकी राय में महिला सशक्तिकरण के लिहाज से मिडिल क्लास औरतों के सामने सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
बहुत सारी चुनौतियां हैं। ये जो सिस्टम इतने सालों से बने हैं, उनको तोड़ना और अपने लिए आवाज उठाना सबके लिए आसान नहीं है। मगर मुझे लगता है कि बदलाव लाने का सबसे बड़ा जरिया है, एजुकेशन। हमें पढ़ना है, लिखना है और यही पहला कदम होगा इससे निकलने के लिए। आज कितनी सारी लड़कियां घर से बाहर जा रही हैं। पहले तो घर से बाहर जाना ही मुश्किल था, तो शिक्षा बहुत जरूरी है, क्योंकि शिक्षा से ही आपमें बुद्धिमत्ता आएगी, जानकारी मिलेगी कि दूसरों ने क्या किया, कैसे किया और उससे आपमें ये भाव आएगा कि हम भी ये कर सकते हैं। दूसरे, मेरे हिसाब से आर्थिक तौर पर स्वतंत्र होना जरूरी है, भले ही वो छोटे स्तर पर, घर से ही कुछ क्यों न हो, पर मुझे लगता है कि महिलाओं के लिए ये बहुत जरूरी है।

गुल्लक 3 के बाद क्या नया कर रही हैं?

इसके बाद रंगबाज 3 में एक अहम किरदार निभा रही हूं। ये सीरीज भी जल्द ही आएगी। उसके अलावा रैडिकल नाम ही एक सीरीज की है, वह पूरी हो गई है। एक स्वतंत्र फिल्म कर रही हूं, जिसकी शूटिंग जून से शुरू होगी, लेकिन उसका शीर्षक तय नहीं है।

पर्दे पर पिछले कुछ समय से नायिकाओं के लिए विविध रोल लिखे जा रहे हैं। उम्र की बंदिश भी पहले की तरह नहीं रह गई। आप इस बदलाव को किस तरह देखती हैं?
मुझे बहुत अच्छा लगता है कि मैं इस समय में हूं, क्योंकि अभी जो ये कहानियां लिखी रही हैं, जिस तरह से लिखी जा रही हैं, हम सभी फीमेल कलाकारों, जो कि अच्छी ऐक्ट्रेसेज हैं, उन्हें अच्छे रोल मिल रहे हैं। चाहे शीबा चड्ढा हों, लवलीन मिश्रा हों, सबको बढ़िया रोल मिल रहे हैं, क्योंकि ऐसी कहानियां लिखी जा रही हैं। असल में वेब सीरीज के लॉन्ग फॉर्मेट का ये बहुत बड़ा फायदा है। फिल्मों में एक सीमा होती थी। लीड के अलावा, बाकी कलाकारों के लिए उस तरह का स्कोप ही नहीं होता। जबकि, सीरीज में सभी किरदारों का आर्क बनाना पड़ता है, तो चरित्र किरदार में भी शेड काफी होते हैं। फिर, महिलाओं के लिए जैसे किरदार लिखे जा रहे हैं। काफी सारी लड़कियां लिख रही हैं और लड़के भी जिस तरह से लिख रहे हैं, जैसे हमारे राइटर दुर्गेश हैं, उनकी जिंदगी में उनकी मां का महत्व, पत्नी का महत्व बहुत है और वही उनकी राइटिंग में भी दिखता है।



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